कोयला खनन क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल व स्वच्छ हवा की गंभीर समस्या है : रमेंद्र कुमार

देश के सबसे पुराने मजदूर संगठन ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेंद्र कुमार इनर्जी ट्रांजिशन पर चर्चा के दौरान इस बात से सहमत नहीं होते हैं कि आने वाले कुछ सालों में या दशकों में इनर्जी सेक्टर में देश में कोई बहुत बड़ा बदलाव आ जाएगा। वे अपने क्षेत्र का ही उदाहरण देते हुए कहते हैं यहां नया पॉवर प्लांट क्यों बन रहा है? रमेंद्र कुमार स्पष्ट रूप से मानते हैं कि आने वाले कई सालों तक कोयला ही भारत जैसे बड़ी आबादी वाले व विकासशील देश में इनर्जी का प्रमुख स्रोत रहेगा और हां यह जरूर होगा कि दूसरे वैकल्पिक स्रोतों की हिस्सेदारी इसमें बढेगी। रमेंद्र कुमार से कोयला क्षेत्र में आ रहे बदलाव, बंद खदान, घटते व असुरक्षित होते रोजगार व प्रदूषण के मुद्दे पर राहुल सिंह ने विस्तृत बात की। प्रस्तुत है उसका प्रमुख अंश :

जवाब : देश को ऊर्जा के लिए कोयला की आवश्यकता है और मेरा मानना है कि आने वाले कई सालों तक इसकी जरूरत ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत के रूप में बनी रहेगी। सरकार कोल ब्लॉक आवंटित कर रही है। मुझे लगता है कि इसकी आवश्यकता और बढेगी। अभी आपने रांची से आते समय पतरातू में पॉवर प्लांट बनते देखा होगा, अगर कोयला का उपयोग नहीं होना है तो उसका निर्माण नहीं होना चािहए था। अगर आज वह बन रहा है तो इसका मतलब है कि कम से कम 30-40 साल वह काम करेगा ही। दूसरी बात हम पेरिस समझौते के चलते देश को अंधेरे में तो नहीं धकेल सकते हैं?
सवाल : वैकल्पिक ऊर्जा पर काफी जोर दिया जा रहा है, कोयला क्षेत्र में रोजगार घट रहा है। मजदूर स्थायी नियुक्ति के बजाय कांट्रेक्ट पर जा रहे हैं। आप इन बदलावों के बीच उनकी सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा को कैसे देखते हैं?
जवाब : कोयला क्षेत्र में सीधा रोजगार घट रहा है। सीधी नौकरी में कमी आयी है, लेकिन कांट्रेक्ट पर होने वाली नियुक्तियां काफी बढी हैं। ठेकेदारी मजदूरों की संख्या बढी हैं। कहते हैं, इससे कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन कम पड़ता है और उत्पादकता बढती है।
ट्रेड यूनियनों ने मजदूरों की दशा सुधारने के लिए नीति बनवायी है। हाइ पॉवर कमेटी ने श्रमिकों को चार श्रेणियों – अकुशल, अर्द्धकुशल, कुशल और उच्च कौशल वाला में बांट कर उनके लिए मजदूरी तय करवायी है। हालांकि उनके पास नौकरी की सुरक्षा नहीं है। आवाज उठाने पर उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है।
ठेका मजदूरों के पास सामाजिक सुरक्षा भी नहीं है। उन्हें कोल माइंस प्रोविडेंट फंड का लाभार्थी बनाने के बजाय इपीएफ का लाभार्थी बनाया जाता है, जिसमें सिलिंग है। हम लड़ रहे हैं। हालांकि उन्हें संगठित करना कठिन है, क्योंकि उनकी नौकरी जाने का खतरा होता है।
लेकिन, संगठित होने पर वे लड़ते भी हैं। इसका एक उदाहरण है ओडिशा के एमसीएल भुनेश्वरी माइंस में उन्होंने इसी महीने चार दिन हड़ताल कर अपनी बोनस की मांग मनवायी।
सवाल : आप जिस जिले से आते हैं – रामगढ, वहां की आधी खदानें बंद हैं। क्या वजहें हैं। इससे चीजें कैसे प्रभावित हो रही हैं?
जवाब : कोयला उद्योग में तीन-चार समस्याएं हैं। एक जमीन की समस्या, दूसरा फॉरेस्ट क्लियरेंस, तीसरा इनवॉयरमेंटल क्लियरेंस और चौथा लॉ एंड ऑर्डर से जुड़ी समस्या। ये केंद्र और राज्य सरकारों से संबंधित हैं और सहयोग नहीं होता है तो चीजें प्रभावित होती हैं।
राज्य सरकार का काम है जमीन पर पोजिशन दिलवाना, वह रॉयल्टी लेती है, लेकिन ऐसा करते नहीं। हमारे यहां भुरकुंडा में जनवरी से खदान बंद है, राज्य सरकार से सीटीओ यानी क्लियरेंट टू ऑपरेट नहीं मिल पा रहा है। सियाल माइन में सब तैयार है, लेकिन राज्य सरकार अनुमति नहीं दे रही है। गिद्दी, केदला, सिरका की खदानें बंद हैं।
जो पक्के कर्मचारी हैं वे तनख्वाह पा रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र है तो चल जा रहा है, लेकिन क्या निजी क्षेत्र में ऐसा चल पाता?
सवाल : कोयला खनन के लिए जमीन का अधिग्रहण एक बड़ा मुद्दा है। इस पर काफी विरोध है। हम सीसीएल रजरप्पा क्षेत्र के बोकारो जिले में पड़ने वाले एक गांव गए थे तो ग्रामीणों का कहना था कि प्रबंधन दो एकड़ में नौकरी की बात कह रहा है और हमारे यहां 95 प्रतिशत लोगों के पास उससे कम जमीन है। वहां के निवासियों, रैयतों के हित की रक्षा कैसे होगी?
जवाब : कोल इंडिया एक मात्र कंपनी है जो जमीन के बदले नौकरी देती है। कोई दूसरी कंपनी ऐसी नहीं है, जो जमीन लेने पर नौकरी देती है। रेलवे, एनएचएआइ, एनटीपीसी ने कहां नौकरी दिया। दो एकड़ जमीन पर नौकरी का प्रावधान है, इसके अलावा उससे एम्युनिटी स्कीम बनाया गया है, जिसके तहत लोगों को पेंशन देने का प्रावधान है।
कोल इंडिया देश की बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए बनी कंपनी तो है नहीं।
सवाल : कोयला क्षेत्र की एक अहम समस्या है कि खनन के बाद माइंस को नहीं भरा जाता।
जवाब : उसको बैक फिलिंग कहते हैं। ऐसा बड़ी माइंस में किया जाता है। छोटी माइंस में नहीं करते हैं। यह एक समस्या है।
सवाल : कोयला क्षेत्र में प्रदूषण, हवा की खराब गुणवत्ता, शुद्ध पेयजल, शिक्षा व स्वास्थ्य को लेकर चिंता व्यक्त की जाती है।
जवाब : निश्चित रूप से कोयला क्षेत्र में प्रदूषण व शुद्ध पानी एक बड़ी समस्या है। खनन के कारण डस्ट की वजह से हवा खराब हो चुकी है, इससे लोगों को बीमारियां होती हैं। उसको नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव किया जाता है, लेकिन वह अधिक कर दिया जाएगा तो रोड खराब हो जाएगी। पानी की यहां दिक्कत नहीं है, लेकिन शुद्ध पानी की दिक्कत जरूर है। उसको लेकर काम नहीं हो सका है।
शिक्षा का स्तर ठीक है, कई शैक्षणिक संस्थान हैं। हां, हमारे कोयला क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त डॉक्टरों व बेहतर अस्पताल की दिक्कत है। जो डॉक्टर आते हैं वे ट्रेंड होकर बड़ी जगह व निजी क्षेत्र में चले जाते हैं।