जमीन से पाताल की गहराई: पौराणिक और वैज्ञानिक नज़रिए से

राणों में अनंत गहराई, विज्ञान में 6,371 किमी का सफर

जमीन से पाताल की गहराई: पौराणिक और वैज्ञानिक नज़रिए से
(सोर्स- गूगल)

ताल की अवधारणा को पौराणिक कहानियों और विज्ञान दोनों अलग-अलग तरह से परिभाषित करते हैं. कहानियों में यह पृथ्वी के नीचे की एक रहस्यमयी और अनंत दुनिया है, जबकि विज्ञान इसे पृथ्वी के केंद्र तक की मापी गई गहराई (6,371 किमी) मानता है. हालाँकि, इंसान अभी तक केवल 12.3 किमी की गहराई तक ही पहुँच पाया है

जमीन से पाताल की गहराई का सवाल सुनकर दिमाग में कई तरह की बातें आती हैं. हमारे पुराने धार्मिक ग्रंथों में पाताल को पृथ्वी के नीचे का एक रहस्यमय दुनिया बताया गया है. लेकिन अगर साइंस की नजर से देखें, तो ये पृथ्वी की गहराई की बात करता है. आइए, इसे आसान और बोलचाल की भाषा में समझते हैं. हमारी हिंदू कहानियों में पाताल को सात निचले लोकों में से एक माना जाता है. इनका नाम है अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल. ये कोई आम जगह नहीं, बल्कि एक ऐसी दुनिया है जहां नाग, दानव और असुर रहते हैं. पुराणों में लिखा है कि भगवान विष्णु ने अपने वराह अवतार में पाताल से पृथ्वी को उठाया था.

पाताल की गहराई को इन कहानियों में अथाह यानी बिना किसी माप के बताया गया है. इसका मतलब ये कि ये इतना गहरा है कि कोई इसका अंत नहीं जानता. ये गहराई सिर्फ दूरी की बात नहीं, बल्कि हमारे मन के डर, रहस्य और अनजान दुनिया की कल्पना को दिखाती है. जैसे, महाभारत में अर्जुन और श्रीकृष्ण की पाताल यात्रा की कहानी है, जो शायद एक प्रतीक है जैसे आत्मा की गहराई में उतरना. कुछ पुराणों में पाताल की गहराई को हजारों योजन (एक योजन यानी 12-15 किलोमीटर) बताया गया है, लेकिन ये भी सिर्फ एक तरीका है अनंत को समझाने का.

 साइंस की नजर से

अगर पाताल को पृथ्वी के नीचे की गहराई मानें, तो हमें पृथ्वी की बनावट को समझना होगा. पृथ्वी की सतह से इसके केंद्र तक की दूरी करीब 6,371 किलोमीटर है. पृथ्वी को चार हिस्सों में बांटा गया है-

1. ’’क्रस्ट (ऊपरी परत)’’: ये पृथ्वी की सबसे पतली परत है, जहां हम रहते हैं. समुद्र के नीचे ये 5-10 किलोमीटर और जमीन पर 30-70 किलोमीटर मोटी है.
2. ’’मेंटल’’: ये क्रस्ट के नीचे है और 2,900 किलोमीटर तक जाता है. ये गर्म चट्टानों से बना है, जो इतनी गर्मी और दबाव में हैं कि धीरे-धीरे हिलती-डुलती रहती हैं.
3. ’’बाहरी कोर’’: ये तरल है, लोहे और निकल से बना, और 2,200 किलोमीटर मोटा है.
4. ’’आंतरिक कोर’’: ये पृथ्वी का सबसे गहरा हिस्सा है, ठोस है, और 1,220 किलोमीटर बड़ा है. इसका तापमान सूरज की सतह जितना, यानी 5,500 डिग्री सेल्सियस!

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साइंस में इंसान ने ज्यादा गहराई तक नहीं पहुंचा. सबसे गहरी खुदाई रूस में हुई, जिसे ’’कोला सुपरडीप बोरहोल’’ कहते हैं. वो सिर्फ 12.3 किलोमीटर तक गई, जहां तापमान 180 डिग्री सेल्सियस हो गया. इससे ज्यादा गहराई में जाना अभी मुमकिन नहीं, क्योंकि वहां गर्मी और दबाव बर्दाश्त से बाहर है.

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कुल मिलाकर पौराणिक और साइंटिफिक नजरिए में फर्क है. कहानियों में पाताल एक रहस्यमय, अनंत दुनिया है, जो हमारे मन की गहराई और अनजान चीजों को दिखाता है. साइंस में ये पृथ्वी की परतों की गहराई है, जिसे हम माप सकते हैं. मिसाल के तौर पर, पुराणों में पाताल की गहराई को हजारों किलोमीटर बताते हैं, लेकिन साइंस कहता है कि पृथ्वी का केंद्र 6,371 किलोमीटर पर है. दोनों में एक बात कॉमन है-हमारी जिज्ञासा. कहानियां हमें आध्यात्मिक रास्ता दिखाती हैं, और साइंस हमें हकीकत समझाता है.

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तो अंत में यही कहा जा सकता है, अगर पुराणों की मानें, तो ये अनंत है.एक ऐसी जगह जो हमारे मन की कल्पना से भी परे है. साइंस की मानें, तो पृथ्वी के केंद्र तक 6,371 किलोमीटर, लेकिन हम सिर्फ 12.3 किलोमीटर तक पहुंचे हैं. दोनों नजरिए हमें एक ही बात सिखाते हैं.हम इंसान हमेशा अनजान को जानने की कोशिश करते हैं, चाहे वो कहानियों से हो या साइंस से. पाताल की गहराई सिर्फ एक सवाल नहीं, बल्कि हमारी उत्सुकता की कहानी है.

संजय सक्सेना,लखनऊ
  वरिष्ठ पत्रकार

 

Edited By: Sujit Sinha
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सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।

'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

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