विश्व के अंदर महामारी वायरस से प्रभावित लोग और होमियोपैथी चिकित्सा की भूमिका

डाॅ एसएन झा

होमियोपैथी फिजिशियन
मेडिकल ऑफिसर, देवघर काॅलेज, देवघर
कार्यकारिणी सदस्य, रेडक्रास सोसाइटी, देवघर
वर्तमान में विश्व के अंदर कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन द्वारा किया गया जो लेबोरेटरी में विकसित कर फैलाया गया. विश्व में अशांति के लिए और अपना प्रभाव डालने के लिए ऐसा किया गया. भौगोलिक स्थिति के अनुसार, पूर्ण सूर्यग्रहण होने पर वायरस, बैक्टिरिया व बैसीलाई उत्पन्न होते हैं. फिर भूकंप के कारण धरती पर भीतरी गैस के निकलने से भी वायरस की उत्पत्ति होती है. इसके कारण कई बीमारियां धरती पर आती हैं, यह प्रमाणित है. और, उस वातावरण में लोगों को सावधानीपूर्वक जीने की कला सीखनी पड़ती है.
आधुनिक युग में विश्व के अंदर कई चिकित्सा पद्धति प्रचलित हैं, लेकिन होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति के विकास होने के बाद मेडीसीन को आण्विक शक्ति में परिवर्तित कर उसका उपयोग करने पर अधिक सफलता अन्य चिकित्सा पद्धति की तुलना में मिलती है. होमियोपैथ सिस्टम में फार्मेसी के अंदर एनिमल किंगडम, वेजिटेबल किंगडम, मेटल सिस्टम, नोसोर्स और सारकोक इत्यादि हैं, जिसमें एपिडेमिक डिजीज के अंदर जनरल मेडिसीन के अलावा नोसोर्स ग्रुप की दवा जो रोगग्रस्त लोगों से उसके स्वाब द्वारा पोटेंसी में चेंज कर रोग मुक्त करने में सहायक होता है.
जैसे भेरियोलीनम, मार्गीलिनम, इन्फ्लएंजिनम, प्लैगिनम, ट्यूबोरिकिलम इत्यादि दवाएं हैं. वर्तमान में रोग पर नियंत्रण हेतु होमियोपैथी चिकित्सा में रिसर्च करते हुए इस वायरस पर काम करने की आवश्यकता है और विश्व को रोगमुक्त किया जा सकता है. वर्तमान में कोरोना वायरस पर संबंधित तथ्य दिये गए हैं.
आयुष मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जनहित में जानकारी प्रसारित की गयी है. जैसे कोरोना वायरस पीड़ित लोगों के खांसने, छिंकने से निकलने वाले स्त्राव के संपर्क में आने से यह फैलता है।
कोरोना वायरस का रोगी के द्वारा सार्वजनिक जगहों पर खांसने, छींकने व किसी अन्य के संक्रमित स्थान के संपर्क में आने से यह फैलता है और वह फिर दूसरे को फैलाता है. यह विशेषकर कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले पर आक्रमण करता है और प्रभावित करता है.
मधुमेह, हृदय व फेफड़े वाले रोगी को अधिक प्रभावित करता है. ऐसी स्थिति में वैसी दवाओं का सेवन करना चाहिए जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है.
कोरोना के लक्षण
सिरदर्द, नाक बहना, खांसी, थकान, गले में खरास, सांस लेने में दिक्कत होना, गुर्दे का रोग.
रोकथाम-बचाव
स्वांस रोग से पीड़ित व्यक्तियों से हाथ नहीं मिलाना, चुंबन नहीं लेना, आलिंगन नहीं करना. चार गज की दूरी पर रहना. हाथ मिलाने के बदले नमस्कार करना, पशु पक्षी से भी दूरी बनाए रखना, गर्म पानी का व्यवहार करना, हाथों को बार-बार साफ रखना, खाने से पहले, नहाने के समय, पेशाब करने के समय सफाई पर ध्यान देना. मांस अंडों से बचना. अगर खाना हो तो अधिक उबालकर ही खाएं.
ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति को घबराना नहीं चाहिए और सावधानी पूर्वक व्यक्ति विशेष को अन्य लोगों से दूरी बनाकर रखना चाहिए. सार्वजनिक उपयोग की चीजों का उपयोग नहीं करना चाहिए. ये कुछ आवश्यक सावधानियां हैं, जिससे रोग फैलने पर रोक लगायी जा सकती है.
मेरा मंतव्य है कि होमियोपैथी चिकित्सकों की – जो भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत डीएचएमएस, बीएचएमएस हैं – एक सूची बनायी जाए और उनकी देखरेख में एक मेडिकल टीम तैयार की जाए. इनकी देखरेख में होमियोपैथी चिकित्सक द्वारा चुनी गयी दवा के आधार पर लोगों के जनहित में स्वास्थ्य कैंप डाला जाए ताकि अधिक से अधिक इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सके.
भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा कुछ दवाओं को जनहित में जारी किया गया है, जिसमें आर्सेनिक एलबम की अन्य रोग के साथ कोलरा, इन्फलुऐंजा, वायरस इन्फेक्शन में बड़ा रोल है और भी इसके साथ कुछ दवाएं हैं जो वायरस से जुड़ी हुई हैं.
एक वायरस के भिन्न-भिन्न नाम आए हैं, उन रोगों में बहुत से सिमटम कोरोना वायरस से मिलते जुलते हैं और ऐसी दवाएं बहुत बड़ी सहायक भी हैं. ऐसी परिस्थितियों में बाबानगरी से डीसी, सीएस, आयुष के चिकित्सक की निगरानी में प्रतिरोधक दवा और अन्य दवाओं का उपयोग किया जा सकता है और रोगी की प्रतिरोधक क्षमता बढायी जा सकती है. यह एक बहुत बड़ी होमियोपैथी चिकित्सा की क्रांति होगी.