लंगटा बाबा मेला 13 जनवरी को, विभिन्न राज्यों के श्रद्धालु चादर पोशी करने पहुंचते हैं यहां
1910 में पौष पूर्णिमा के दिन जीव आत्माओं के साधक संत लंगटा बाबा ने अपना भौतिक शरीर का त्याग किया था
बाबा उर्फ लंगटा बाबा ने वर्ष 1910 में महासमाधि में प्रवेश किया था। तब से लेकर अब तक बाबा के भक्तों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। लंगटा बाबा के खरगडीहा आगमन के बारे में कहा जाता है कि 1870 के दशक में नागा साधुओं की एक टोली के साथ वे यहां पहुंचे थे। उस वक्त खरगडीहा परगना हुआ करता था।
सुधीर सिन्हा
गिरिडीह: जिले के जमुआ प्रखंड मुख्यालय से सात किमी दूर देवघर मुख्यमार्ग के किनारे खरगडीहा में स्थित लंगटा बाबा (Langta Baba) की समाधि पर सभी धर्म के लोगों की अटूट श्रद्धा है। यही वजह है कि प्रतिदिन हिन्दू मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मो के लोग यहां आकर माथा टेकते हैं। लेकिन प्रत्येक वर्ष पौष पूर्णिमा के दिन यहां भक्ति व आस्था का जन सैलाब उमड़ पड़ता है। विभिन्न राज्यों के श्रद्धालु चादर पोशी करने यहां पहुंचते हैं।
कालजयी संत लंगेश्वरी बाबा उर्फ लंगटा बाबा ने वर्ष 1910 में महासमाधि में प्रवेश किया
कालजयी संत लंगेश्वरी बाबा उर्फ लंगटा बाबा ने वर्ष 1910 में महासमाधि में प्रवेश किया था। तब से लेकर अब तक बाबा के भक्तों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। लंगटा बाबा के खरगडीहा आगमन के बारे में कहा जाता है कि 1870 के दशक में नागा साधुओं की एक टोली के साथ वे यहां पहुंचे थे। उस वक्त खरगडीहा परगना हुआ करता था। कुछ दिन के पडाव के बाद नागा साधुओं की टोली अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गयी, लेकिन एक साधु थाना परिसर में ही नंगधडंग अवस्था में धूनी रमाये बैठा रहा। कालांतर में अपने चमत्कारिक गुणों के कारण यही साधु लंगटा बाबा के नाम से विख्यात हुआ।
ले महाराज तें भी खाले...
बाबा की अद्भुत शक्तियों के बारे में बताया जाता है कि एक दिन एक कुत्ता इनके पास आया उसका शरीर जख्मों से भरा हुआ था। शरीर से बह रहे मवाद को देखकर उन्होंने उसके पास कुछ फेंका और कहा ले महाराज तें भी खाले। उसके बाद कुत्ता पूरी तरह निरोग हो गया। लंगेश्वरी बाबा सिर्फ पीड़ित मानवता के लिए ही नहीं बल्कि समस्त प्राणियों के लिए दया की मूर्ति थे। उनके समय में एक बार खरगडीहा में भंयकर रूप से प्लेग रोग फैला। लोग अपने अपने घरों को छोड़कर भागने लगे। बाबा के सेवक भी भागने की तैयारी में थे। तभी उन्होंने कहा देखो पर दवाओं से भरा है। इसके बाद क्षेत्र में प्लेग रोग समाप्त हो गया था।
कहते हैं कि श्रद्धालुओं से प्राप्त खाने पीने या अन्य सामानों को उनके स्वीकार करने के तरीके भी नायाब थे। बाबा जिसे स्वीकार नहीं करते उसे ठंडी करो महाराज की आज्ञा के साथ एक कुएं में फेकवाते थे। वह कुआं आज भी समाधि परिसर में है। वर्ष 1910 में पौष पूर्णिमा के दिन जीव आत्माओं के साधक संत लंगटा बाबा ने अपना भौतिक शरीर का त्याग किया था। इस वक्त क्षेत्र के हिन्दू एवं मुसलमानों को ऐसा लग रहा था कि उनका सब कुछ लुट गया।
बाबा के शरीर के अंतिम संस्कार के लिए भी दोनों समुदाय के लोग आपस में उलझ पड़े थे। बताते हैं कि तब क्षेत्र के प्रबुद्ध लोगों ने विचार विमर्श के बाद दोनों धर्म के रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया था। उसके बाद से प्रत्येक वर्ष पौष पूर्णिमा के दिन यहां मेला लगता है। मेला में उमड़ने वाली भीड़ को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि पीड़ित मानवता की रक्षा करने वाले संत आज भी आमजनों के हृदय में जीवित हैं।
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है लंगटा बाबा की समाधि
बताया जाता है ,की बाबा के अनन्य हिंदू और मुस्लिम भक्त थे, बाबा के प्राण त्यागने के बाद दोनों समुदाय में अंतिम संस्कार को लेकर खींचतान होने लगी सहमति के बाद दोनों धर्म के रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया था। तब से हिन्दू और मुसलमान चादरपोशी करने लगे पर दोनों की चादरपोशी का समय निर्धारण कर दिया गया। हिन्दू समुदाय सुबह की चादरपोशी करते हैं और मुस्लिम समुदाय के लोग दोपहर बाद।
कुआं में डाल देते और कहते ठंडी कर दो महाराज
बताया जाता है कि बाबा को भक्त उन्हें दान स्वरूप जो दिया करते थे, बाबा उसे समाधि स्थल परिसर स्थित कुआं में डाल देते और कहते ठंडी कर दो महाराज लंगटा बाबा के कई चमत्कारिक उदाहारण देखे गये हैं। जिससे उनके भक्त देश के कोने-कोने से यहां चादरपोशी करने आते हैं यहां भंडारे में जरूरत की सारी सामग्री भक्तों की ओर से इकट्ठा की जाती है।
पहली चादरपोशी करते हैं थाना प्रभारी
यह स्थान पूर्व में खरगडीहा थाना (Kharagdiha Police Station) हुआ करता था बाद में थाना जमुआ में बना। खरगडीहा थाना के तत्कालीन थाना प्रभारी बहाबुद्दीन खान भी लंगटा बाबा के परम भक्त थे। बाबा की देख-रेख में कमी नहीं करते इसलिए पहली चादरपोशी का अधिकार भी यहां के थाना प्रभारी को मिला और समाधि के बाद से निरंतर जमुआ थाना प्रभारी ही चादरपोशी करते हैं।
झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा आदि राज्यों से आते हैं बाबा के भक्त
लंगटा बाबा समाधि स्थल (Langta Baba Samadhi Sthal) पर चादरपोशी को लेकर देश के कई राज्यों से भक्त पहुंचते हैं। जिसमें झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल सहित कई अन्य राज्यों के श्रद्धालु शामिल हैं। इस मौके पर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किये जाते हैं।
मेला की निगेहबानी सीसीटीवी कैमरा से की जाएगी
मेला में श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बैरिकेटींग रहेगी । मेला की निगेहबानी सीसीटीवी कैमरा से की जाएगी। मेला के दिन चार पहिया वाहनों को समाधि परिसर से एक किलोमीटर पहले दोनों तरफ रोकने का निर्णय लिया गया।
13 जनवरी को चादरपोशी, भंडारा, महालंगर एवं 14 जनवरी को महाप्रसाद खिचड़ी एवं 15 जनवरी को साधु संतों के बीच चादर वितरण का कार्यक्रम
11 जनवरी को श्री लंगेश्वरी बाबा की पालकी यात्रा, 12 जनवरी को संध्या 6:00 बजे महा आरती का आयोजन किया जाएगा, 13 जनवरी 2025 को लंगटा बाबा का समाधि पर्व निर्धारित है। दिनांक 13 जनवरी को चादरपोशी, भंडारा, महालंगर एवं 14 जनवरी को महाप्रसाद खिचड़ी एवं 15 जनवरी को साधु संतों के बीच चादर वितरण का कार्यक्रम है। विदित हो कि हर् वर्ष की भांति इस वर्ष भी लंगटा बाबा के समाधि पर्व पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ होने की प्रबल संभावना जताई जा रही है।