स्पंज-आयरन उद्योगों में डिकार्बनाइजेशन प्रक्रिया से मजबूत होगा औद्योगिक विकास
स्पंज-आयरन उद्योग क्षेत्र में न्यूनतम कार्बन उत्सर्जन और ग्रीन तकनीक के उपायों पर परिचर्चा
रांची : सस्टेनेबल जस्ट ट्रांजिशन टास्क फ़ोर्स, झारखंड सरकार और सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) द्वारा संयुक्त रूप से एक स्टेकहोल्डर्स कंसल्टेशन ‘डिकार्बनाइजिंग स्पंज-आयरन इंडस्ट्रीज इन झारखंड’ का आयोजन किया गया। इस कंसल्टेशन का मुख्य उद्देश्य राज्य में ग्रीन स्टील प्रोडक्शन की प्रक्रिया और नेट-शून्य परिदृश्य में योगदान देने के लिए स्पंज-आयरन क्षेत्र को डिकार्बनाइज करने के तरीकों पर विचार-विमर्श करना था। यह बैठक टास्क फोर्स द्वारा विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों के साथ चल रहे कंसल्टेशन की श्रृंखला का एक हिस्सा है, ताकि डिकार्बनाइजेशन प्रक्रिया पर स्टेकहोल्डर्स की चिंताओं और आकांक्षाओं को जाना-समझा जा सके और राज्य में सस्टेनेबल एनर्जी ट्रांजिशन के रोडमैप बनाने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।
कंसल्टेशन के व्यापक उद्देश्यों के बारे में ए.के. रस्तोगी (आईएफएस सेवानिवृत्त), अध्यक्ष, सस्टेनेबल जस्ट ट्रांजिशन टास्क फोर्स (झारखंड सरकार) ने कहा कि “राज्य में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में उद्योग क्षेत्र की बड़ी हिस्सेदारी रही है। स्पंज-आयरन और स्टील क्षेत्र को डिकार्बनाइजेशन प्रक्रिया के लिए ‘हार्ड टू अबेट’ (कठिन) सेक्टर माना जाता है। राज्य के आर्थिक विकास एवं अधिसंरचना के विस्तार में आयरन-स्टील क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है, इसलिए इस क्षेत्र की संसाधन दक्षता में सुधार के लिए स्पंज-आयरन ईकाइयों को डिकार्बनाइज करना महत्वपूर्ण है। नेट-जीरो लक्ष्य के मद्देनजर इन उद्योगों में बेस्ट प्रैक्टिसेज के अनुरूप सस्टेनेबिलिटी आधारित कम उत्सर्जन वाले ऊर्जा एवं तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाने की आवश्यकता है। डिकार्बनाइजेशन की रणनीतियां राज्य में एनर्जी ट्रांजिशन और सततशील विकास के बड़े लक्ष्य को पूरा करने में योगदान देंगी।’
भारत दुनिया में स्पंज आयरन के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है, जो लगभग 22 मिलियन टन स्पंज आयरन का उत्पादन करता है। इन उद्योगों की उपस्थिति के मामले में झारखण्ड देश के अग्रणी राज्यों में से एक है। ये ईकाइयां छोटे और मध्यम उद्यमों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये इकाइयां बड़े पैमाने पर रोटरी भट्ठों के संचालन और अन्य उत्पादन संबंधी गतिविधियों के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रहती हैं।
इस अवसर पर सीड के सीईओ रमापति कुमार ने उद्योग क्षेत्रों के अनुरूप एक्शन प्लान बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “झारखण्ड एक औद्योगिक राज्य है। डिकार्बनाइजेशन की मौजूदा चुनौतियों को समझने, क्षमताओं का आकलन करने और योजना तैयार करने के लिए अलग-अलग उद्योग क्षेत्रों के लिए विशेष शोध-अध्ययन जरूरी है। सतत औद्योगिक विकास सुनिश्चित करने के लिए और ग्रीन स्टील के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार, उद्योग जगत और वित्तीय संस्थानों को कन्वर्जेन्स एप्प्रोच के साथ काम करने की आवश्यकता है। इसमें टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेशन, नॉलेज मैनेजमेंट, कैपेसिटी बिल्डिंग प्लान एवं समुचित फ्रेमवर्क तैयार करने की जरूरत पड़ेगी। राज्य में हरित आर्थिक विकास और सस्टेनेबल एनर्जी ट्रांजिशन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए उद्योग जगत की प्रमुख भूमिका होगी।’
तकनीकी सत्र में विशेषज्ञों और उद्योग के प्रतिनिधियों की भागीदारी रही, जिन्होंने कई समाधानों पर विचार किया जैसे, सौर स्वच्छ ईंधन का अधिकाधिक इस्तेमाल, ग्रीन टेक्नोलॉजी एवं कम कार्बन उत्सर्जन मॉडल पर आधारित पायलट प्रोजेक्ट स्थापित करना, ऊर्जा-दक्ष तकनीकों का उपयोग बढ़ाना, स्टील स्क्रैप रीसाइक्लिंग पर जोर देना, कार्बन कैप्चर, स्टोरेज एवं युटिलाइजेशन के लिए बुनियादी ढांचा और ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम तैयार करना, कैपेसिटी बिल्डिंग और समुचित फाइनेंसिंग का प्रावधान आदि।
कंसल्टेशन में निजी क्षेत्रों की अग्रणी स्पंज-आयरन इकाइयों, एमएसएमई, थिंक-टैंक और राज्य के क्लीन एनर्जी सोल्यूशन प्रोवाइडर्स की सहभागिता रही। इनमें टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, रूंगटा माइंस, नरसिंह इस्पात, नीलांचल इस्पात, बिहार स्पॉन्ज आयरन, एम्मार अलॉय, आधुनिक पावर, अमलगम स्टील, शाह स्पंज एंड पावर लिमिटेड, डीडी इंटरनेशनल एंड स्टील और कॉर्पोरेट इस्पात अलॉय लिमिटेड जैसी प्रमुख कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भागीदारी की।