#MannKiBaat पीएम मोदी जरूरमंद देशों को कोरोना संकट में दवा देने पर क्या बोले?

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात के तहत आज कोरोना संकट से जूझते हुए देश के सामने कई अहम बातें रखीं. उन्होंने कोरोना के खतरे, दुनिया के अनुभव, संकट के समय में दूसरे देशों को दवा देने, मेडिकल कर्मियों की सुरक्षा के लिए लाए गए नए अध्यादेश सहित कई अन्य मुद्दों पर अपने विचार देश से साझा किया और साथ ही दो गज दूरी बनाकर रखने पर जोर दिया. उन्होंने आज अक्षय तृतीया के पर्व को भी कोरोना संकट से जोड़ा और इस बीमारी से लड़ने के प्रति अक्षय संकल्प प्रकट किया.

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों के लिए जो अध्यादेश लाया गया है उसका सबों ने स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि हमारे कोरोना वारियर्स के लिए यह कदम आवश्यक था.
प्रधानमंत्री ने कहा कि समाज के नजरिए में व्यापक बदलाव आया है. हमें अपने जीवन से जुड़े हर व्यक्ति के महत्व का आभाष हो रहा है.
प्रधानमंत्री ने कहा कि समाज के नजरिए में व्यापक बदलाव आया है. हमें अपने जीवन से जुड़े हर व्यक्ति के महत्व का आभाष हो रहा है.
आजकल हम सोशल मीडिया में देख रहे हैं कि लोग अपने इन साथियों की जरूरतों का ध्यान रख रहे हैं. आज देश के हर भाग से यह तसवीरें आ रही हैं कि सफाई कर्मी पर लोग पुष्पवर्षा कर रहे हैं.
हमारे पुलिसकर्मी आज जरूरमंदों को खाना व दवा पहुंचा रहे हैं. इससे पुलिसिंग का मानवीय व संवेदनशील पक्ष उभरकर सामने आया है. इसने मन को झकझोर दिया, दिल को छू लिया है.
उन्होंने कहा कि इस संकट के समय दुनिया भारत का मानवीय चेहरा देख रहा है. ऐसे संकट के समय में अगर भारत दुनिया के दूसरे देशों को दवा नहीं भी दे तो इसका कोई बुरा नहीं मानेगा. लेकिन, भारत ने मानवीय चेहरा दिखाया, दुनिया भर के जरूरमंद देशों को हमने दवा की आपूर्ति की. आज जब राष्ट्रध्यक्षों से बात होती है तो वे थैंक्यू इंडिया, थैंक्यू पिपुल आॅफ इंडिया बोलते हैं तो मन गर्व से भर जाता है.
इम्युनिटी बढाने के लिए आयुष मंत्रालय ने जो गाइडलाइन दिया है, उसका पालन आप करेंगे तो उसका लाभ आवश्य होगा. हम अपनी इन दिनचर्या का कई बार पालन करने से इनकार कर देते हैं, लेकिन जब दुनिया का दूसरा देश रिसर्च के आधार पर यह कहता है तो हम इसे मानते हैं. इसकी वजह सैकड़ों वर्ष की गुलामी एक वजह है, जिससे हमारा आत्मविश्वास शायद कम हो गया हो. भारत की युवा पीढी को इस चुनौती को स्वीकार करना होगा. हजारों साल पुराने हमारे आयुर्वेद की चुनौती को दुनिया अवश्य स्वीकार करेगा. दुनिया जिस भाषा में समझती है, उस भाषा में समझाना होगा.
कोविद19 ने हमारे जीवन को बदला है. इसमें सबसे अहम है मास्क पहनना और चेहरे को ढक कर रखना. हमें यह आदत नहीं रही कि हमारे आसपास के लोग मास्क में दिखे, लेकिन अब यह हो रहा है. आप सबको याद होगा कि हमारे देश के कई ऐसे इलाके होते थे कि जब कोई नागरिक फल खरीदता दिखता था तो लोग उससे पूछते थे कि घर में कोई बीमार है. लेकिन, समय बदला और धारणा बदली. अब मास्क को लेकर भी धारणा बदलेगी. अब बीमारी सब पहनेंगे. बीमारी से बचना है दूसरों को बचाना है तेा मास्क पहनना होगा. मेरा तो सीधा सिद्धांत रहा है गमछा.
हमें यह समझ में आ रहा है कि सार्वजनिक जगह पर थूकने के क्या परिणाम होंगे. सार्वजनिक जगह पर थूकना गंभीर चुनौती थी. यह बुराई खत्म नहीं हो रही थी, लेकिन अब यह बुरी समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जानी चाहिए. ये बातें हाइजिन का स्तर बढाएंगी और कोरोना संक्रमण को रोकने में भी मदद करेंगी.
आज जब मैं आपसे बात कर रहा हूं तो आज अक्षय तृतीय का पवित्र त्यौहार है. अक्षय का अर्थ होता है कभी विनाश न होना. इस पर्व को हम हर साल मनाते हैं लेकिन आज इसका विशेष महत्व है. यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि हमारी भावना अक्षय है, यह दिन याद दिलाता है कि कितनी भी कठिनाई हो कितनी भी बीमारियां हो उससे लड़ने का संकल्प अक्षय है. इस दिन भगवान कृष्ण व सूर्य से अक्षय पात्र मिला था, जिसमें भोजन कभी समाप्त नहीं होता.
आज हमारे देश में अक्षय अन्न भंडार है. हमें अपने जंगल, भूमि व पूरे इको सिस्टम के बारे में सोचना चाहिए. हम अक्षय रहना चाहते हैं तो हमें सोचना होगा कि दान की हमारी प्रवृत्ति अक्षय रहनी चाहिए. संकट के इस दौर में हमारा छोटा सा प्रयास आसपास के लोगों क लिए बहुत बड़ा संबल बन सकता है.
जैन परंपरा में भी यह बहुत अहम दिन है. प्रथम तीर्थंकर का इससे संबंध है, इसे जैन समाज पवित्र त्यौहार के रूप में मनाता है. हम इस दिन अपनी धरती को अक्षय व अविनाशी बनाने का संकल्प ले सकते हैं. भगवान बशेश्वर का भी जन्म दिवस है आज, उनसे मुझे सिखने का मौका मिला है.
साथियों, रमजान का पवित्र महीना भी शुरू हो चुका है. पिछले बार लोगों ने जब रमजान मनाया था तब सोचा नहीं होगा कि इस बार ऐसा होगा. इस बार हम सेवा, संयम व सदभावना के साथ इस महीने को मनाएं और कोशिश को ईद आने से पहले कोरोना समाप्त हो जाएं. हम प्रशासन के निर्देशों का पालन करेंगे.
कोरोना ने दुनिया भर में त्यौहारों को मनाने का तरीका ही बदल दिया है. कई त्यौहार आए जिसे लोगों ने शुभचिंतन व सादगी के साथ मनाया. हर किसी ने संयम बरता. ईसाई मित्रों ने इस्टर घर पर ही मनाया. इस वैश्विक महामारी के संकट के बीच आपके परिवार के एक सदस्य के नाते कुछ संकेत करना, सुझाव देना मेरा दायित्व बनता है.
हम कतई अति आत्मविश्वास में न फंस जाएं, हम ऐसा आत्मविश्वास न पाल लें कि हमारे शहर, गांव, गली, दफ्तर में कोरोना अभी तक नहीं पहुंचा है तो पहुंचने वाला नहीं है. दुनिया का अनुभव बहुत अलग है. हमारे यहां तो बार-बार कहा जाता है कि सावधानी हटी तो दुर्घना घटी. हमारे यहां कहा गया है कि हल्के में लेकर छोड़ दी गयी आग, कर्ज व बीमारी मौका पाकर खतरनाक हो जाती है, अतः अति आत्मविश्वास में कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए. मैं फिर एक बार कहूंगा दो गज दूरी बहुत है जरूरी.
इस लिंक को क्लिक का उनका मन की बात का वीडियो प्रसारण आप देख सकते हैं.