सिफारिशों से बनी बात, क्या जनता देगी साथ…
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ज्योति चौहान
‘मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है’…झारखंड लोकसभा चुनाव प्रत्याशियों पर यदि गौर किया जाए तो इस लेख के एक- एक शब्द बाण बन जायेंगे, क्योंकि चतरा, रांची व कोडरमा में जिन प्रत्याशियों पर दाव लगाया गया है। दरअसल वो सिफारिशों की नींव पर है और सिफारिशें उनके लिए ही की जाती हैं, जो काबिल नहीं होते या उनमें कोई त्रुटि होती है।
कोडरमा लोकसभा सीट पर लालू जी की लाडली मानी जाने वाली अन्नपूर्णा देवी भाजपा की सदस्यता लेते ही प्रत्याशी बनकर आ गईं। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री भूपेंद्र यादव की अगुवाई में अन्नपूर्णा ने भाजपा का दामन थामा व इसी सिफारिश का परिणाम था मैडम को कोडरमा सीट मिलना। इस सीट के लिए सांसद रविंद्र राय का टिकट काटा गया है। लिहाजा रविंद्र के कड़वे बोल तो सुनने को नहीं मिले, लेकिन उनकी पुरानी मित्रता जागृत होती महसूस हो रही है। बाबूलाल उनके पुराने साथी जो ठहरे। कोडरमा के भूमिहार नाराज हैं और दूसरी ओर बगोदर विधानसभा से माले की दमदारी विनोद सिंह के चेहरे से आँकी जाती है। माले के प्रत्याशी राजकुमार यादव के लिए बगोदर विधायक विनोद सिंह वोट मांग रहे हैं। विनोद सिंह की छवि से मैडम के दो लाख वोट तो ऐसे ही राजकुमार जी के झोली में चली जाएगी। कोडरमा से राजद के कार्यकर्ता भी नाराज हैं तो उनकी वोट सीधे बाबूलाल की झोली में। कहते हैं दो औरतें एक स्थान पर हो तो जलन से ही नुकसान पहुंचाने की ठान लेती हैं, तो लिजिए वो भी तैयार हैं, डाॅ नीरा यादव। यूं कहूं कि कमल खिलाने के लिए लालटेन छोड़कर आयीं मैडम को कीचड़ में गिरना पडे़गा तो गलत नहीं होगा। तो भूपेंद्र यादव की सिफरिश पानी में बह जाएगी।
चतरा के लिए सुनील कुमार सिंह दोबारा प्रत्याशी बनकर आए हैं। वोट मांगने कम जाते हैं, माफी ज्यादा मांगते हैं। मांगे भी क्यों नहीं ? करनी ही वैसी है इनकी। गृह मंत्री राजनाथ सिंह के चहेते सुनील जी को उनकी सिफारिश ने टिकट तो दिलवा दिया। लेकिन जीत का ताज तो जनता देती है, उन्हें कैसे मनाएंगे ? सुनील सिंह के टिकट पर जो संशय बना हुआ था, उसे दूर करने का पूरा श्रेय राजनाथ सिंह को जाता है। उनकी पैरवी काम आ गई, लेकिन पिछले पांच सालों में चतरा की जनता को जो झेलना पड़ा है, उसके लिए हार का स्वाद चखना भी जरूरी जान पड़ता है।
राज्य के मुखिया रघुवर दास ने अपनी जिद्द और सिफारिश से संजय सेठ को टिकट तो दिलवा दिया। कुछ महीने पहले संजय सेठ का नाम रांची विधानसभा के लिए सुना जा रहा था, लेकिन चुनाव प्रभारी के समक्ष लोकसभा के लिए संजय संठ का नाम प्रस्तावित हुआ यह भी आचंभित करने वाली खबर रही थी। हां, संजय सेठ ने बार- बार कहा हैै कि जनता मुझे वोट नहीं दे, वोट मोदीजी को मिलना चाहिए। उन्हें पता है कि बाहर के कस्बे, स्लम एरिया में भी उन्हें लोग नहीं पहचानते। इसका खामियाजा भाजपा को ही झेलना होगा। अपनी वाहवाही लूटने मात्र के लिए रघुवर दास ने नए मदारी को बंदर पकड़ाकर बहुत बड़ी गलती कर दी है जिसका सीधा असर आने वाले चुनाव पर भी भरपूर पडे़गा। राजनाथ सिंह, भूपेंद्र यादव व रघुवर दास की जिद्द व सिफारिशें तो कामयाब हो गई, लेकिन जीत तो जनता के उंगली पर है!
Edited By: Samridh Jharkhand