जानिए झारखण्ड के गुमला में क्यों होती है महिषासुर की पूजा

गुमला: शास्त्रों में मां दुर्गा को महिषासुरमर्दिनि भी कहा गया है. श्री दुर्गा सप्तशती में भी इसका वर्णन है किस तरह मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध कर बुराई का अंत किया था. इसलिए कहा गया है कि नवरात्रों में मां की उपासना करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है और जीवन से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का विनाश होता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि झारखंड में एक जगह ऐसी भी है जहां लोग महिषासुर की पूजा करते हैं.

नवरात्रों में लोग मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं. लेकिन झारखंड के गुमला में एक ऐसा समुदाय है जो असुर की पूजा करता है. झारखंड के गुमला में असुर जनजाति के लोग महिषासुर की पूजा करते हैं. इनकी जनजाति असुर होने के कारण ये लोग महिषासुर को अपना पूर्वज मनाते हैं. मां दुर्गा की पूजा के बाद इस जनजाति के लोग अपनी प्राचीन परंपराओं के आधार पर ये पूजा करते हैं.
दीपावली पर्व में महिषासुर की पूजा करने की है परंपरा
असुर जनजाति के लोग ज्यादातर पहाड़ों और जंगलों में रहते हैं. गौरतलब है कि इस समाज में दुर्गा पूजा के बाद दीपावली पर्व में महिषासुर की पूजा करने की परंपरा आज भी जीवित है. हालांकि यहां महिषासुर की मूर्ति बनाकर पूजने की परंपरा नहीं है. लेकिन जंगल और पहाड़ों में रहने वाले असुर जनजाति के लोग दुर्गा पूजा की समाप्ति के बाद महिषासुर की पूजा में जुट जाते हैं.
कैसे की जाती है महिषासुर की पूजा
दीपावली की रात महिषासुर के नाम से मिट्टी का एक छोटा पिंड बनाकर पूजा की जाती है. इस पूजा के दौरान ये लोग अपने पूर्वजों को भी याद करते हैं. हालांकि ये लोग भी पहले लक्ष्मी-गणेश की ही पूजा करते हैं. इसके बाद देर शाम को दिया जलाने के बाद महिषासुर की पूजा की जाती है. महिषासुर की पूजा के साथ गौशाला की पूजा भी की जाती है. इसके अलावा प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार महिषासुर की सवारी भैंसा को भी पूजने की परंपरा है. जंगलों में निवास करने वाले असुर जनजाति के ये लोग हर वर्ष अपनी परंपरा को बिना रुके निभाते हैं.