1932 का दशक व्यापार के नजरिये से कोडरमा वासियों के लिए स्वर्णिम काल
गिरिडीह शहर में गोपनीय तरीके से छपता था अखबार
कोडरमा: 1932 का दशक मुल्क आजादी के लिए भीतर ही भीतर आंदोलित था. अंग्रेजी हुकूमत अपने पूरे उफान पर थी. उस दौर में अब के झारखण्ड के गिरिडीह शहर से एक अखबार बहुत ही गोपनीय तरीके से छपता था. गिरिडीह शहर के अरगा घाट रोड स्थित एक भवन में अखबार छापने के इंतजामात थे. जानकारों की मानें तो उस दौर मेँ बंगाल के अधीन इलाके से ही बिहार उड़ीसा का हिस्सा जुडा हुया था. 1936 के दशक में इन दोनों राज्यों का अस्तित्व बना. वह दौर व्यापार के नजरिये से कोडरमा वासियों के लिए स्वर्णिम काल था. वजह माइका का व्यापार. इलाके की सी एच प्राइवेट लिमिटेड कंपनी काफी विकास के पैमाने लगातार गढ रही थी. 1936 से 1940 के दशक में विदेश आयातित फ़ोन सेट की व्यवस्था अपने दो माइका खदानों फगुनी और मुरलिया खदान में लगा रखे थे.

कंपनी के परिवार से जुडे एक बुजुर्ग 85 वर्षीय प्रभात कुमार भदानी के मुताबिक उस दौर में 1958 से 1962 की अवधि में वे 87 पैसा प्रति लीटर पेट्रोल खरीदते थे खदान आने जाने की खातिर. उनके मुताबिक 1 अप्रेल 1957 में नया पैसा यानि एक पैसा 2 पैसा आया. उससे पहले एक आना दो आना 4 आना ही चलता था. उनकी मानें तो 1952 में शहर में बिजली आयी थी. उनके घर के सामने भी बिजली के लोहे के पोल गाड़े गये थे. इस शहर का अतीत काफी स्वर्णिम रहा है. अब की बात है कि रोजगारी गिरावट ने इस शहर को हाशिये पर ला खडा किया है. पूरी दुनिया में व्यापार की बदौलत सफलता के झंडे गाड़ने वाला यह ख्याति प्राप्त शहर अपने अस्तित्व की लडाई लड़ रहा है. ग्रामीण इलाकों के युवक बडे महानगरों की तरफ रुख अख्तियार कर रहे हैं और रोजगार के लिए तरश रहे हैं.
