धनतेरस: समृद्धि, स्वास्थ्य, आस्था और वैश्विक सांस्कृतिक एकता का प्रतीक पर्व
धनतेरस का वैदिक और ऐतिहासिक महत्व
धनतेरस भारत का केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि समृद्धि, स्वास्थ्य, पर्यावरणीय संतुलन और सामाजिक एकजुटता का वैश्विक प्रतीक बन चुका है। वर्ष 2025 में यह पर्व 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा। वैदिक परंपरा से जुड़ा यह दिन भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने का प्रतीक है, जो आयुर्वेद और आरोग्य के देवता माने जाते हैं। आधुनिक युग में धनतेरस आर्थिक उत्सव के रूप में भी उभरा है, जहाँ सोना, चांदी, बर्तन और इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की खरीद शुभ मानी जाती है। यह दिन “ग्रीन धनतेरस” और “ग्लोबल आयुर्वेदा वैलनेस डे” जैसी पहलों से पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाता है। साथ ही डिजिटल युग में यह त्योहार ऑनलाइन व वित्तीय निवेश के नए स्वरूपों से जुड़ गया है। धनतेरस आज नारी सशक्तिकरण, वित्तीय साक्षरता और वैश्विक भारतीय संस्कृति का प्रतीक बनकर नई चेतना और साझा समृद्धि का संदेश दे रहा है।
वैश्विक स्तरपर भारत की संस्कृति में दीपावली केवल एक दिन का उत्सव नहीं,बल्कि पाँच दिवसीय आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक यात्रा है। इस यात्रा की शुरुआत जिस दिन से होती है,वह दिन है धनतेरस,समृद्धि, आरोग्य और शुभारंभ का पर्व। वर्ष 2025 में धनतेरस 18 अक्टूबर, शनिवार को मनाया जा रहा है। यह दिन न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में बसे करोड़ों भारतीयों के लिए दिवाली की शुरुआत का प्रतीक है। आधुनिक युग में धनतेरस ने अपने धार्मिक स्वरूप से आगे बढ़कर वैश्विक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आयामों को भी अपने साथ जोड़ा है। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि धनतेरस का उद्भव वैदिक परंपरा से जुड़ा हुआ है। पुराणों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय, देवताओं और असुरों के बीच जब अमृत कलश प्राप्त हुआ,उसी समय धन्वंतरि भगवान,जो आयुर्वेद के देवता माने जाते हैं,अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।यही दिन त्रयोदशी तिथि का था, जो कार्तिक कृष्ण पक्ष की होती है। इसी कारण इसे धन्वंतरि त्रयोदशी कहा गया,जो आगे चलकर“धनतेरस”के नाम से प्रसिद्ध हुआ। धन्वंतरि देव का आगमन जीवन में स्वास्थ्य, दीर्घायु और संतुलन का प्रतीक है। भारत में प्राचीन काल से ही स्वास्थ्य को धन के समान माना गया है “आरोग्यं परमं भाग्यं, स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्।” अर्थात् आरोग्य ही सबसे बड़ा धन है। इसीलिए धनतेरस पर लोग न केवल सोना-चांदी या बर्तन खरीदते हैं, बल्कि आरोग्य, स्वच्छता और संतुलित जीवन के संकल्प भी लेते हैं। साथियों बात अगर हम धनतेरस: शुभ क्रय और आर्थिकप्रतीकवाद को समझने की करें तो, भारत में धनतेरस के दिन सोना, चांदी, बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ, वाहन और गहने खरीदने की परंपरा है। इसे शुभ मुहूर्त का प्रतीक माना जाता है। यह दिन वर्ष का वह क्षण होता है जब अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता भावनाओं का चरमोत्कर्ष देखा जाता है।

वर्तमान समय में जब उपभोक्तावाद चरम पर है, यह पर्व हमें याद दिलाता है कि वास्तविक समृद्धि वही है जो प्रकृति के संतुलन को बनाए रखे।मिट्टी के दीपक जलाना, तांबे- पीतल के बर्तन खरीदना, और स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देना पर्यावरणीय दृष्टि से भी सार्थक कदम हैं। वर्ष 2025 में पर्यावरणविदों ने यह आह्वान किया है कि धनतेरस पर इको-फ्रेंडली खरीदारी की जाए,जैसे ऊर्जा-संवर्धन करने वाले उपकरण, सौर लैंप, या स्थायी धातु से बने उत्पाद। यह कदम “ग्रीन धनतेरस” की अवधारणा को आगे बढ़ा रहा है।
धनतेरस और सामाजिक एकजुटता-धनतेरस का एक बड़ा पक्ष सामाजिक समरसता और सहानुभूति का है। परंपरागत रूप से इस दिन घर में दीप जलाए जाते हैं ताकि अंधकार, गरीबी और दुख को दूर किया जा सके। आधुनिक संदर्भ में इसका अर्थ है,समाज के वंचित वर्ग तक प्रकाश पहुँचाना। अनेक सामाजिक संगठन और एनजीओ धनतेरस के दिन गरीबों को वस्त्र, बर्तन और मिठाइयाँ वितरित करते हैं।कटनी, वाराणसी, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, दुबई और न्यूयॉर्क जैसे शहरों में प्रवासी भारतीय संगठन इस दिन “शेयर द लाइट मूवमेंट”नामक कार्यक्रम चलाते हैं,जिसमें जरूरतमंद परिवारों के घर रोशनी और मुस्कान पहुँचाई जाती है। साथियों बात अगर हम विश्व पटल पर धनतेरस का विस्तार को समझने की करें तो, आज धनतेरस केवल भारतीयों का त्योहार नहीं रह गया है। यह एक ग्लोबल सांस्कृतिक इवेंट बन चुका है।लंदन में “दिवाली ऑन द स्क्वायर ” नाम से जो आयोजन होता है,वहाँ हर वर्ष लाखों लोग भाग लेते हैं। इस आयोजन की शुरुआत धनतेरस के दिन होती है।सिंगापुर, मलेशिया, फिजी, मॉरीशस, ट्रिनिडाड, और कनाडा जैसे देशों में धनतेरस के अवसर पर “फेस्टिवल ऑफ़ वेल्थ एंड हेल्थ”नाम से सार्वजनिक समारोह आयोजित किए जाते हैं।
2025 में अमेरिका के न्यू जर्सी, डलास, और कैलिफोर्निया के भारतीय संघों ने भी धनतेरस पर “ग्लोबल धन्वन्तरि कांफ्रेंस 2025” आयोजित करने की घोषणा की है। इस सम्मेलन में स्वास्थ्य, योग, आयुर्वेद और वित्तीय जागरूकता पर चर्चा होगी,जो दिखाता है कि यह पर्व कितनी बहुआयामी प्रासंगिकता रखता है। साथियों बात अगर हम धनतेरस और डिजिटल युग कीकांबिनेशन को समझने की करें तो ,वर्तमान डिजिटल युग में धनतेरस ने नई पहचान प्राप्त की है। ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म्स जैसे अमेज़ॉन, फ्लिपकार्ट टाटा क्लिक, और रिलायंस डिजिटल इस दिन विशेष “धनतेरस फेस्टिव सेल ” लॉन्च करते हैं। 2025 में इन ऑनलाइन बिक्री से भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में लगभग 25,000 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रवाह होने का अनुमान है।डिजिटल पेमेंट्स, यूपीआई और रुपे कार्ड जैसी तकनीकें इस दिन के आर्थिक व्यवहार को पारदर्शिता और गति देती हैं। धनतेरस अब केवल बाजारों की चमक तक सीमित नहीं, बल्कि यह डिजिटल समृद्धि का प्रतीक भी बन चुका है,जो “नए भारत” की पहचान को दर्शाता है। साथियों बात अगर हम परिवार और परंपरा,घर की लक्ष्मी का स्वागत व धनतेरस और आधुनिक युवा पीढ़ी को समझने की करें तो,धनतेरस के दिन भारतीय घरों में सुबह से ही सजावट शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करते हैं, नए वस्त्र पहनते हैं और द्वार पर स्वस्तिक और शुभ-लाभ के चिन्ह बनाते हैं। सायंकाल के समय दीपदान किया जाता है,विशेषकर तुलसी और मुख्य द्वार पर दीप जलाने का विधान है। गृहस्थ इस दिन “यम दीपदान” भी करते हैं,मान्यता है कि इस दीपक की ज्योति से मृत्यु और भय का निवारण होता है। यह प्रतीकात्मक रूप से “प्रकाश से अंधकार पर विजय” का संदेश देता है।
घर की स्त्रियाँ इस दिन “लक्ष्मी आराधना” का प्रारंभ करती हैं, जिससे दीपावली की मुख्य पूजा का मंगल आरंभ माना जाता है। धनतेरस और आधुनिक युवा पीढ़ी-नई पीढ़ी के लिए धनतेरस केवल पूजा का दिन नहीं,बल्कि स्व-विकास और वित्तीय अनुशासन की प्रेरणा भी है। भारत के शहरी युवाओं में धनतेरस पर म्यूचुअल फंड, सोने के बॉन्ड, या डिजिटल गोल्ड में निवेश करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
2025 में वित्त विशेषज्ञों ने इसे “फाइनेंसियल वैलनेस फेस्टिवल” का नाम दिया है, जो दर्शाता है कि आज की पीढ़ी इस परंपरा को आर्थिक साक्षरता के माध्यम से पुनःपरिभाषित कर रही है। साथियों बात अगर हम धनतेरस और भारतीय अर्थव्यवस्था का मनोवैज्ञानिक पहलू व धनतेरस और महिला सशक्तिकरण को समझने की करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था में त्योहारों का प्रभाव गहरा होता है। धनतेरस वह क्षण है जब करोड़ों उपभोक्ता नई खरीदारी के लिएसकारात्मक मानसिकता में होते हैं। इसउत्साह से मांग बढ़ती है,उत्पादन को गति मिलती है,और रोज़गार सृजन को बल मिलता है।
अर्थशास्त्रियों का मत है कि भारत की जीडीपी में त्योहारों के सीज़न के दौरान लगभग 2पेर्सेंट तक का उछाल देखा जा सकता है। इस प्रकार धनतेरस केवल सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि आर्थिक इंजन का उत्प्रेरक भी है। धनतेरस और महिला सशक्तिकरण -धनतेरस के दिन घर की “गृहलक्ष्मी” को केंद्र में रखा जाता है। यह सांस्कृतिक रूप से नारी शक्ति का सम्मान है। आज के युग में महिलाएँ न केवल परिवार की रक्षक हैं, बल्कि वित्तीय निर्णयों में समान भागीदारी निभा रही हैं। इस दिन कई बैंक और फिनटेक संस्थान महिलाओं के लिए “स्वर्ण निवेश योजना” या “धन लक्ष्मी सेविंग प्रोग्राम” जैसी योजनाएँ लॉन्च करते हैं। यह दिखाता है कि परंपरा और आधुनिकता का संगम किस प्रकार महिला सशक्तिकरण के माध्यम से सामाजिक समृद्धि में परिवर्तित हो रहा है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि धनतेरस समृद्धि का नया अर्थ, धनतेरस 2025 केवल तिथि नहीं, बल्कि एक विचार हैँ कि सच्चा धन वह है जो बाँटने से बढ़ता है, और सच्ची समृद्धि वह है जो सबके जीवन में प्रकाश लाए। चाहे वह आर्थिक हो, सामाजिक हो या आध्यात्मिक धनतेरस हमें यह सिखाता है कि हर उपलब्धि का अर्थ तभी है जब वह साझी खुशी में परिवर्तित हो। इसलिए जब 18 अक्टूबर 2025 की संध्या में दीपक जलें, तो वे केवल घरों में नहीं, मानवता के हृदयों में भी उजियारा करें। यह धनतेरस नई चेतना, नईजिम्मेदारी और नई वैश्विक संस्कृति का उद्घोष बने,जहाँ आरोग्य, समृद्धि और सद्भाव एक साथ दीपित हों।
लेखक- किशन सनमुखदास भावनानीं
Mohit Sinha is a writer associated with Samridh Jharkhand. He regularly covers sports, crime, and social issues, with a focus on player statements, local incidents, and public interest stories. His writing reflects clarity, accuracy, and responsible journalism.
