थम गया एक इतिहास, शांत हो गई झारखंडियत की सबसे सशक्त आवाज
झारखंडियत की सबसे बड़ी आवाज शांत हो गई
झारखंड की आत्मा और आदिवासी संघर्ष की सबसे बुलंद आवाज अब मौन हो गई। दिशोम गुरु शिबू सोरेन सिर्फ नेता नहीं, एक विचार और आंदोलन थे। महाजनी शोषण के खिलाफ संघर्ष से शुरू हुआ उनका सफर झारखंड मुक्ति मोर्चा तक पहुंचा। 'धान काटो आंदोलन' से लेकर जेएमएम की नींव रखने तक, उन्होंने झारखंडियत को नई पहचान दी। उनके जाने से एक युग समाप्त हो गया.
रांची: जब भी आदिवासी चेतना की बात होगी, जब भी जनसंघर्षों का जिक्र होगा, शिबू सोरेन का नाम लिया जाएगा. सम्मान के साथ. गर्व के साथ. वो सिर्फ एक नेता नहीं थे. एक विचार थे. एक आंदोलन थे. उन्होंने दुःख को हथियार बनाया. संघर्ष को धर्म बनाया. और सियासत को गरीब-गुरबों की आवाज.

किशोर उम्र में ही लड़ाई शुरू की. कानूनी लड़ाई. सामाजिक लड़ाई. राजनीतिक लड़ाई. महाजनों के खिलाफ. सूदखोरों के खिलाफ. शोषकों के खिलाफ. गांव-गांव घूमे. लोगों को जोड़ा. आदिवासियों को संगठित किया. खेत-खलिहान से विद्रोह शुरू किया. जंगल-पहाड़ों तक विस्तार किया.
'धान काटो आंदोलन' चलाया. महिलाएं खेत में जातीं. पुरुष तीर-धनुष लेकर पहरा देते. ये सिर्फ खेती नहीं थी. ये इंकलाब था. पुलिस पीछे पड़ी. मामले दर्ज हुए. जेल गए. जंगलों में छिपे. उफनती नदियों में कूद पड़े. निर्वास काटा. ‘सोनोत संताल’ संगठन बनाया. आदिवासी चेतना को दिशा दी. लोगों ने उन्हें कहा— दिशोम गुरु. देश का नेता.
4 फरवरी 1972 धनबाद की बड़ी सभा से उपजी एक नई उम्मीद: झारखंड मुक्ति मोर्चा
शिबू सोरेन इसके महासचिव बने. विनोद बिहारी महतो अध्यक्ष. कॉमरेड एके राय भी साथ थे. जल्दी ही जेएमएम जनआंदोलन बना. दक्षिण बिहार से लेकर बंगाल-ओडिशा तक लहर फैल गई. लोग जुड़ते गए. मुकाम बनता गया. कई बार जेलयात्राएं कीं. जेलों से कभी डरे नहीं. जुल्मों के आगे झुके नहीं. उनकी आवाज गूंजती थी और कारवां खड़ा हो जाता था. पिछले 50 सालों में ऐसा कोई दूसरा लीडर नहीं जन्मा झारखंड में.
गुरुजी पहली बार 1980 में दुमका से संसद पहुंचे. राजनीति में जनता की गूंज बनकर. 1991 में जेएमएम के केंद्रीय अध्यक्ष बने. अब वो सिर्फ नेता नहीं, आंदोलन का चेहरा थे. संथाल में गुरुजी की जगह उनकी तस्वीर भी घूम जाती तो लोग दीवाने हो जाते. उम्मीदवार उनके नाम से चुनाव जीत जाते.
वर्ष 2000...झारखंड राज्य बना. शिबू सोरेन का सपना साकार हुआ. 2005, 2008, 2009—तीन बार मुख्यमंत्री बने. सत्ता मिली, संघर्ष नहीं भूले. झारखंड का मतलब बन गए- गुरुजी. उनका जीवन सादगी और संघर्ष की मिसाल है. उनके पांव हमेशा मिट्टी में थे. जिस जगह रहते, खेती-बाड़ी जरूर करते. सत्ता के गलियारों में गुमराह होने की भी कुछ कहानियां हैं. लेकिन आज वो बातें नहीं. उनके नायकत्व की दास्तानें इनसे कहीं बड़ी हैं.
आज वह नहीं हैं. लेकिन उनकी विरासत जिंदा है. हर उस व्यक्ति में, जो ज़ुल्म से लड़ना चाहता है. जो अपनी मिट्टी से प्यार करता है. गुरुजी अमर रहें. शत् शत् नमन. झारखंड उनका ऋणी रहेगा.
शंभु नाथ चौधरी
सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।
'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
