मानव सभ्यता को बचाने के लिए विभिन्न चिकित्सा पद्धति के डाॅक्टरों के समन्वित प्रयास से काम करने की जरूरत

मानव सभ्यता को बचाने के लिए विभिन्न चिकित्सा पद्धति के डाॅक्टरों के समन्वित प्रयास से काम करने की जरूरत

डाॅ एसएन झा
होम्योपैथिक फिजिशियन
तिवारी चौक, देवघर
झारखंड

वर्तमान समय में कोविड19 बीमारी महामारी के रूप में उभर कर सामने आयी है. यह विश्व विनाश का कारण बन रही है. कभी दुनिया की अत्यंत विकसित सभ्यताएं आज इतिहास का हिस्सा रह गयी हैं. मेसोपोटामिया, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, सिंधु घाटी जैसी सभी उन्नत सभ्याताएं आखिर कैसे खत्म हो गयीं. इतिहास के पन्नों को पलटने से ये हमारे दिमाग को झकझोरते हैं और सवाल उठाते हैं.

अगर चुनौतियां कम न हुईं तो मौजूदा सभ्यता भी जल्द खत्म हो जाएगी. इसकी तलाश करने के लिए कई तरह के शोध हो चुके हैं और हो रहे हैं. इसी क्रम में आंतरिक अनुसंधान शोध से जुड़े अमेरिकी संस्थान नासा के सहयोग से एक गणीतीय माॅडल पर आधारित जानकारी मिली है. इसमें प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और बढती हुई आर्थिक विषमता ऐसे कारक हैं जिससे मौजूदा सभ्यता भी कुछ ही दशकों में खत्म होने के कगार पर पहुंच जाएगी. इसमें जनसंख्या की भी मुख्य भूमिका है.

वैज्ञानिकों के अनुसार, समय रहते यदि साकारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो धरती पर ग्लोबल वार्मिंग सबसे भयावह चुनौती होगी. जलवायु में परिवर्तन के कारण सुखाड़ होना, अति वृष्टि से धरती का जलमग्न होना जारी रहेगा. बड़ी-बड़ी नदियों व समुद्र के किनारे बसने वाले शहर समाप्त हो जाएंगे. तरह-तरह की कई बीमारियों का आगमन होगा. इसस जीव जंतुओं को परेशानियों का सामना करना होगा. इसके लिए तकनीकी विकास भी जिम्मेवार है. जलवायु परिवर्तन से भी आपदा आएगी. वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण विकास के साथ विनाश की ओर ले जाएंगे. इससे महामारी की आशंका दुनिया के कई देशों में बढ जाएगी.

संक्रामक बीमारियां तेजी से फैलेंगी, जिसके लिए कोई ठोस कारगर कदम नहीं होगा. हजारों लाखों लोग इसकी चपेट में आएंगे. कुछ साल पहले ही स्वाइन फ्लू, इसेफलाइटिस, डेंगू, मलेरिया, की शिकायतें अचानक बढने से दुनिया के कुछ हिस्सों में परेशानियां बढ गयीं थीं।

ऐसे में क्षेत्रीय चिकित्सा सुविधा, बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा, ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में जो उपलब्ध थीं, उसके कारण कुछ नुकसान के कारण उस पर काबू पाया जा सका था, जिसमें अन्य चिकित्सा पद्धति के साथ होमियोपैथी चिकित्सा की भूमिका अधिक थी. गरीब अमीर सभी लोग उसे सहज प्राप्त कर सके थे.

इस बार कोरोना वायरस का जो विकसित रूप आया है जिसके लिए मुख्य रूप से विश्व के व्यावसायिक केंद्र होने के कारण एक जगह से दूसरी जगह रोगग्रस्त लोग पहुंचे कर ट्रांसमिशन का काम किया. यह बीमारी वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और एक स्थान से दूसरे स्थान मनुष्य के द्वारा जाने से फैलता है. यह सभी जीव जंतु पर भी प्रभाव डालता है. इसलिए हमारे पालतू जीव-जंतु भी इसके शिकार होते हैं.

वे भी एक जगह से दूसरी जगह महामारी फैलाने में सहायक हैं. यह महामारी बीमारी के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक फैलने वाली बीमारी है. इसलिए जिस क्षेत्र में जिस इलाके में इस ढंग के केस पाए जाते हैं, वैसे लोगों को तुरंत प्राथमिक उपचार उपलब्ध कराया जाए. इसके लिए जन स्वास्थ्य की चुनौती को देखते हुए ग्रामीण शहरी क्षेत्र पंचायत व जिला स्तर पर हर जगह वार्ड के अंदर यह सुविधा उपलब्ध हो. इससे वहीं से बीमारी पर नियंत्रण किया जाए. वहां पर व्यवस्था नहीं रहने के कारण लोग शहर के अस्पताल में आते हैं.

ऐसी स्थिति में व्यावसायिक चिकित्सक होने के कारण उनका इलाज सही से नहीं हो पाता है. अगर हो भी पाता है तो उनकी जेब खाली हो जाती है और वे पूर्ण स्वस्थ नहीं माने जाते हैं. शारीरिक व मानसिक कुछ-कुछ कारण छिपे रह जाते हैं. जिससे बाद में तरह-तरह की शिकायतों का सामना करना पड़ता है. इन्हें पूर्ण स्वस्थ करने के लिए होमियोपैथी एक सही बुनियादी सुविधा है.

मौजूदा समय में देखा गया है कि परमाणु हमला विश्व स्तर पर विषय बना हुआ है. इसका उदाहरण जापान का हिरोशिमा व नागासाकी है. ये इतिहास के बेहद बुरे उदाहरणों में एक हैं. परमाणु हथियार गलत हाथों में जाने से भयानक परिणाम निकल सकते हैं. जनसंख्या विस्फोट एशिया सहित सभी महाद्वीप में बढ रहा है. दुनिया की आबादी सात अरब के आसपास हो चुकी है. भारत की आबादी सवा करोड़ से 135 करोड़ पहुंच चुकी है. चीन की आबादी 150 करोड़ पहुंच चुकी है.

ऐसे विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि के कारण उपलब्ध साधनों का समुचित वितरण बडी चुनौती है. प्राचीन सभ्यता विनाश में टीबी, प्लेग, कुष्ठ का बड़ा रोल रहा है. यह शोध द्वारा पता लगा है.

वर्तमान में केदरनाथ का विकासित रूप प्राकृतिक आपदा से ध्वस्त ध्वस्त हुआ है. जलवायु परिवर्तन के कारण ही ऐसा हुआ. वैसे भी समुद्री इलाके में, नदी किनारे रहने वाले शहर के विनाश की घड़ी आ चुकी है. 2035 में में जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ पिघलने से, बाढ से व अतिवृष्टि से विनाश का खतरा होगा और 2040-50 होते-होते पानी की समस्या होगी. इससे भारत व चीन प्रभावित होंगे, क्योंकि ये बड़ी आबादी वाले देश हैं.

वर्तमान समय में डब्ल्यूएचओ, सामुदायिक चिकित्सा पद्धति के अंदर आयुर्वेदिक व होमियोपैथी एवं प्राकृतिक को जोड़ कर चलना पड़ेगा और उसके अंदर कार्यकारी कमेटी में आयुष चिकित्सकों को भी शामिल करना होगा और हाथ से हाथ मिलाकर सहयोग करना होगा. अब वह समय आ गया है.

अतः आग्रह है कि भारत सरकार जल्द से जल्द इस पर जोर देते हुए इसकी व्यवस्था करते हुए क्वाइलिफाइड डाॅक्टरों की टीम तैयार करे व उनकी मदद ले.

यह लेखक के निजी विचार हैं.

Edited By: Samridh Jharkhand

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