कोरोना संकट और प्रवासी मजदूरों का दर्द : स्वदेशी की दिशा में बढ़ने का आज का तकाजा पर गोविंदाचार्य के विचार

केएन गोविंदाचार्य

असंगठित क्षेत्र में ही देश मे 45 करोड़ खाते हैं. उनमें से पांच करोड़ वापस आने थे. उसमें से प्रदेश के अंदर तो लोग जैसे-तैसे वापस आ सके. फिर भी करोड़ों लोग फंस गये.
प्रदेश के बाहर से लौटने वालो के प्रति कड़ाई बढती गयी. बहुत देर हुई यह समझने में कि ऐसे संकट में घर वापस जाने की इच्छा उचित एवं स्वाभाविक है. रोकने की बजाय व्यवस्थाएं की जानी चाहिए थी जो नहीं हो सकी. फलतः आज का दारुण दृश्य दिख रहा है. यह दृश्य मेन मेड या स्टेट मेड है. देश के प्रभु वर्ग ने कैटल क्लास को भगवान भरोसे छोड़ दिया. समाज ने एक सीमा तक साथ दिया.
ये मजदूर किसी शौकिया हिच हाइकिंग या ट्रेकिंग के नहीं अपने शरीर और प्राणों को जोड़े रखने की कवायद मे लगे हैं. अभी तक 2 लाख मजदूरों को उत्तरप्रदेश में वापस किया गया है इसमें 10 दिन लगे, 20 लाख मजदूरों की वापसी में तो 50 दिन लग जायेंगे. अभी बचे पैसे ख़तम हो चले हैं. काम धंधा बंद है. कोरोना का डर अलग से है तो वे अब मरता क्या न करता की मनस्थिति में चल पड़े हैं. असंगठित क्षेत्र के कितने लोग कहाँ फंसे हैं इसका अंदाज ही लगाया जा रहा है. इसमे भी केंद्र, राज्य सरकारें राजनीति खेल रही हैं.
सत्ता तंत्र पर राहत के लिए निर्भरता, भारतीय समाज व्यवस्था मे अधिक से अधिक पूरक व्यवस्था हो सकती है. समाधान कारक नहीं. विनोबा भावे ने कहा था असरकारी काम के लिए अ-सरकारी होना चाहिए.
कई जगहों पर मजदूरों, कारीगरों, सीमांत किसानों के साथ घरवापसी के दौर मे ढोरों के समान व्यवहार हुआ.
घर वापसी की जद्दोजहद मे लगे लाखों मजदूर और स्वरोजगारों का काफिला हमसे सवाल कर रहा है कि क्या 75 वर्ष की भारत की विकास का इतना ही उनके हिस्से पड़ना वाजिब था या वे अधिक के हकदार हैं. वे हाशिये पर कब? कैसे? किन कारणों से पड़ गये या डाल दिये गये हैं. क्या कोई इन प्रश्नों का उत्तर देगा? या कोई इसके लिए अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करता है? अन्यथा इतनी लंबी-चौड़ी राज्य का उपादेयता किन के लिए रह जाती है? उनकी सुध लेने को सरकार और समाज दोनों को युद्ध स्तर पर इन 45 करोड़ लोगों को प्राथमिकता देनी होगी. भारतीय मजदूर संघ सरीखे समाज के सक्रिय समूहों से संवाद कर साथ लेना होगा. इस क्रम मे सभी को यह ध्यान रखना है कि सभ्य समाज में राज्य व्यवस्था की स्थापना के पीछे प्रस्थापना है कि राज्यवस्था उनके बचाव के लिए सृजित हुई है जो खुद का बचाव न कर सके. State is created to protect those who can not Protect themselves.
सम्पूर्ण राज्य व्यवस्था को इसी कसौटी पर कसना प दीनदयाल जी के विचारों की अनुपालना की शुरुआत होगी.
देश बनाता कौन महान.
कारीगर, मजदूर, किसान.