कम उत्सर्जन हाइड्रोजन के प्रोत्साहन से से 2030 तक जीवाष्म ईंधन की मांग में आ सकती है कमी : आइइए

रांची : इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की सितंबर 2022 में ऊर्जा के रूप में हाइड्रोजन के प्रयोग पर एक वार्षिक रिपोर्ट आयी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर कम उत्सर्जन हाइड्रोजन को प्रोत्साहित किया जाए तो 2030 तक प्राकृतिक गैस की मांग में 14 bcm प्रति वर्ष, कोयला की मांग में 20 mtce प्रति वर्ष और तेल की मांग में 360 kbd प्रति दिन की कमी हो सकती है। जीवाष्म ईंधन स्रोतों में यह कमी क्रमशः 0.3, 0.3 और 0.4 प्रतिशत की होगी।

रिपोर्ट के अनुसार, औद्योगिक क्षेत्र में नवीकरणीय हाइड्रोजन का उपयोग किये जाने पर अल्पावधि में प्राकृतिक गैस की मांग कम करने प्रबल संभावना है, विशेषकर अमोनिया उत्पादन एवं आइ टैंपरेचर हीटिंग उच्च तापमान हीटिंग में।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाइड्रोजन कई क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस की मांग को कम करने में मदद कर सकता है, जैसे – रिफाइनरिंग, बिजली उत्पादन एवं भवन। इन सभी क्षेत्रों में मिला कर 20 बीसीएम प्रति वर्ष प्राकृतिक गैस बचा सकते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, हाइड्रोजन विशेषकर उद्योग में कोयले की मांग को कम कर सकता है। स्टील उद्योग में रिनुबल हाइड्रोजन के उपयोग से कोयले के उपयोग को कम किया जा सकता है। रिन्युबल हाइड्रोजन का उपयोग कोयला आधारित हाइड्रोजन की मांग को भी कम कर सकता है।
क्या है चुनौतियां?
रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में हाइड्रोजन की मांग 94 मिलियन टन तक पहुंच गयी, जो महामारी के पूर्व की स्थिति (2019) के 91 मिलियन टन के पार पहुंच गयी है। लेकिन, इस हाइड्रोजन में एक मिलियन टन से भी कम हरित हाइड्रोजन है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका मतलब है कि जलवायु परिवर्तन के संकट को कोई लाभ नहीं हुआ है।
हालांकि रिपोर्ट में इस बात पर संतोष जताया गया है कि कम उत्सर्जन वाले हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए परियोजनाएं तीव्र गति से बढ रही हैं। यदि वर्तमान में कम उत्सर्जन हाइड्रोजन की जो परियोजनाएं पाइपलाइन में हैं, उन्हें साकार किया गया तो 2030 तक कम उत्सर्जन हाइड्रोजन का उत्पादन प्रति वर्ष 16 से 24 मिलियन टन तक पहुंच सकता है। यह इलेक्ट्रोलिसिस पर आधारित नौ से 14 मिलियन टन हो सकता है और सीसीयूएस के साथ जीवाष्म ईंधन पर सात से 10 मिलियन टन।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व स्तर पर 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए 2030 तक 100 मिलियन टन उत्पादन की आवश्कता होगी। सरकारों के जलवायु वादों को पूरा करने के लिए 2030 तक प्रति वर्ष 34 मिलियन कम उत्सर्जन वाले हाइड्रोजन उत्पादन की आवश्यकता होगी।