पुराने थर्मल पॉवर प्लांट के बंद होने पर नई व्यवस्था बनाने के लिए देश में कोई बाध्यकारी कानून नहीं

पुराने थर्मल पॉवर प्लांट के बंद होने पर नई व्यवस्था बनाने के लिए देश में कोई बाध्यकारी कानून नहीं

पुराने पॉवर प्लांट को बंद करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता
पर्यावरण, श्रमिक हित और आश्रित समुदाय की आर्थिक सुरक्षा को लेकर भी कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं

नयी दिल्ली : इनर्जी सेक्टर में काम करने वाली संस्था आइफॉरेस्ट ने एक नई रिपोर्ट जारी की है, जिसमें थर्मल पॉवर प्लांट के बंद होने के संदर्भ में मौजूदा पर्यावरण, भूमि एवं श्रम कानूनों का आकलन पेश किया गया है। बुधवार, 12 अक्टूबर को जारी इस रिपोर्ट को जस्ट ट्रांजिशन ऑफ कोल बेस्ड पॉवर प्लांट इन इंडिया : ए पॉलिसी एंड रेगुलेटरी रिव्यू (Just Transition of coal-based power plants in India : A policy and regulatory review) नाम दिया गया है। इस रिपोर्ट को एक वेबिनार के दौरान जारी किया गया, जिसमें इस क्षेत्र के विभिन्न पक्षों से जुड़े विशेषज्ञों ने इसके संदर्भ में अपनी बातें रखीं।

आइफॉरेस्ट के अध्यक्ष और सीइओ चंद्र भूषण ने कहा, यदि बिजली मंत्रालय के 25 साल से अधिक उम्र की कोयला आधारित विद्युत इकाइयों को रिटायर करने की सिफारिश लागू होती है तो देश में 50 हजार से 60 हजार मेगावाट क्षमता के कोयला आधारित पॉवर प्लांट 2030 तक बंद हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि ऐसे में यह सवाल पूछना भी लाजिमी है कि क्या देश इतनी बड़ी क्षमता को बंद करने के लिए तैयार है और इसके लिए पर्यावरण, श्रमिक और उस पर निर्भर समुदायों के लिए तर्कसंगत विकल्प क्या होगा।

रिपोर्ट में पाया गया है कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो डिकमशिनिंग या बंद किए जाने और उसके पुनर्प्रयोजन को अनिवार्य बनाता हो। आइफॉरेस्ट की प्रोग्राम लीड मांडवी सिंह ने कहा, एक पॉवर प्लांट, जैसा है उसी स्थिति में बनी रह सकता है। ऐसा कोई कानून नहीं है जो कि उस प्लांट के मालिक को उसे हटाने, उस जगह पर नयी सुविधाएं देने को बाध्य करता हो। डिकमिशनिंग के मुद्दे पर पर्यावरण, श्रम, भूमि और वित्त संबंधी कानून या अस्पष्ट हैं या फिर चुप हैं।

इस मौके पर बोलते हुए एनटीपीसी लिमिटेड की बदरपुर इकाई के सीजीएम डीवी लक्ष्मीपति ने बदरपुर पॉवर प्लांट के बंद होने के अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा, रिटायर होने वाले पॉवर प्लांट की संख्या भविष्य में बएने की संभावना है। ऐसे में वित्तीय पहलू पर स्पष्ट मार्गदर्शन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वित्त पोषण एक चिंता का विषय है, क्योंकि बिजली खरीद समझौतों में बंद होने या डिकमिशनिंग के खर्च का प्रावधान नहीं है।

इस मौके पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक निजामुद्दीन ने कहा, सीपीसीबी एजीटी की गाइडलाइन के संदर्भ में पॉवर प्लांट बंद होने को लेकर पर्यावरण दिशा-निर्देशों के मसौदे को अंतिम रूप देने की दिशा में काम कर रहा है। उन्होंने इस मुद्दे पर टिप्पणियों व सुझावों का स्वागत किया।

डॉ नमिता वाही, फाउडिंग डायरेक्टर लैंड राइट इनिटिएटिव एवं सीनियर फेलो, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने पॉवर प्लांट होने के बाद भूमि को लेकर निर्णय लेने में समुदायों को शामिल करने के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्थानीय समुदाय इस प्रक्रिया में अवश्य शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि जमीनी आरंभ में उन्हीं से ली गयी थी।

मजदूर संगठन इंटक की ओडिशा इकाई के महासचिव सुभाग्य प्रधान ने पॉवर प्लांट बंद होने के बाद श्रमिकों की दुर्दशा का उल्लेख किया और इसे समझाने के लिए तालचेर थर्मल पॉवर प्लांट का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि 2021 में इसके बंद होने के बाद अनुबंध पर काम करने वाले मजदूरों व स्थानीय व्यवसायों को नुकसान झेलना पड़ा, क्योंकि उन्हें बिना किसी मुआवजे व वैकल्पिक अवसर के छोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि हमें कांट्रेक्ट पर काम करने वालों व अनौपचारिक श्रमिकों के लिए कानूनी सुरक्षा उपायों की जरूरत है।

प्रमुख बिंदु –
वर्तमान पर्यावरण कानून प्लांट के रिटायर होने के बाद उस स्थल की समयबद्ध सफाई करने को बाध्य नहीं करते। मौजूदा कानून में संशोधन करने या नया कानून जो इसे अनिवार्य बनाए लाने की जरूरत है।

बिजली संयंत्र निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत भूमि ली जाती है, जो प्लांट के रिटायरमेंट के बाद भूमि को वापस करने, पुनर्विकास और पुनर्बहाली पर खामोश है।

मौजूदा कानून बड़े पैमाने पर औद्योगिक सुविधाओं को बंद किए जाने से निबटने को ध्यान में रखते हुए तैयार नहीं किया गया है। इसमें मुआवजा व सोशल सिक्यूरिटी मैकेनिज्म कमजोर है। खासकर इस क्षेत्र में काम करने वाले अनौपचारिक व कांट्रेक्ट श्रमिकों के मुद्दे पर।

प्लांट को बंद किए जाने की स्थिमि में लागत पर स्पष्ट रूप से विचार नहीं किया गया है।

 

Edited By: Samridh Jharkhand

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