स्मार्टफोन में A-GPS हमेशा ऑन? सरकार के नए प्रस्ताव से मचा हंगामा, प्राइवेसी पर उठे गंभीर सवाल
नई दिल्ली: भारत सरकार के पास गया यह नया प्रस्ताव स्मार्टफोन में A‑GPS लोकेशन हमेशा ऑन रखने का है, जिस पर अभी सिर्फ विचार चल रहा है और कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है। यह कदम सुरक्षा और आपदा प्रबंधन के नाम पर लिया जा सकता है, लेकिन इससे यूजर की प्राइवेसी और सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
प्रस्ताव क्या कहता है?

सरकार और एजेंसियों की दलील
कानून‑व्यवस्था, एंटी‑टेरर ऑपरेशन और डिजास्टर मैनेजमेंट के लिए रियल‑टाइम, बेहद सटीक लोकेशन डेटा की जरूरत बताई जा रही है। समर्थक पक्ष का कहना है कि हमेशा ऑन लोकेशन की मदद से अपराधियों का पीछा करने, लापता लोगों को खोजने और प्राकृतिक आपदा या सड़क हादसों जैसी इमरजेंसी में तुरंत मदद पहुंचाने में आसानी होगी। टेलिकॉम कंपनियों का तर्क है कि A‑GPS से मीटर‑लेवल एक्युरेसी मिलेगी, जो मौजूदा सिस्टम से बेहतर है।
टेक कंपनियों और एक्सपर्ट्स की आपत्तियां
Apple, Google और Samsung जैसी बड़ी कंपनियां साफ तौर पर कह रही हैं कि हमेशा ऑन लोकेशन ट्रैकिंग वैश्विक प्राइवेसी मानकों के खिलाफ है और इसका दुरुपयोग हो सकता है। इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स के अनुसार, दुनिया में अभी कोई भी बड़ा देश सभी स्मार्टफोन्स पर इस तरह की अनिवार्य डिवाइस‑लेवल लोकेशन निगरानी लागू नहीं कर रहा, इसलिए यह एक खतरनाक मिसाल बन सकती है। कंपनियां यह भी कहती हैं कि यूजर से लोकेशन कंट्रोल छीन लेने पर उनके ऊपर लोगों का भरोसा कम हो जाएगा और संवेदनशील प्रोफेशन (पत्रकार, एक्टिविस्ट, जज, सुरक्षा कर्मी आदि) ज्यादा जोखिम में आ सकते हैं।
यूजर की प्राइवेसी और सुरक्षा के खतरे
अगर फोन की लोकेशन हमेशा ऑन रही तो सिस्टम‑लेवल सेवाएं और कई ऐप्स आपके रियल‑टाइम मूवमेंट से बहुत डिटेल प्रोफाइल बना सकेंगी आप कहां रहते हैं, कहां काम करते हैं, किन जगहों पर बार‑बार जाते हैं, किस समय कौन‑सा रूट लेते हैं आदि। ऐसे डेटा का लीक होना या गलत हाथों में पहुंचना स्टॉकिंग, शारीरिक हमले या टार्गेटेड उत्पीड़न जैसे गंभीर खतरे खड़े कर सकता है। रिपोर्टों में यह भी चेतावनी दी गई है कि कंपनियां इस डेटा के सहारे अत्यधिक टार्गेटेड विज्ञापन दिखा सकती हैं और फोन हर समय एक तरह का निगरानी उपकरण बन सकता है।
पिछला अनुभव और आगे क्या
कुछ समय पहले सरकार ने सभी स्मार्टफोन्स में ‘संचार साथी’ नाम की सरकारी ऐप प्री‑इंस्टॉल और अनिवार्य करने की कोशिश की थी, लेकिन कड़े विरोध के बाद वह फैसला वापस लेना पड़ा था। अब हमेशा‑ऑन लोकेशन प्रस्ताव पर भी सिविल सोसाइटी, डिजिटल राइट्स ग्रुप और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने चिंता जताई है और पारदर्शी, कंसल्टेशन‑आधारित प्रक्रिया की मांग की है। अभी तक न तो कैबिनेट और न ही नियामक ने इसे मंजूरी दी है, इसलिए आने वाले हफ्तों में होने वाली चर्चा और सार्वजनिक प्रतिक्रिया इस प्रस्ताव के भविष्य का फैसला करेगी।
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