अग्निपथ : तीन साल की तैयारी, चार साल में रिटायरमेंट क्यों स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं युवा?

अग्निपथ : तीन साल की तैयारी, चार साल में रिटायरमेंट क्यों स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं युवा?

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा सेना में अल्पकालिक भर्ती की अग्निपथ योजना के ऐलान के बाद बाद देश के विभिन्न राज्यों से हिंसक प्रतिक्रिया आयी है। पूरब के बिहार से लेकर उत्तर के हरियाणा और दक्षिण के तेलंगाना तक में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए हैं। तेलंगाना में हुए विरोध प्रदर्शन व हिंसा में एक की मौत हो गयी। बिहार के लखीसराय में भी ट्रेन यात्रा कर रहे एक शख्स के मौत की सूचना है। इस हिंसक विरोध प्रदर्शन ने देश की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया है और लोगों खासकर ट्रेन में यात्रा करने वालों का कष्ट बढा दिया है। यह निंदनीय व पीड़ादायक है। प्रथम दृष्टया यह विरोध प्रदर्शन युवाओं का गुस्सा लगता है, लेकिन अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले भारत सरकार के मंत्री गिरिराज सिंह का कहना है कि यह आरजेडी के लोगों का किया गया हंगामा है।

पूर्व सेना प्रमुख और मोदी सरकार के एक और मंत्री वीके सिंह टीवी चैनल पर इससे जुड़े सवालों का “बच्चा पैदा हुआ है अभी” टाइप जवाब देते दिखे।

आरंभ में विरोध या आंदोलन में जब तीव्रता थोड़ी कम थी तो सरकार समर्थक लोग बचाव में आए, तर्क दिए और इसके लिए एक ही किस्म के सरकुलेट हो रहे डिजिटल बैनर या ग्राफिक्स को शेयर किया। लेकिन, जब विरोध में उग्रता आयी तो जनभावना के मद्देनजर लोग पीछे हटते दिखे।

सरकार ने डैमेज कंट्रोल के तहत अग्निपथ योजना के तहत नियुक्ति की उम्र सीमा में फिलहाल के लिए दो साल वृद्धि का ऐलान किया और जम्मू कश्मीर की यात्रा पर गए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इंटरव्यू के माध्यम से स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की। सेना के शीर्ष अधिकारियों ने भी इस योजना का बचाव किया। चौतरफा कोशिशें हुईं, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि दूसरे दिन भी देश के विभिन्न हिस्सों में राष्ट्रीय संपत्तियों को व्यापक नुकसान पहुंचाया गया, लोग घायल हुए, जानें गयीं। हजारों यात्री ट्रेन मार्ग में फंस गए। अनिश्चितता और असुरक्षा का भी संदेश गया।

14 जून 2022 को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा घोषित अग्निपथ योजना के बाद का यह एक मोटा-मोटी परिदृश्य है।

अब बात उन युवाओं की जो सेना में जाना चाहते हैं या जो विरोध में सड़कों पर हैं।

भारत के जिस भौगोलिक क्षेत्र में मैं रहता हूं, वहां रांची-पटना, रांची-बनारस, धनबाद- बनारस, देवघर-रांची और अन्य कई शहरों की न जाने ट्रेन से कितनी यात्राओं के दौरान न जाने कितनी बार कितने युवाओं से मेरी मुलाकात हुई होगी, जो सेना की बहालियों में शामिल होने उस ट्रेन में यात्रा करते मिले। उनसे बात कर मुझे यह अहसास होता रहा कि ये कितनी कठिन तपस्या देश सेवा और एक अदद पक्की सरकारी नौकरी पाने के लिए करते हैं। यह भी जाना कि अगले दिन की बहाली के लिए होने वाले शारीरिक क्षमता की जांच या परीक्षण से पहले वे बड़ी संख्या में रतजगा करते हुए कतार में लगते हैं। आते-जाते कई बार उन्होंने मुझे अपने किस्से सुनाए, अनुभव साझा किए। भर्ती के आयोजन के बाद ऐसे युवाओं की वापसी की भारी भीड़ की वजह से ट्रेन में रिजर्वेशन वाले यात्रियों को भी यात्रा नहीं कर पाने की खबरें भी आती रही हैं।  यह स्थिति अव्यवस्था से कहीं अधिक रोजगार की तलाश में युवाओं की बड़ी तादाद होने का सूचक है।

अग्निपथ योजना को लेकर सरकार का ऐलान इस लिंक को क्लिक कर आप पूरा पढ सकते हैं।

 

अब एक दूसरे परिदृश्य की चर्चा। पूर्वी भारत के ग्रामीण इलाकों में मैंने सेना में बहाली के लिए मैदान में पसीना बहाते युवाओं को देखा है। एक संकल्प के तहत वे दौड़ने व अन्य शारीरिक मानदंडों को पूरा करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करते हैं। इन युवाओं को लगता है कि सेना में भर्ती होकर राष्ट्र सेवा तो करेंगे ही परिवार को कम उम्र में आर्थिक सुरक्षा भी प्रदान कर सकेंगे। 15 से 20 साल की नौकरी के बाद सेवानिवृत्ति राशि, दूसरी जगह नौकरियों के विकल्प आरक्षण एवं भारतीय सेना में दी जाने वाले सुविधाएं उन्हें आकर्षित करती हैं। कम उम्र में नौकरी में जाने की वजह से सेना में कई साल गुजार लेने के बाद तो उनकी शादी की चर्चा शुरू होती है। अब भला एक रिटायर लड़के के पास कैसे प्रस्ताव आएंगे?

भारत में नौकरियों और रोजगार पहले से एक बड़ा संकट है। इसको लेकर राजनीतिक दल चुनाव में वादा करते हैं और सरकार में आने के बाद वे कहते हैं कि उन्होंने नौकरी देने का नहीं रोजगार देने और एंटरप्रेन्योर बनाने की बात कही थी। रोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रमों और ऐसी स्कीमों का हवाला दिया जाता है, उसके फर्जी आंकड़ों का बहु प्रचार किया जाता है और यह किसी एक पार्टी तक सीमित नहीं है। लगभग सभी पार्टियां ऐसा करती हैं।

बहरहाल, इन सालों में विभिन्न राज्यों से लेकर केंद्र तक विभिन्न जगहों पर कांट्रेक्ट पर होती नियुक्तियों को युवा स्वीकार तो करते गए लेकिन उनके मन में सरकारी और निजी नौकरी के घटते सामाजिक सुरक्षा अंतर को लेकर आक्रोश जमा होता रहा। अब चार साल की नौकरी वाले स्कीम पर उसका विस्फोट हो गया है।

मैं एक रक्षा विशेषज्ञ नहीं हूं। और, इस वजह से सरकार के यह फैसला क्यों सही है और क्यों गलत है इसकी फौरी व्याख्या नहीं कर सकता, लेकिन पूर्व सैन्य अधिकारी जिन्हें मीडिया रक्षा विशेषज्ञ बताता है और और दूसरे एक्सपर्ट इस पर बंटे हुए हैं। एक खेमा समर्थन में तो दूसरा खेमा विरोध में खड़ा है। सवाल राष्ट्रीय सुरक्षा और रोजगार सुरक्षा दोनों स्तरों पर उठाया जा रहा है। सवाल खड़े करने वालों के सवाल का जवाब भी आना चाहिए।

सरकार की चिंताएं सेना के आधुनिकीकरण और साजो-समान के बढाने के लिए पैसे से जुड़ी हो सकतीं है। सीमा पर बढती चुनौतियों के मद्देनजर यह आवश्यक भी है, लेकिन उन युवाओं के सवाल भी मौजूं हैं, जो कह रहे हैं कि सेना में भर्ती होने के लिए हम तीन साल कड़ी मेहनत करते हैं और फिर चार साल बाद रिटायर हो जाएं। सरकार की ओर से अब तक जो तर्क राजनीतिक लोग, सैन्य अधिकारी दे रहे हैं, वह सहज स्वीकार्य नहीं लगते। कई बार ऐसे मौके आते हैं जब सत्ता में बैठे लोगों के लिए अपनों के समर्थन भरे दंभी जयघोष से अधिक लाभकारी विरोधियों-आलोचकों के तीखे सवाल को सुनना और उस पर सोचना जरूरी होता है। यह भी जगजाहिर है कि ऐसे जयघोष ने आदिकाल से अनेकों का पतन किया है।

Edited By: Samridh Jharkhand

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