गरीबी-अमीरी की तरह भारत में बढ़ रही स्वच्छ ऊर्जा की खाई, पूर्वी राज्यों का प्रदर्शन बेहद बुरा

गरीबी-अमीरी की तरह भारत में बढ़ रही स्वच्छ ऊर्जा की खाई, पूर्वी राज्यों का प्रदर्शन बेहद बुरा

रांची : भारत में गरीबी-अमीरी की बढती खाई की तरह स्वच्छ ऊर्जा की खाई भी लगातार बढ रही है। दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों के अच्छे प्रदर्शन और पूर्वी राज्यों के सैद्धांतिक घोषणाओं तक सीमित रहने भर से यह अंतर और तेजी से बढ रहा है।

वर्ष 2022 में भारत ने 175 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन क्षमता जोड़ने का लक्ष्य रखा है, जिसमें 116 गीगावाट का लक्ष्य अगस्त 2022 तक हासिल किया चुका है, लेकिन इसमें दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों का ही मुख्य योगदान है। आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और तेलंगाना एनर्जी ट्रांजिशन प्रक्रिया की अगुवाई कर रहे हैं, जहंा इसे हासिल करने की दर राष्ट्रीय औसत 8.2 प्रतिशत से अधिक है। देश के भारत ने 2019 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में 2030 तक 450 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा क्षमता हासिल करने का संकल्प व्यक्त किया था।

एनर्जी थिंकटैंक एम्बर के एक विश्लेषण के अनुसार, झारखंड को वर्ष 2022 में लक्षित 2005 मेगावाट क्षमता का स्वच्छ ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर लेना चाहिए, लेकिन यह कोयला उत्पादक राज्य मात्र 100.17 मेगावाट क्षमता का संयंत्र अबतक स्थापित कर सका है। यहां यह गौरतलब है कि झारखंड में कई कोयला आधारित विद्युत इकाइयां हैं और कम से कम तीन बड़ी इकाइयों एनटीपीसी का पतरातू व टंडवा एवं अडानी का गोड्डा का निर्माण वर्तमान में चल रहा है।

वहीं, बिहार अपने लक्ष्य की तुलना में अबतक मात्र 14.03 क्षमता का स्वच्छ ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर सका है। बिहार का निर्धारित लक्ष्य 2762 मेगावाट क्षमता था, जिसके विरुद्ध वह अबतक 387.48 मेगावाट क्षमता का संयंत्र स्थापित करने में कामयाब हुआ है। खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में पूर्वी भारत का एक और बड़ा प्रदेश पश्चिम बंगाल शामिल है, जो अबतक अपने लक्ष्य का 11.08 प्रतिशत क्षमता का संयंत्र स्थापित कर सका है। 5386 मेगावाट क्षमता के निर्धारित लक्ष्य की तुलना में यह राज्य अबतक 596.97 मेगावाट क्षमता का संयंत्र स्थापित कर पाया है।

उत्तरप्रदेश का प्रदर्शन इन राज्यों की तुलना में बेहतर है, जिसने लक्ष्य का 31.53 प्रतिशत क्षमता हासिल की है। 14221 मेगावाट क्षमता के लक्ष्य की तुलना में यहां 4483.87 मेगावाट क्षमता का संयंत्र स्थापित हो चुका है।

वहीं, देश के कई राज्य ऐसे हैं, जिसने निर्धारित लक्ष्य से अधिक क्षमता का सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर लिया है। इस मामले में तेलंगाना पहले नंबर पर है, जिसने अपने लिए निर्धारित लक्ष्य से ढाई गुणा क्षमता हासिल कर लिया है। तेलंगाना ने 2000 मेगावाट निर्धारित लक्ष्य की तुलना में 5068.81 मेगावाट क्षमता हासिल कर लिया है और यह 253.44 प्रतिशत अधिक है।

राजस्थान ने अपने लक्ष्य का 135.86 प्रतिशत हासिल किया है। इस राज्य ने 14362 मेगावाट क्षमता के लक्ष्य की तुलना में 19512.23 मेगावाट क्षमता का स्वच्छ ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर लिया है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह जो एक संघ शासित प्रदेश है, उसने भी लक्ष्य की तुलना में 130.22 प्रतिशत हासिल किया है। 27 मेगावाट के लक्ष्य की तुलना में 35.16 मेगावाट क्षमता का संयंत्र यह छोटा-सा केंद्र शासित प्रांत स्थापित कर चुका है।

वहीं, कर्नाटक ने लक्ष्य की तुलना में 109.41 प्रतिशत मेगावाट क्षमता का संयंत्र स्थापित किया है। इस दक्षिणी राज्य का लक्ष्य 14817 मेगावाट क्षमता था, जबकि अबतक 16212.02 मेगावाट क्षमता का संयंत्र यह स्थापित कर चुका है। गुजरात ने भी लक्ष्य की तुलना में 104.54 मेगावाट क्षमता का संयंत्र स्थापित किया है। इस राज्य का लक्ष्य 17133 मेगावाट क्षमता था, जिसकी तुलना में यह 17910.62 मेगावाट क्षमता का संयंत्र स्थापित कर चुका है।

यहां यह गौरतलब है कि एनर्जी थिंकटैंक एंबर के एक हालिया विश्लेषण में कहा गया है कि भारत को 2030 तक 450 गीगावाट क्षमता का सोलर संयंत्र स्थापित करने के लिए मौजूदा गति की ढाई गुणा अधिक रफ्तार से काम करना होगा। मौजूदा स्थिति की तुलना में भारत को 334 गीगावाट क्षमता अगले 91 महीने में जोड़नी होगी। यानी हर महीने 3.7 गीगावाट सोलर क्षमता का संयंत्र इस अवधि में औसतन स्थापित करना होगा। जबकि इस साल जनवरी से अगस्त तक के उपलब्ध आंकड़े के अनुसार यह 1.4 गीगावाट औसत रहा है।

फिलहाल भारत के कुछ राज्य सौर ऊर्जा लक्ष्य की अगुवाई कर रहे हैं, जबकि कई दूसरे राज्यों का हासिल नगण्य है। यह स्थिति भारत को उसके लक्ष्य से पीछे भी ढकेलती है। इससे एनर्जी ट्रांजिशन की स्थिति में पूर्वी या वैसे राज्य जो संयंत्र स्थापित करने में पीछे रह जाते हैं, वहां इस क्षेत्र में रोजगार के कम मौके भी उपलब्ध हो सकेंगे। इस रूप में यह एक सामाजिक समस्या का कारक भी बनता है।

इसी सप्ताह नेचर के आलेख के अनुसार, भारत को जलवायु परिवर्तन व मानव जनित उत्सर्जन के मद्देनजर अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य की जरूरत है, ताकि पहले से कहीं अधिक तेज गति से अक्षय ऊर्जा की ओर बढा जाए और जीवाष्म ईंधन पर निर्भरता को अधिक तेजी से कम किया जाए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के समक्ष आगे चलकर चुनौती यह होगी कि उसे अपने नवीकरणीय विकास पथ पर अपनी सामाजिक और आर्थिक विकास प्राथमिकताओं को संरेखित करना होगा। दीर्घकालिक लक्ष्य तय करना और देश भर में एक शुद्ध शून्य उत्सर्जन ऊर्जा प्रणाली की कल्पना करना महत्वपूर्ण है। यह न सिर्फ भारत को आर्थिक लाभ प्रदान करेगा बल्कि भारत को वैश्विक जलवायु नेतृत्व में अग्रिम भूमिका में रखेगा।

इस आलेख के अनुसार, आने वाले सालों में भारत में बिजली की मांग में गतिशील वृद्धि होगी। भारत में बिजली उत्पादन विकल्पों का स्थानीय व वैश्विक स्तर पर इसके दीर्घकालिक उत्सर्जन का प्रभाव पड़ेगा।

इस अध्ययन में सोलर पीवी क्षमता को स्वच्छ ऊर्जा का सबसे सस्ता स्रोत बताया गया है और कहा गया है कि एनर्जी ट्रांजिशन के पहले दशक में उत्तरप्रदेश व महाराष्ट्र जैसे बड़े प्रदेशों में सौर पीवी क्षमता में महत्वपूर्ण वृद्धि दिखती है, जो बढती ऊर्जा मांग के मद्देनजर घटते कोयला उत्पादन की तुलना में विशाल सौर क्षमताओं के प्रतिस्थापन का प्रतिबिंब है। रिपोर्ट में पूर्वी राज्यों पश्चिम बंगाल व झारखंड सहित हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, दिल्ली व केरल में इस क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि की बात कही गयी है।

Edited By: Samridh Jharkhand

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