बिहार विधानसभा चुनाव 2025: सत्ता की कुर्सी पर कौन रखेगा हाथ, और कौन पीछे हट जाएगा?
सीटों की जंग या गठबंधन का ड्रामा? बिहार 2025 का फैसला नजदीक है!
समृद्ध डेस्क: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का परिणाम एक अत्यंत जटिल और कांटेदार मुकाबला होगा, जिसमें पारंपरिक जातिगत समीकरणों और आधुनिक विकास-केंद्रित राजनीति का मिश्रण देखने को मिलेगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की शानदार जीत के बावजूद, यह विधानसभा चुनाव में सफलता की गारंटी नहीं है, क्योंकि राज्य-स्तर पर मुद्दे और गठबंधन की आंतरिक गतिशीलता निर्णायक भूमिका निभाएगी। वहीं, महागठबंधन एक मजबूत मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के साथ उभरा है, लेकिन उसे अपनी संगठनात्मक और आंतरिक चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है।

2024 के लोकसभा और 2020 के विधानसभा चुनाव परिणामों का विश्लेषण
2024 लोकसभा चुनाव के निहितार्थ
2024 के लोकसभा चुनाव में, एनडीए ने बिहार की 40 में से 30 सीटों पर जीत हासिल करके अपना दबदबा बनाए रखा । इस जीत में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) ने 12-12 सीटें, चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (LJP(R)) ने 5 सीटें और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) ने 1 सीट जीती । हालांकि, यह प्रदर्शन 2019 के 39 सीटों की तुलना में कम था, लेकिन इसने केंद्र में सरकार बनाने में नीतीश कुमार की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया । दूसरी ओर, महागठबंधन ने 9 सीटें जीतकर 2019 की तुलना में काफी सुधार दिखाया, जो यह साबित करता है कि विपक्ष अभी भी राज्य की राजनीति में प्रासंगिक है ।
2020 विधानसभा चुनाव का संदर्भ
2020 के विधानसभा चुनाव में, एनडीए ने 243 में से 125 सीटों के साथ बहुमत प्राप्त किया, लेकिन जेडीयू की सीटें (43) भाजपा (74) की तुलना में काफी कम थीं । इस चुनाव की एक महत्वपूर्ण विशेषता चिराग पासवान की लोजपा का अकेले चुनाव लड़ना था। उन्होंने केवल 1 सीट जीती, लेकिन उन्होंने कई सीटों पर जेडीयू के वोटों को काटकर एनडीए के प्रदर्शन को प्रभावित किया । महागठबंधन ने 110 सीटों के साथ कड़ा मुकाबला पेश किया, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (RJD) 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी ।
इन दो चुनावों के बीच के परिणामों की तुलना से एक महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि मिलती है। 2024 का लोकसभा चुनाव परिणाम राष्ट्रीय राजनीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर आधारित था। इसके विपरीत, 2020 का विधानसभा चुनाव राज्य-स्तरीय मुद्दों और चिराग पासवान के 'वोट काटने' के प्रभाव से प्रभावित था। यह तुलना स्पष्ट करती है कि 2024 की जीत को 2025 में दोहराना आवश्यक नहीं है और विधानसभा चुनाव के लिए एक अलग रणनीति और गतिशीलता की आवश्यकता होगी।
एनडीए और महागठबंधन: आंतरिक गतिशीलता और संघर्ष
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA): एकता या कलह?
2024 के लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद, एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर हलचल तेज हो गई है । 2024 में 100% सफलता दर (5 में से 5 सीटें) हासिल करने के बाद, चिराग पासवान की लोजपा(रा) ने विधानसभा चुनाव के लिए 30 से 40 सीटों की मांग की है । इसी तरह, जीतन राम मांझी की हम ने भी अपनी पार्टी के लिए 20 सीटों की मांग की है, हालांकि एक रिपोर्ट के अनुसार उन्हें 10 सीटें मिलने की संभावना है । सार्वजनिक रूप से भाजपा नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर रही है , लेकिन पार्टी के भीतर कुछ लोगों का मानना है कि चिराग पासवान पासवान समुदाय के वोटों को एकजुट कर सकते हैं ।
2024 का प्रदर्शन एनडीए के लिए एक 'दुधारी तलवार' के समान है। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे छोटे सहयोगियों का 100% सफलता दर उन्हें एनडीए में एक अनिवार्य शक्ति बना रहा है । यह जीत उनके लिए अधिक सीटों की मांग करने का आधार बन गई है। यदि भाजपा और जेडीयू उनकी मांगों को पूरा करने के लिए अपनी सीटें कम करते हैं, तो यह उनके अपने कार्यकर्ताओं में हताशा पैदा कर सकता है और उनके पारंपरिक वोट आधार को नाराज कर सकता है । यदि वे मांगों को अस्वीकार करते हैं, तो चिराग पासवान फिर से अकेले चुनाव लड़ सकते हैं, जिससे 2020 जैसा 'वोट काटने' का परिदृश्य बन सकता है। इससे एनडीए के वोटों का विभाजन होगा और महागठबंधन को सीधा फायदा मिलेगा, खासकर दलित वोटों के बीच । यह दिखाता है कि एनडीए की हालिया सफलता ने उसकी आंतरिक नाजुकता को बढ़ा दिया है, जिससे 2025 का चुनाव एक जोखिम भरा खेल बन गया है।
महागठबंधन: नेतृत्व और मतभेद
महागठबंधन के भीतर तेजस्वी यादव का नेतृत्व निर्विवाद है। कई जनमत सर्वेक्षणों में वे मुख्यमंत्री के रूप में पहली पसंद बने हुए हैं, जबकि नीतीश कुमार काफी पीछे हैं । तेजस्वी ने खुद को इंडिया ब्लॉक के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया है । हालांकि, उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता के बावजूद, कांग्रेस उन्हें सीएम चेहरा बनाने पर हिचकिचा रही है । यह दुविधा जनता के बीच भ्रम पैदा कर सकती है और महागठबंधन के अभियान को कमजोर कर सकती है।
तेजस्वी की व्यक्तिगत लोकप्रियता निर्विवाद है और यह दर्शाता है कि उनकी "मुद्दे की बात" मतदाताओं के साथ जुड़ रही है । हालांकि, यह लोकप्रियता सीटों में तब्दील नहीं हो रही है जैसा कि एक सर्वेक्षण से पता चलता है, जो तेजस्वी की उच्च लोकप्रियता के बावजूद एनडीए की जीत की भविष्यवाणी करता है । यह विरोधाभास बताता है कि महागठबंधन सिर्फ एक लोकप्रिय चेहरे पर निर्भर नहीं रह सकता। उसे अपनी संगठनात्मक कमजोरियों को दूर करना होगा और अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव (MY) वोट बैंक से परे अन्य समुदायों को आकर्षित करने के लिए प्रभावी रणनीति बनानी होगी। कांग्रेस की अनिर्णयता गठबंधन की एकता को प्रभावित कर सकती है, जिससे उसकी चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुँच सकता है।
चुनावी मुद्दे और रणनीतियाँ: युद्ध का मैदान
एनडीए की रणनीति: विकास और महिला शक्ति
एनडीए ने महिला मतदाताओं को अपने मुख्य वोट बैंक के रूप में लक्षित किया है । बिहार में महिलाओं की मतदान दर पुरुषों से अधिक रही है । एनडीए, नीतीश कुमार के "सुशासन" मॉडल और विकास कार्यों जैसे पुलों, कॉलेजों और एम्स के निर्माण पर जोर दे रहा है ।
महागठबंधन की रणनीति: 'मुद्दे की बात' और मुफ्त बिजली
तेजस्वी यादव बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और पलायन जैसे आम लोगों से जुड़े मुद्दों को उठा रहे हैं । उनका एक प्रमुख वादा 200 यूनिट मुफ्त बिजली प्रदान करना है, जो मतदाताओं को सीधे आर्थिक राहत प्रदान करने का एक लोकप्रिय प्रयास है । विपक्ष ने मतदाता सूची से 65.5 लाख नाम हटाने के मुद्दे को भी उठाया है, जिसे वे 'वोट चोरी' बता रहे हैं ।
मुद्दों की लड़ाई में 'प्रतीकात्मकता' की भूमिका महत्वपूर्ण है। एनडीए का अभियान नीतीश कुमार की 'सुशासन बाबू' की छवि को फिर से स्थापित करने पर केंद्रित है, जबकि तेजस्वी यादव 'युवा नेता' की छवि गढ़ रहे हैं जो 'सिस्टम' से लड़ रहा है। तेजस्वी का ₹70,000 करोड़ की 'घोटाले की राशि' को महिलाओं को देने का वादा सिर्फ एक वित्तीय वादा नहीं है; यह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का एक मजबूत प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व है, जो एनडीए के 'सुशासन' के दावों पर सीधा हमला करता है। एनडीए का महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करना और 'बिहार बंद' का आयोजन यह दिखाता है कि वे विपक्ष के 'वोट चोरी' जैसे आरोपों की हवा निकालने की कोशिश कर रहे हैं। यह लड़ाई केवल नीतियों की नहीं, बल्कि 'सबसे प्रामाणिक' और 'सबसे विश्वसनीय' कौन है, इसकी प्रतीकात्मक लड़ाई है।
निष्कर्ष और संभावित परिदृश्य
बिहार 2025 का चुनाव कोई एकतरफा लड़ाई नहीं है। यह गठबंधन की एकता, नेतृत्व की विश्वसनीयता, और मतदाताओं के बदलते रुझानों के बीच एक जटिल संतुलन पर निर्भर करेगा। अंतिम परिणाम इन सभी कारकों के अंतिम क्षण में होने वाले प्रभाव पर निर्भर करेगा, जिससे यह एक अप्रत्याशित और दिलचस्प चुनावी मुकाबला बन गया है।
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परिदृश्य 1: एनडीए की बहुमत के साथ वापसी यदि एनडीए अपने आंतरिक मतभेदों को सफलतापूर्वक सुलझा लेता है, सीट बंटवारे पर आम सहमति बना लेता है, और चिराग पासवान जैसे सहयोगियों को साथ रखने में सफल होता है, तो वह 2024 की गति को 2025 में भी बनाए रख सकता है। इसके सफलता के कारक केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं को प्रभावी ढंग से मतदाताओं तक पहुँचाना, महिला वोट बैंक को मजबूत करना, और महागठबंधन की आंतरिक कलह का लाभ उठाना होगा।
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परिदृश्य 2: महागठबंधन की स्पष्ट जीत यह परिदृश्य तभी संभव होगा यदि तेजस्वी यादव अपनी व्यक्तिगत लोकप्रियता को सीटों में बदलने में सफल होते हैं और अपने एमवाई-बीएएपी समीकरण का विस्तार करते हैं। उनकी सफलता के लिए बेरोजगारी और महंगाई जैसे प्रमुख मुद्दों पर जनता का विश्वास जीतना, और एनडीए में संभावित बिखराव का पूरा फायदा उठाना आवश्यक है।
- परिदृश्य 3: त्रिशंकु विधानसभा यह सबसे अधिक संभावित परिदृश्य हो सकता है। यदि एनडीए में सीट बंटवारे पर अंतिम सहमति नहीं बनती है और चिराग पासवान या अन्य छोटे दल अलग चुनाव लड़ते हैं, तो वोटों का विभाजन हो सकता है। इस स्थिति में, कोई भी गठबंधन बहुमत के जादुई आंकड़े (122) को पार नहीं कर पाएगा, जिससे छोटे दल किंगमेकर की भूमिका में आ जाएंगे ।
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