परिवहन कार्बन उत्सर्जन में रोड ट्रांसपोर्ट का अकेले 70 प्रतिशत हिस्सा, इसलिए जरूरी है इवी ट्रांजिशन

कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में परिवहन माध्यमों का 23 प्रतिशत हिस्सा है

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के लिए परिवहन से संबंधित उत्सर्जन को 2015 के स्तर से 70 से 80 प्रतिशत कम करना होगा। इसमें कहा गया है कि उपलब्ध साक्ष्य यह बताते हैं कि 2050 तक कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन को दो से तीन गीगा टन तक सीमित करना होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक परिवहन प्रणाली में परिवर्तनकारी डीकार्बाेनाइजेशन की आवश्यकता है। इसके लिए तकनीकी बदलाव व मानकों में ऐसे बदलाव जो उच्च गुणवत्ता वाले परिवहन की प्राथमिकता सुनिश्चित करता है और लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक गतिशीलता की मात्रा को कम करता है, की जरूरत है।
चीन और भारत जैसे अधिक आबादी वाले देश जहां वैश्विक जनसंख्या की एक तिहाई से अधिक आबादी रहती है, वहां इवी बेड़ों का विस्तार इसके लिए अहम होगा। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के द्वारा पिछले महीने ग्लोबल इवी आउटलुक 2022 : द इंडिया स्टोरी में वैश्विक स्तर पर इवी की संभावनाओं के साथ भारत में उसकी हिस्सेदारी का विश्लेषण किया गया है।
इसमें कहा गया है कि साल 2030 तक घोषित लक्ष्य 270 मिलियन यानी 27 करोड़ की तुलना में 200 मिलियन यानी 20 करोड़ इवी होंगे। वर्तमान में इनकी संख्या 18 मिलियन है। 2050 तक नेट जीरो के लक्ष्य के लिए इवी बेड़ों का विस्तार 350 मिलियन करना होगा। इसमें कार की सर्वाधिक हिस्सेदारी होगी और उसके बाद वैन की। भारत में 2030 तक 30 प्रतिशत इवी बिक्री का अनुमान है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट में भी 2030 तक भारत में 30 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वेहकिल होने की बात कही गयी है। इसमें भारी वाहनों की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत होगी। इससे भारत में साढे चार मिलियन बैरल प्रति दिन तक पेट्रोलियम की खपत कम होगी और इन वाहनों के लिए करीब 1170 टेरावाट प्रति घंटे बिजली की मांग होगी। इससे 500 मिट्रिक टन कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन 2030 तक कम होगा।
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने इलेक्ट्रिक वेहकिल को बढावा देने के लिए सरकारों को पांच सुझाव दिए हैं। इलेक्ट्रिक वेहकिल को सपोर्ट करना और उसे बनाए रखना। दूसरा इलेक्ट्रिक ट्रक मार्केट की शुरुआत करना। कुल तेल खपत में ट्रक की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत है। तीसरा उभरती एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहन देना, चौथा इवी इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्मार्ट ग्रिड का विकास करना, पांचवा सुरक्षित, लचीला और टिकाऊ सप्लाई चेन का विकास करना। इवी ट्रांजिशन के लिए इन उपायों को जरूरी बताया गया है।
इवी ट्रांजिशन के लिए क्या हो सकती है सही नीति?
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भारत में इवी ट्रांजिशन का दौर शुरू हो चुका है। पिछले दो-तीन सालों में बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों तक इलेक्ट्रिक निजी व व्यावसायिक वाहनों के कई शोरूम खुल गए हैं। आने वाले सालों में इवी सेक्टर में रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न होंगे, ऐसे में इस बदलाव को अधिक न्यायसंगत बनाने की भी जरूरत होगी।
नीति आयोग व डब्ल्यूआरआइ इंडिया ने 31 मई 2022 में इलेक्ट्रिक वेहकिल उद्योग में जस्ट ट्रांजिशन और स्किल डेवलपमेंट विषय पर वेबिनार का आयोजन किया था, जिसके आधार पर बाद में एक रिपोर्ट भी जारी की गयी। इसमें यह सुझाव दिया गया है कि इस बदलाव से मौजूदा कार्यबल पर प्रतिकूल प्रभाव कैसे कम हो और किस प्रकार से इस प्रक्रिया में अधिक गुणवत्ता वाली नौकरियों का सृजन हो।
इसमें कहा गया है – संगठन, क्षेत्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार की मैपिंग और अनुमान लगाना। रोजगार के लिए नीतिगत सहयोग, इवी इकोसिस्टम में उसके उपकरण निर्माताओं की महत्वपूर्ण भूमिका की पहचान करना, उनका मार्गदर्शन करना। अकादमिक व उद्योग जगत के बीच उसके लिए कौशल को बढाने व शिक्षा कार्यक्रम विकसित करने के लिए सहयोग, इवी ट्रांजिशन के दौरान क्षेत्रीय विकास की निरंतरता बनी रहे, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की स्थापना को प्राथमिक कैरियर विकल्प के रूप में चुनने के लिए जागरूकता लाना, महिलाओं और वंचित समुदाय के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के साथ अधिक समावेशी कार्यबल बनाने के लिए ट्रांजिशन का लाभ उठाना।
इस रिपोर्ट में इवी उद्योग के साथ मौजूदा समय की कुछ प्रमुख समस्याओं को चिह्नित किया गया है। जैसे परिवहन उद्योग में पुरुषों का वर्चस्व जिससे महिलाओं के लिए अवसर कम होना, इंडस्ट्रीयल स्टैंडर्ड की कमी, औद्योगिक सहयोग का अभाव, अपेक्षाकृत छोटा बाजार।