आरोग्य, सुख-समृद्धि व संतान सुख देता है छठ व्रत

आचार्य मिथिलेश मिश्र

सूर्यषष्ठी व्रत के चलते ही इसे छठ की संज्ञा दी गई है। यह मनोवांछित फलदायी है। प्रत्यक्ष जीवन पर इसका तात्कालीन प्रभाव पड़ता है। इसे पुरुष व महिला पूरे सम्मान के साथ मनाते हुए जीवन को संवारने का आशीष मांगते हैं। बिहार के साथ-साथ झारखंड और उत्तर प्रदेश के अलावे देशभर के कई स्थानों में मनाया जाता है।
ऐसे दें सूर्य को जल
प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस अनुपम महापर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। सृष्टि के संचालक और पालनकर्ता सूर्य की उपासना की चर्चा ऋग्वेद में मिली है। ऋग्वेद में सूर्यवंदना का उल्लेख है और इसके बाद से ही इसका प्रचलन आज अपनी ज्योति बिखेर रहा है। जगतस्तस्थुषश्च अर्थात सूर्य को जगत की आत्मा, शक्ति व चेतना को परिलक्षित करता है।
पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार संतान प्राप्ति हेतु राजा प्रियवद द्वारा पहली बार छठ व्रत को करने का उल्लेख मिलता है। महाभारत में सूर्यपुत्र कर्ण द्वारा सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है। द्रौपदी ने भी परिवार के सुख व बेहतर स्वास्थ्य की कामना के लिए सूर्य का हृदय से नमन किया था, जिसका प्रमाण धार्मिक ग्रंथ में वर्णित है।
सूर्यदेव की बहन हैं छठ देवी
मान्यता के अनुसार छठ देवी सूर्यदेव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। व्रत करने वाले गंगा, यमुना या किसी नदी और जलाशयों के किनारे अराधना करते हैं। छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होता है तथा सप्तमी तिथि को इस पर्व का समापन होता है। पर्व का प्रारंभ नहाय-खाय से होता है, जिस दिन व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करती हैं। इस दिन खाने में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है।
संतान का वरदान
नहाय-खाय के दूसरे दिन यानि कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिनभर व्रती उपवास कर शाम में स्नानकर विधि-विधान से रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद तैयार कर सूर्य देव की अराधना कर प्रसाद ग्रहण करती हैं। इस पूजा को खरना कहा जाता है।
अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को उपवास रखकर शाम को व्रतियां टोकरी (बांस से बना दउरा) में ठेकुआ, फल, ईख समेत अन्य प्रसाद लेकर नदी, तालाब, या अन्य जलाशयों में जाकर अस्ताचलगामी सूर्य का अर्घ्य अर्पित करती हैं और इसके अगले दिन यानि सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर घर लौटकर अन्न-जल ग्रहण कर पारण करती हैं।
आस्था के इस पर्व में मान्यता है कि सूर्य देव की कृपा से घर में धन-धान्य का भंडार रहता है। छठी माई संतान प्रदान करती हैं। सूर्य सी श्रेष्ठ संतान हेतु भी ये उपवास रखा जाता है।
छठ गीत की महिमा
पर्व में स्वच्छता और शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। इस पर्व में गीतों का खासा महत्व होता है। छठ पर्व के दौरान घरों से लेकर घाटों तक पारंपरिक कर्णप्रिय छठ गीत गूंजते रहते हैं। व्रतियां जब जलाशयों की ओर जाती हैं, तब वे छठ महिमा की गीत गाती हैं।
छठ में ये गलतियां न करें
छठ की महिमा अपरमपार है और इसे सर्वाधिक कठिन व्रत माना जाता है, जिसका कारण इसके नियम का कठोर होना है। ऐसे में महापर्व के दौरान कुछ काम को नहीं किया जाना चाहिए। छठ पूजा में का प्रसाद बनाने वाली को पूर्ण रुप से साफ-सुथरा रखना चाहिए। प्रसाद को गंदे हाथों से न तो छूना चाहिए और न ही बनाना चाहिए।
सूर्य भगवान को अघ्र्य देने वाले बर्तन चांदी, स्टेनलेस स्टील, ग्लास या प्लास्टिक का न हो। इसके अलावे छठ पूजा का प्रसाद उस जगह पर नहीं बनाना चाहिए जहां खाना बनता हो। पूजा का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर ही पकाएं।
व्रतियों को बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए। व्रती महिलाएं फर्श पर चादर बिछाकर सोएं। प्रसाद बनाते वक्त कुछ न खाएं व अपने कपड़े साफ-सुथरें रखें। बगैर हाथ धोए कोई सामान न छुएं। बच्चों को छठ पूजा का प्रसाद जूठा न करने दें, जब तक छठ पर्व संपन्न न हो। सात्विक भोजन ग्रहण करते हुए लहसुन-प्याज के सेवन से दूर रहें।
पूजा के समय में अभद्र भाषा का प्रयोग न करें। इसके अलावे यदि आप व्रती है तो बगैर सूर्य को अर्घ्य दिए जल व भोजन न लें। छठ पूजा के दौरान मांसाहार न लाएं और न ही इसका सेवन करें।