झारखंड में बाल संरक्षण की स्थिति दयनीय, बाल अधिकार कार्यकर्ता ने स्पीकर से विशेष चर्चा कराने की मांग की
रांची : झारखंड बाल तस्करी व बाल अपराध से सर्वाधिक पीड़ित राज्यों में शामिल है। इसके बावजूद यहां बाल संरक्षण उपायों का हाल बेहद बदहाल है। ऐसे में बाल अधिकार कार्यकर्ता उपेंद्र नाथ दुबे ने झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो को एक पत्र लिख कर विधानसभा के बजट सत्र में इस पर विशेष चर्चा कराने की मांग की है।
उपेंद्र नाथ दुबे ने इस संबंध में हाल ही में स्पीकर रवींद्र नाथ महतो को एक पत्र लिखा है और कहा है कि बाल मित्रवत दृष्टिकोणों को विकसित करने के लिए आगामी सत्र में सदन में विशेष परिचर्चा करायी जाए। दुबे ने इस संबंध में बताया है कि वे स्पीकर की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं और इस संबंध में जनप्रतिनिधियों से भी पहल का आग्रह करते हैं।
उपेंद्र नाथ दुबे गढवा जिला की बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने स्पीकर को लिखे पत्र में कहा है कि लोकतंत्र के सभी चार स्तंभों के बीच समन्वय से शोषित, पीड़ित, अनाथ, दिव्यांग एवं जरूरतमंद बच्चों के लिए मास्टरप्लानिंग पर जागरूकता हेतु सार्थक पहल कराए जाने के लिए यह आवश्यक है।
उपेंद्र नाथ दुबे ने पत्र में लिखा है कि समस्याग्रस्त व अभावग्रस्त परिवार होने के साथ ही पीड़ित परिवारों की अशिक्षा के कारण राज्य में बाल अधिकारों का अतिक्रमण बढा है। उन्होंने कहा कि पिछले 21 सालों में हमने इस क्षेत्र में पाया कम है, खोया ज्यादा है। उन्होंने कहा है कि अगर बाल अधिकारों पर चर्चा की अनुमति स्पीकर द्वारा दी जाती है और सदस्य इस पर सदन में चर्चा करते हैं तो झारखंड के लिए यह दिन ऐतिहासिक होगा और बाल अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों का मनोबल बढाने वाला होगा।
उन्होंने कहा है कि किशोर न्याय अधिनियम के कुछ संदर्भ लेख की यहां पांच सालों में समीक्षा भी नहीं हुई है। समेकित बाल विकास योजनाओं का एक धुरी पर चलना कि नो डिसिजन, नो रिवीजन शायद मजबूरी है। उन्होंने कहा कि लोक कल्याणाकारी राज्य की इस परिकल्पना के बीच राज्य की नियति संविदा आधारित बाल संरक्षण की ही रही है। उन्होंने पत्र में बच्चों के लिए काम करने वाले किशोर न्याय बोर्ड एवं बाल कल्याण समिति के सीमित कार्यदिवस, सीमित कार्यकाल और अल्प राशि आवंटन व आवंटित राशि के लैप्श होने के मुद्दे को भी पत्र में उठाया है।
उपेंद्र नाथ दुबे ने अपने पत्र में लिखा है कि पत्र में बाल अधिकार संरक्षण से जुड़े विभिन्न मुद्दों को उठाया है। पत्र में राज्य में बाल संरक्षण आयोग की पद रिक्तता का उल्लेख किया गया है। यह भी उल्लेख है कि बाल कल्याण समितियों में कोरम का अभाव है, वे एक या दो सदस्यों से युक्त या सदस्यविहीन भी हैं। किशोर न्याय बोर्ड में कई जिलों में पद रिक्त हैं। जिला बाल संरक्षण इकाई में 12 की जगह तीन व चार कर्मचारी हैं, पद रिक्तता है? सभी जिलों में विशेष दत्तक ग्रहण संस्था का होना मेनडेटरी है, जो नहीं है। कई जिलों में बालक-बालिका गृह नहीं है, कोई फोस्टर फैमिली भी नहीं है, शेल्टर का कोई विकल्प नहीं है।
उन्होंने लिखा है कि प्रशिक्षण एवं समन्वय के अभाव में स्टैक होल्डर्स के बीच तनाव बढ रही है। बाल कल्याण से जुड़ी विभिन्न संस्थाओं के बीच समन्वय का घोर अभाव है। नियमानुसार, बाल संरक्षण एवं देखभाल के सभी तरह के बच्चे 24 घंटे के अंदर बाल कल्याण समिति में प्रस्तुत कराए जाएंगे। पोक्सो मामले में प्राथमिकी उपलब्ध करायी जाएगी। उन्होंने इस संबंध में मुआवजा देने के प्रावधान का उल्लेख करते हुए कहा है कि प्रक्रियागत दिक्कतों की वजह से मुआवजा राशि सरेंडर हो जाती है। उन्होंने बाल मित्र थाना, बाल मित्र न्यायालय की मानिटरिंग की आवश्यकता का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि बच्चों के लिए बजट के प्रावधान हेतु मास्टर प्लानिंग का घोर अभाव है।
विभिन्न विपरीत परिस्थितियों में रह रहे बच्चों पर चर्चा कराने की मांग भी उपेंद्र नाथ दुबे ने की है। उन्होंने लिखा है कि लैंगिक हिंसा, बाल तस्करी, बाल विवाह की बढती घटानाओं से राज्य की छवि प्रभावित हो रही है। इसकी बड़ी वजह संबंधित क्षेत्र में कार्य करने वाली एजेंसियों के बीच समन्वय का अभाव है। कोष व संसाधनों का उचित उपयोग नहीं किए जाने से ऐसी घटनाओं में वृद्धि हो रही है। उन्होंने पत्र में सभी जनप्रतिनिधियों से इन मुद्दों पर विस्तृत चर्चा कराने का आग्रह किया है।