आरके सिन्हा की कलम से : जल्द आयेगा पटरी पर वापस लौटने का वक्त

आरके सिन्हा की कलम से : जल्द आयेगा पटरी पर वापस लौटने का वक्त

आरके सिन्हा

अब यह कमोबेश सबको समझ आ गया होगा कि वैश्विक महामारी कोविड19 के साथ हमें रहना सीखना ही होगा। इस बात को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि जब तक इस भयानक महामारी की कोई वैक्सीन ईजाद नहीं होती तब तक तो बचाव के अलावा कोई दूसरा कोई रास्ता नहीं है। इसलिए जरूरी है कि फैक्ट्रियां, दफ्तर आदि भी खुलें।

देश में विगत मार्च महीने के तीसरे हफ्ते से ही लॉकडाउन के हालात बने हुए हैं। ये अनिश्चितकाल के लिए तो नहीं रहेंगे। केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और लघु उद्योग मंत्री नितिन गडकरी ने भी तो अब यह कहा कि सरकार सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करते हुए सार्वजनिक परिवहनों के संचालन के लिए दिशा-निर्देश तैयार कर रही है। उन्होंने कहा, पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी जल्द ही शुरू हो सकता है। गडकरी जी ने जो कहा उसके संकेतों से साफ है कि सरकार अब जिंदगी दुबारा से पहले की तरह बहाल करने की तरफ बढ़ रही है। वह ऑरेंज और ग्रीन जोनों में शर्तों के साथ ज्यादातर कारोबारी गतिविधियों की छूट देने की योजना बना रही है। ग्रीन जोन के अंदर बसें भी चलाई जा रही हैं। पिछली 4 मई से ग्रीन और ऑरेंज जोन में टैक्सी और कैब को भी संचालन की अनुमति दी दी गयी है। इसमें ड्राइवर के अलावा एक ही यात्री बैठ सकते हैं। मतलब ये है कि अब दफ्तर और लंबे समय तक तो बंद नहीं किए जा सकते हैं। ये तो खुलेंगे ही और खुलने भी लगे हैं।

राजधानी दिल्ली तथा मुंबई में कई रीयल एस्टेट कंपनियों, चार्टर्ड एकाउंटेंट फार्मों, प्रकाशन समूहों वगैरह के दफ्तर खुलने लगे हैं। दिल्ली के दरियागंज में किताबों और स्टेशनरी की दुकानें भी खुल गयीं। हालांकि अभी इधर ग्राहक तो कम ही आ रहे हैं। नई सड़क में तो थोक में स्टेशनरी का सामान मिलता है। यहीं से पड़ोसी राज्यों के दुकानदार भी माल खरदीते हैं।

इस बीच, सबको पता है कि लॉकडाउन के काल में भी अनेक सरकारी महकमें सामान्य तरीके से काम करते ही रहे थे। जिनमें अस्पताल, बिजली, पानी, बैंक आदि के विभाग शामिल थे। इनमें रोज की तरह से काम होता रहा था। पहले से कुछ ज्यादा ही। हां, अगर बात बैंकों की करें तो उनमें तो सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों का सख्ती से पालत हो रहा है। चूंकि बैंकों में रोज बड़ी संख्या में ग्राहक आते हैं, इसलिए बैंक चार-पांच लोगों से ज्यादा को बैंक के अंदर आने नहीं देते। इसके साथ ही सारे बैंक कर्मी काम के वक्त मास्क और दस्ताने भी पहनते हैं।

बहरहाल अब कमोबेश सभी दफ्तर धीरे-धीरे खुलने लगेंगे। देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए यह जरूरी भी है कि दफ्तर और फैक्ट्रियां चलें। इसलिए इनके ताले खुलेंगे। हां, अभी इनमें कोविड19 के फैलने से पहले के हालात देखने को तो हरगिज नहीं मिलेंगे। जब तक कोविड19 महामारी की कोई वैक्सीन ईजाद नहीं हो जाती तब तक तो सावधानी तो बरतनी ही होगी। यह काम संभव है और जरूरी भी ।

फिलहाल जो दफ्तर खुल चुके हैं या आने वाले दिनों में खुलने जा रहे हैं, उनके बीमार कर्मियों से कहा जायेगा कि वे घर में ही रहे। जिन मुलाजिमों को बुखार, खांसी और सांस लेने में तकलीफ है, वे भी अपने दफ्तर को तुरंत सूचित करें। जो कर्मी स्वस्थ हैं, पर जिनके परिवार का कोई सदस्य भी कोविड19 की चपेट में है, वह भी दफ्तर आने से बचें। वे किसी भी सूरत में दफ्तर ना आएं। इसके साथ ही गंभीर रोगों से जूझ रहे कर्मी भी फिलहाल दफ्तर से दूर ही रहें। यह सावधानी बरती जाएगी तभी हम खतरों से बच सकते हैं।

जो दफ्तर खुल रहे हैं वे भी देखें कि उनके यहां पर काम करने वाले कर्मचारी कम से कम एक मीटर की दूरी बनाकर ही बैठे। अगर दफ्तर में कोई बाहरी व्यक्ति आता है, तो उससे भी संबंधित व्यक्ति तय फासले पर रहकर ही मिले या बात करें।

कहने की जरूरत नहीं है दफ्तर खुलेंगे तो वहां पर बैठकों के दौर तो शुरू हो ही जाएँगे। हर दफ्तर में दिन की और आगे की रणनीति बनाने के लिए बैठकें होती ही रहती हैं। उन बैठकों के बाद ही रणनीति बनती है। इसलिए कोशिश की जाए कि ये बैठकें उन जगहों पर हों जहां सब लोग कम से कम एक-एक मीटर की दूरी पर बैठे हों। सबने मास्क पहना हुआ हो। अबतक हरेक दफ्तर में सेनिटाइजर रख ही दिया गया है ताकि सभी कर्मी सेनिटाइजर को लेकर 20-25 सेकेंड तक हाथ कायदे से धो सकें।

देश के चोटी के उद्योगपति और महिन्द्रा ग्रुप के चेयरमेन आनंद महिन्द्रा ने कहा है कि बदलते हालातों में वर्क फ्रॉम होम का कल्चर तो बढ़ेगा ही। इसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। पूरे विश्व में और भारत में भी एक नई कार्य-संस्कृति का जन्म हो रहा है और उपाय भी नहीं है। पर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि परंपरागत दफ्तर अब पूरी तरह खत्म हो जाएंगे। वे भी चलेंगे। सबको पता है कि आनंद महिन्द्रा जब किसी मसले पर अपनी बात रखते हैं, तो उसे आमतौर पर नजरअंदाज नहीं किया जाता है। सरकार भी उनकी राय को सुनती है। वे कुछ समय पहले फैक्ट्रियों को खोलने की भी मांग कर चुके हैं। यानी अब दफ्तर और फैक्ट्रियां और अधिक बंद नहीं रह सकतीं। हां, वर्क फ्रॉम होम तो अब भी रहेगा। आईटी, मीडिया और दूसरे बहुत से सेक्टरों में वर्क फ्रॉम होम चलेगा। वह तो पहले भी चल ही रहा था।

कोविड19 से बचाव करते हुए किस तरह से दफ्तर और औद्योगिक इकाइयां खोली जाएं, इस विषय पर प्रोजेक्ट बैकलिंक्स के गौरव मेहरोत्रा ने एक गहन रिपोर्ट भी तैयार की है। उनकी रिपोर्ट के अनुसार, जो कंपनियां नयी और विषम परिस्थितियों में फिऱ से खुलेंगी उन्हें अपने कैफेटेरिया और जिम को तो फिलहाल बंद ही रखना चाहिए। अभी पिछले कुछ वर्षों से अधिकतर दफ्तरों में लंबे-चौड़े कैफेटेरिया चालू हो गए हैं। वे दिन-रात चलते हैं। उनमें पेशेवर आते-जाते रहते हैं। इन्हें बंद रखने का यह लाभ होगा कि सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों का पालन होता रहेगा। कैफेटिरिया के खुले रहने पर कर्मी इधर पहले की तरह से आकर बैठना भी शुरू कर सकते हैं। इसी तरह से जिम भी फिलहाल नहीं खोले जाने चाहिए। लॉकडाउन के दौर में लोगों ने घरों में रहकर ही व्यायाम करना तो सीख ही लिया है।

बेशक, यदि सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों का पालन करते हुए दफ्तर-फैक्ट्रियां और बाजार खुलें तो जिंदगी कुछ हदतक पहले की तरह से ही व्यापारिक गतिविधियां चलने लगेगी। यह सबके हित में है। इससे एक तो देश में आर्थिक गतिविधियां चालू होने लगेंगी, दूसरा लोगों को फिर से काम-धंधा भी मिलने लगेगा। कोई माने या न माने, घर में रहकर काम तो सिर्फ अनुभवी पेशेवर ही कर सकते हैं। उन्हें ही यह सुविधा भी मिल सकती है। सब लोग उनकी तरह से भाग्यशाली नहीं होते। बाकी लोगों को तो घर से निकलना ही होगा रोटी-रोजी कमाने के लिए।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

Edited By: Samridh Jharkhand

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