अविभाजित भारत का दौर, खुला व्यापार व सुगम माहौल के चश्मदीद 100 वर्षीय चुन्नीलाल
उनके पिता और दादा यहां के किसानों को देते थे कपड़ा
कोडरमा: 1920-25 का दशक मुल्क अपनी आजादी के लिए भीतर ही भीतर आंदोलित तो था पर उस दौर में मुल्क विभाजन से कोसों दूर था, तब शायद जन मानस के जेहन में इसका कुछ भी भान तक न था, सरगोदा इलाके का एक गांव मोंग अब के पाकिस्तान का हिस्सा. मोंग गांव के रहने वाले ज्ञान सिंह और उनके पिता अतर सिंह दोनों कपडे का व्यापार करते थे. दोनो उस दौर में वहां से ट्रेन के जरिये कोलकाता जहां उनकी व्यापारिक गद्दी थी वहां आया जाया करते थे.

चुन्नीलाल के मुताबिक उस दौर में मोंग से लालमुसा वहां से लाहौर फिर फ्रंटियर एक्सप्रेस से कोलकाता आने जाने का रूट था. कोलकाता से फिर अपने गन्तब्य तक जाते थे. बाद के दिनों में यहां व्यापार अच्छा हो जाने पर उनके पिता व दादा ने तिलैया शहर के हटिया इलाके में आटा चक्की शुरु की. तब चुन्नीलाल मोंग में ही रहकर पढाई कर रहे थे. फिर पिता ने उन्हें 1938 में यहां बुला लिया एवं कक्षा 6 में उनका दाखिला सी एच हाई स्कूल में कराया गया, मगर पढ़ाई में दिल नही लगा.
14-15 वर्ष की उम्र में चुन्नीलाल ने शादीलाल (जो उम्र में बडे थे) के साथ कोडरमा बाजार में साझेदारी में 8 अप्रैल 1940 को दिन के 2 बजकर 40 मिनट पर पूजा स्टोर्स के नाम से दुकान शुरु की. 14 वर्षों के बाद उनका व्यापार 1954 में अलग हो गया. उन्होने वहीं बगल में मदन स्टोर्स की शुरुवात की परन्तु 4 वर्षों के बाद उन्होंने उस दुकान को बंद कर तिलैया शहर स्टेशन रोड में जनता स्टोर्स शुरु किया. इस व्यापार में भी 6 वर्षों तक रहे फिर 1965 में अब के स्मार्ट बाजार के सामने सलुजा वाइन शॉप का व्यापार शुरु किया. दो साल बाद इसे छोड कोलकाता से लाकर दवा का व्यापार शुरु किया. यह व्यापार खूब अच्छा चला. इस दौरान 1973 में एक पशु की चपेट में आने से बुरी तरह घायल हो गये और उनसे यह व्यापार भी छूट गया.
अविभाजित भारत में व्यापार करना था सुगम
चुन्नीलाल की माने तो अविभाजित मुल्क के दौरान व्यापार करने का माहौल सुगम तो था मगर अंग्रेजी हुकूमत की कई बंदिशें भी थी. बचपन की यादों को लेकर कहते हैं उनके गांव मोंग से उत्तर में झेलम नदी और पश्चिम में बड़ी व उपयोगी नहर थी. विभाजन के पहले तक उनकी माता जी वन्ती देवी और दादी हरदेयी देवी गांव में ही रह रही थीं. वह विभाजन के 6 दिन पूर्व दूसरे परिजन के साथ 9 अगस्त 1947 को यहां सकुशल आ गये थे और सब कुछ वहीं छूट गया.
उनके मुताबिक मुल्क की आजादी के बाद 1952 में हुए चुनाव में उन्होने पहली बार मत डाले थे, यह सिलसिला अनवरत जारी है. चुन्नीलाल जीवन के इस पड़ाव पर अतीत को याद्कर काफी रोमांचित हो जाते हैं. कहते हैं जीवन भर हमारा परिवार मैं स्वयं सम्मान और दूसरों के प्रति सहयोग के भाव से काम किया, जिंदगी जिये पर अब ये चीजें समाज में घटती जा रही हैं. शायद इससे नेशन भी कहीं न कही कमजोर हो रहा है इसे मजबूत किया जाना चाहिए. उनकी मानें तो घट रहे सामाजिक सरोकार को भाइचारगी व मोह्ब्ब्त से पाट कर ही समाज में इंसानियत की तस्वीर बदल सकती है.
