तुलसी विवाह 2025: जानिए कब है शुभ तिथि, पूजन विधि, मुहूर्त और पौराणिक कथा

तुलसी विवाह 2025: जानिए कब है शुभ तिथि, पूजन विधि, मुहूर्त और पौराणिक कथा
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समृद्ध डेस्क: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का पर्व अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। यह पावन अनुष्ठान कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर मनाया जाता है, जब तुलसी माता का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप से संपन्न होता है। वर्ष 2025 में यह शुभ अवसर 2 नवंबर, रविवार को मनाया जाएगा।​​

तुलसी विवाह 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वादशी तिथि 2 नवंबर 2025 को प्रातः 7 बजकर 31 मिनट से प्रारंभ होगी और इसका समापन 3 नवंबर को प्रातः 5 बजकर 7 मिनट तक होगा। देवउठनी एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर यह विवाह संपन्न कराया जाता है।​​

तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 35 मिनट से प्रारंभ होगा। गोधूलि मुहूर्त शाम 5 बजकर 35 मिनट से 6 बजकर 1 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 4 बजकर 50 मिनट से 5 बजकर 42 मिनट तक और अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 42 मिनट से दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक मान्य रहेगा।​

तुलसी विवाह की पौराणिक कथा

तुलसी विवाह के पीछे एक अत्यंत रोचक और भावपूर्ण पौराणिक कथा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी अपने पूर्व जन्म में वृंदा नाम की पतिव्रता नारी थीं, जो भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। उनका विवाह दैत्यराज जालंधर से हुआ था, जो अत्यंत शक्तिशाली और पराक्रमी राक्षस था।​​

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वृंदा के पतिव्रता धर्म की शक्ति के कारण जालंधर अजेय हो गया था और उसने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परेशान कर दिया। जालंधर का वध करने के लिए उसकी पत्नी वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना आवश्यक था। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग किया, जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने जालंधर का वध कर दिया।​​

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जब वृंदा को भगवान विष्णु के इस छल का पता चला, तो उन्होंने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को शालिग्राम पत्थर बनने का श्राप दे दिया। भगवान विष्णु ने उनके श्राप को स्वीकार किया और शालिग्राम बन गए। बाद में वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर दिया और स्वयं सती हो गईं। उनकी राख से एक पौधा उत्पन्न हुआ, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और वरदान दिया कि उनके शालिग्राम स्वरूप से तुलसी का विवाह होगा। तभी से प्रतिवर्ष कार्तिक मास में तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है।​​

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तुलसी विवाह पूजन सामग्री की संपूर्ण सूची

तुलसी विवाह को विधिवत संपन्न करने के लिए निम्नलिखित पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है। शालिग्राम जी की मूर्ति या प्रतिमा, तुलसी का पौधा, पूजा के लिए लकड़ी की चौकी, कलश, लाल रंग का वस्त्र और पानी वाला नारियल अवश्य रखें।​​

फल और सब्जियों में सिंघाड़ा, अमरूद, अनार, आंवला और सीताफल शामिल करें। इसके अतिरिक्त कपूर, आम की लकड़ियां, चंदन, धूप और हल्दी की गांठ की भी आवश्यकता होती है। सोलह श्रृंगार की सामग्री जैसे बिछिया, पायल, सिंदूर, मेहंदी, चूड़ियां, लाल चुनरी, बिंदी और अन्य श्रृंगार सामग्री अवश्य रखें।​​

गन्ने के डंडे मंडप बनाने के लिए, घी, दीपक, रोली, कुमकुम, अक्षत, फूल और माला, गंगाजल, दूध, खीर और पूड़ी भोग के लिए तथा पान और सुपारी भी आवश्यक हैं।​​

तुलसी विवाह की संपूर्ण विधि

तुलसी विवाह करने वालों को इस दिन कन्यादान करने के लिए व्रत अवश्य रखना चाहिए। इस पावन अनुष्ठान में शालिग्रामजी की ओर से पुरुष वर्ग और तुलसी माता की ओर से महिला वर्ग एक साथ इकट्ठे होते हैं।​​

शाम के समय स्त्री और पुरुष अच्छी तरह तैयार होकर विवाह के लिए एकत्रित होते हैं। सबसे पहले घर के आंगन में एक सुंदर रंगोली बनाएं और उस पर लकड़ी की चौकी स्थापित करें। चौकी पर तुलसी के पौधे को बीच में रखें और उन्हें सोलह श्रृंगार की सामग्री तथा लाल रंग की चुनरी या साड़ी से सजाएं।​​

तुलसी माता को तैयार करने के बाद गन्ने का मंडप बनाएं और अष्टदल कमल बनाकर चौकी पर शालिग्रामजी को स्थापित करें। उनका भी अच्छी तरह श्रृंगार करें। कलश में पानी भरें और कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं। फिर आम के पांच पत्ते रखकर उसके ऊपर लाल वस्त्र में लपेटा हुआ नारियल रखें।​​

कलश स्थापित करने के बाद शालिग्राम को तुलसी माता के दाहिनी ओर रखें। घी का दीपक जलाएं और 'ओम श्री तुलस्यै नम:' मंत्र का जाप करें। शालिग्राम और तुलसी के पौधे पर गंगाजल छिड़कें। शालिग्राम पर दूध और चंदन मिलाकर तिलक लगाएं तथा तुलसी के पौधे पर रोली से तिलक करें।​​

तिलक के पश्चात फल, फूल और सब्जी आदि सामग्री शालिग्राम और तुलसी माता को अर्पित करें। पुरुष शालिग्राम को अपनी गोद में उठाएं और महिला तुलसीजी को उठाएं। तुलसी की सात बार परिक्रमा करें और इस दौरान सभी लोग मंगल गीत गाएं तथा विवाह के मंत्रों का उच्चारण करें।​​

परिक्रमा के बाद तुलसी माता और शालिग्राम जी को खीर व पूड़ी का भोग लगाएं। अंत में विधि-विधान से आरती करें और सभी लोगों को प्रसाद बांटें।​​

पद्म पुराण के अनुसार पूजन विधि और नियम

पद्म पुराण में कार्तिक शुक्ल नवमी को तुलसी विवाह का उल्लेख किया गया है। लेकिन अन्य ग्रंथों के अनुसार प्रबोधिनी से पूर्णिमा पर्यंत के पांच दिन अधिक फल देते हैं। व्रती को चाहिए कि विवाह के तीन मास पूर्व से तुलसी के पेड़ को सिंचन और पूजन से पोषित करे।​​

प्रबोधिनी या भीष्मपंचक अथवा ज्योतिष शास्त्रोक्त विवाह मुहूर्त में तोरण-मंडप की रचना करके चार ब्राह्मणों को साथ लेकर गणपति-मातृकाओं का पूजन, नान्दीश्राद्ध और पुण्याहवाचन करें। मंदिर की साक्षात मूर्ति के साथ सुवर्ण के लक्ष्मीनारायण और पोषित तुलसी के साथ सोने और चांदी की तुलसी को शुभासन पर पूर्वाभिमुख विराजमान करें।​​

सपत्नीक यजमान उत्तराभिमुख बैठकर तुलसी विवाह-विधि के अनुसार गोधूलीय समय में वर (भगवान) का पूजन, कन्या (तुलसी) का दान, कुशकण्डी हवन और अग्नि-परिक्रमा करके वस्त्राभूषणादि दान करें और यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन कराकर स्वयं भोजन करें।​​

कार्तिक शुक्ल नवमी को प्रातः स्नानादि करके मकान के अंदर बालू की वेदी बनाएं। उस पर तुलसी का प्रत्यक्ष पेड़ और चांदी की सपत्र शाखा तथा सोने की मंजरी युक्त निर्मित पेड़ रखकर यथाविधि पूजन करें। ऋतु काल के फल-पुष्पादि का भोग लगाएं।​​

एक दीपक को घी से पूर्ण करके लंबी बाती से उसे अखंड प्रज्वलित रखें और निराहार रहकर रात्रि में कथा वार्ता श्रवण करने के अनंतर जमीन पर शयन करें। इस प्रकार नवमी, दशमी और एकादशी का उपवास करने के अनंतर द्वादशी को ब्राह्मण दंपति को दान-मान सहित भोजन कराकर स्वयं भोजन करें।​​

तुलसी विवाह का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

तुलसी विवाह करने से व्यक्ति को कन्यादान के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह अनुष्ठान जीवन से दुख, कलह और बाधाओं को दूर करता है तथा घर में सुख-शांति लाता है। तुलसी को मां लक्ष्मी का अवतार माना गया है, इसलिए यह विवाह दांपत्य जीवन में प्रेम और स्थिरता का प्रतीक है।​

धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि तुलसी विवाह कराने से घर में सौभाग्य, शांति और धन-समृद्धि का वास होता है। जो व्यक्ति तुलसी विवाह करवाता है, उसके घर में लक्ष्मी का वास होता है और कभी दरिद्रता नहीं आती। हमेशा भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।​​

अविवाहित कन्याओं के लिए यह दिन बहुत शुभ होता है, क्योंकि माना जाता है कि तुलसी विवाह में भाग लेने से उन्हें योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। जिन लोगों के वैवाहिक जीवन में बाधाएं या देरी होती है, उन्हें तुलसी विवाह में भाग लेना अत्यंत शुभ माना गया है।​

विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि होती है और पति-पत्नी के बीच प्रेम और स्नेह बढ़ता है। इससे दांपत्य जीवन में खुशियां आती हैं और आपसी मनमुटाव तथा दूरियों में कमी आती है।​

कार्तिक मास में तुलसी पूजन का विशेष महत्व

कार्तिक मास को भगवान विष्णु का महीना माना जाता है और इस पूरे मास में तुलसी पूजन का विशेष महत्व है। इस मास में तुलसी की पूजा करने से घर में खुशहाली, सुख-समृद्धि आती है और भगवान विष्णु व मां लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है।​

पद्म पुराण में लिखा है कि जो कोई भी तुलसी स्तोत्र का पाठ करता है, भगवान श्रीविष्णु उसके बत्तीस अपराध क्षमा कर देते हैं। तुलसी स्तोत्र पढ़ने से भगवान व्यक्ति को सुख, सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करते हैं।​

कार्तिक मास में रोजाना सुबह-शाम तुलसी की पूजा करें और जल चढ़ाएं। शाम के समय तुलसी के पास घी का दीपक जलाएं और सात बार तुलसी की परिक्रमा करें। तुलसी मंत्रों का जाप करने से भगवान श्रीहरि के साथ-साथ मां लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है।​

कार्तिक मास में तुलसी पूजन करने से कुंडली के दोषों को शांत किया जा सकता है और वातावरण शुद्ध होता है, जिससे बुरी शक्तियां दूर भागती हैं। इस महीने में तुलसी पूजा करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सकारात्मकता आती है।​

तुलसी विवाह से मिलने वाले लाभ

तुलसी विवाह करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। सबसे पहला और महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इससे कन्यादान का पुण्य फल मिलता है। घर में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और वैभव की प्राप्ति होती है।​​

वैवाहिक जीवन की मधुरता और स्थिरता के लिए यह विशेष रूप से शुभ माना जाता है। विवाह योग में देरी हो रही हो तो तुलसी विवाह करने से जल्दी विवाह के योग बनते हैं। अविवाहित कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है।​​

घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मकता दूर होती है। मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। संतान प्राप्ति, धन-समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं।​​

तुलसी विवाह का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्रेम, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक भी है। तुलसी और विष्णु के विवाह का यह उत्सव घर-परिवार में सकारात्मकता और मंगल की ऊर्जा लाता है

Edited By: Samridh Desk
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