दृष्टिकोण: हाल की घटनाएँ क्या दर्शाती हैं? सिर्फ टूट रहे हैं रिश्ते या हो रहा है भारतीय समाज का अंत?
सामाजिक बदलाव और युवा पीढ़ी की नई सोच
समृद्ध डेस्क: भारतीय समाज की जड़ें परिवार, विवाह और प्रेम जैसी संस्थाओं में गहराई तक फैली हैं। लेकिन बदलते आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी माहौल ने इन रिश्तों के स्वरूप और स्थिरता पर एक बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। क्या ये संस्थाएँ खत्म हो रही हैं या बस अपनी जगह नए रूपों में ढल रही हैं? आइए इस विषय को तटस्थ नजरिए, ताजे डेटा और समाजशास्त्रीय विश्लेषण के साथ समझने की कोशिश करें।
परिवार और विवाह: क्या सचमुच खत्म हो रहे हैं?

उदाहरणस्वरूप, ऑनर किलिंग या वैवाहिक हिंसा को लें—कई घटनाएँ बताती हैं कि परिवार का कोई सदस्य, जो अपने बच्चे या जीवनसाथी से अत्यंत प्रेम करता है, वही समाजिक दबाव, असुरक्षा या झूठे सम्मान के लिए बेहद कठोर अपराध भी कर सकता है।
मनुष्य के भीतर प्यार और नफरत, सहिष्णुता और अपराध,
दोनों की संभावनाएँ साथ-साथ रहती हैं।
रिश्तों में उथल-पुथल: सामाजिक और मानसिक दबाव
हाल के वर्षों में पिता-पुत्री, पति-पत्नी जैसे संबंधों में अविश्वास, गुस्सा और अपराध तक बढ़ने के मामले सामने आए हैं। कई घटनाओं में यह देखने को मिलता है कि वे लोग, जो अपने प्रिय जनों से गहरा प्रेम करते हैं, सामाजिक दबाव या झूठे सम्मान के कारण कठोर फैसले भी ले बैठते हैं।
समाजशास्त्रीय दृष्टि से, यह द्वंद्व पुरानी और नई पीढ़ी, परंपरा और आधुनिकता, सामूहिकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच चल रहा है। युवा पीढ़ी आज अपने फैसलों में अधिक आत्मनिर्भर होना चाहती है, जबकि पुरानी पीढ़ी सामाजिक अपेक्षाओं, बिरादरी और रीति-रिवाजों के दबाव में खुद को बाँधती है।
ऑनर किलिंग — गुड़गांव टेनिस प्लेयर केस
गुड़गांव की एक नेशनल लेवल टेनिस खिलाड़ी की हत्या के आरोप में उसके पिता को गिरफ्तार किया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बेटी के जीवन-निर्णयों, उसकी दोस्तियों, और समाज में ‘मान-सम्मान’ की चिंता ने पिता को ऐसा अपराध करने पर मजबूर किया। यहाँ सामाजिक दबाव और पारिवारिक संबंधों में टकराव की झलक स्पष्ट दिखती है।
मेरठ हनीमून मर्डर केस
मेरठ में एक नवविवाहित युवक की हत्या उसकी पत्नी और उसके प्रेमी ने मिलकर कर दी। पत्नी की शादी अरेंज्ड थी, लेकिन वह किसी और को चाहती थी। अपनी इच्छाओं और समाज के दबाव के चलते उसने पति की हत्या का जुर्म किया। इससे ‘लव बनाम अरेंज्ड’ और पारिवारिक दबाव के बीच फंसी नई पीढ़ी की मानसिकता उजागर होती है।
तलाक में वृद्धि
NCRB के अनुसार, मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर सहित बड़े शहरों में तलाक के मामले तेजी से बढ़े हैं। आधुनिक जीवनशैली, आर्थिक स्वतंत्रता, और बदलते जेंडर रोल्स इसका कारण माने जा रहे हैं। कई युवाओं ने इस आधार पर ‘सेटेल’ न होने के बजाय अकेलापन, मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी। इंटरनेट पर कई फोरम/ब्लॉग्स पर लोग अपनी निजी कहानियाँ साझा कर चुके हैं—जैसे महिला शिक्षित होकर आर्थिक रूप से स्वतंत्र हुई और शादी के दबाव को अस्वीकार किया।
दहेज प्रथा और 498A दुरुपयोग
हर वर्ष हजारों ऐसे केस सामने आते हैं जिनमें दहेज उत्पीड़न के झूठे आरोप लगाकर परिवार के सदस्यों को परेशान किया गया। NCRB के मुताबिक, ऐसे मामलों की Conviction Rate लगभग 15% है, यानी ज्यादातर केसों में आरोप साबित नहीं हो पाते। यह कानूनी और सामाजिक व्यवस्था की जटिलता को दर्शाता है।
अपराध और कानूनी संदर्भ: डेटा और तथ्य
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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, भारत में हत्या जैसे गंभीर अपराधों में पुरुषों की हिस्सेदारी 2020 में लगभग 94% रही, जबकि महिलाओं द्वारा की गई हत्याओं का प्रतिशत 6% के करीब है।
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अन्य देशों से तुलना करें तो रूस, ब्राज़ील, मैक्सिको में यह अनुपात 10–15% तक है—इसका अर्थ है कि भारतीय समाज में महिलाओं के अपराध की दर अब भी विश्व औसत से कम है।
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दहेज संबंधित अपराध, जैसी धारा 498A (IPC), का दुरुपयोग भी खबरों में रहता है। NCRB के मुताबिक, इन मामलों में दोषसिद्धि (conviction) की दर करीब 15% से कम है, जिससे झूठे मामलों की संभावना भी जताई जाती है।
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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS) के डेटा में भी यह स्पष्ट होता है कि विवाह एवं परिवार में तनाव, तलाक, घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों की गंभीरता उदाहरण स्वरूप महानगरों और छोटे कस्बों में अलग-अलग है।
आधुनिक युवा, समाज और प्रेम के बदलते समीकरण
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आज के युवा “लव मैरिज बनाम अरेंज्ड मैरिज,” “जॉइंट फैमिली बनाम न्यूक्लियर फैमिली,” और “कैरियर बनाम परंपरा” जैसे मुद्दों पर खुलकर विचार रखते हैं।
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सोशल मीडिया, इंटरनेट, उद्योगीकरण आदि ने रिश्तों में संवाद बढ़ाया है; वहीं अकेलेपन, तनाव और कन्फ्यूजन भी बढ़े हैं।
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महिला शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता के बढ़ने से रिश्तों की परिभाषा में दूरगामी बदलाव दिख रहे हैं—महिलाएँ ज़्यादा आत्मनिर्भर हुई हैं, जिससे विवाह संस्था में संकट और संवाद दोनों बढ़े हैं।
सामाजिक दबाव और अपराध
कई चर्चित मामलों में देखा गया है कि सामाजिक प्रतिष्ठा, जाति, समुदाय, और परिवार का दबाव किसी व्यक्ति को कठोर आपराधिक कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकता है। कानूनी रूप से अपराधी वही है जिसने अपराध किया, पर नैतिक दृष्टि से समाज, परिवार और समुदाय भी जिम्मेदार हैं क्योंकि वे मानसिक दबाव और सामाजिक अस्वीकार्यता का माहौल बना देते हैं।
समस्या रिश्तों के खत्म होने में नहीं, उन्हें समय, समाज,
और जरूरत के हिसाब से ढालने में है।
परिवर्तन का रास्ता
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समाज के लिए जरूरी है कि वह संवाद, सहिष्णुता और व्यक्तिगत आज़ादी के मूल्यों को अपनाए।
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शिक्षा, रोजगार, और संवेदनशील काउंसलिंग रिश्तों में संतुलन और सम्मान ला सकते हैं।
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परिवार और विवाह जैसी संस्थाएँ खत्म नहीं हो रहीं, बल्कि अपने पुराने ढांचों से निकलकर नए रूप ले रही हैं।
निष्कर्ष
भारतीय समाज के बदलते परिदृश्य में परिवार, विवाह और प्रेम जैसे रिश्ते पुरानी परिभाषाओं से आगे निकलकर नई शक्लें ले रहे हैं। जरूरी है कि समाज खुलकर संवाद करे, बदलावों को स्वीकार करे, और हर व्यक्ति को अपनी पसंद की जिंदगी जीने का हक दे। सामाजिक संदर्भ, सांख्यिकीय आँकड़े और जमीन से जुड़े अनुभव यह संकेत देते हैं कि रिश्तों की अहमियत घट नहीं रही, बस मूल्य-व्यवस्था बदल रही है—जिसे समझना और अपनाना सबके हित में है।
सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।
'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
