जन आंदोलन से संभव है फाइलेरिया का उन्मूलन: साग्या सिंह

मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला का किया गया आयोजन

जन आंदोलन से संभव है फाइलेरिया का उन्मूलन: साग्या सिंह
मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला का किया गया आयोजन (तस्वीर)

प्रभावित 14 जिलों में मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम की शुरुआत की जायेगी

धनबाद: फाइलेरिया मुक्त झारखण्ड की प्रतिबद्धता के साथ राज्य सरकार द्वारा रामट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत चलाये जाने वाले मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अन्तर्विभागीय समन्वय के साथदृसाथ सामुदायिक सहभागिता और मीडिया सहयोगियों का भी सहयोग लिया जा रहा है। इसी क्रम में, आज धनबाद में स्वास्थ्य चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग, झारखंड एवं ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटेजीज संस्था द्वारा अन्य सहयोगी संस्थाओं, विश्व स्वास्थ्य संगठन, पीरामल स्वास्थ्य के साथ समन्वय बनाते हुए मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

फाईलेरिया उन्नमूलन के तहत मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम हेतु दिसम्बर माह में अजय कुमार सिंह, अपर मुख्य सचिव झारखण्ड के द्वारा विस्तृत मार्ग दर्शिता विभागिय सबंधित जिला के उपायुक्त को भेजी जा चुकी है, इस संबंध में अभियान निर्देशक अब्बू इमरान द्वारा लगातार कार्यक्रम सबंधित समिक्षा एवं मार्गदर्शन समिक्षा की जा रही है। फाइलेरिया जैसी गंभीर बीमारी से लोगों को सुरक्षित रखने के लिए आगामी 10 फरवरी से राज्य के फाइलेरिया से

प्रभावित 14 जिलों में मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम की शुरुआत की जायेगी। इसमें 11 जिलों (पूर्वी सिंहभूम, बोकारो, देवघर, धनबाद, रांची, गढ़वा, गिरीडीह, गुमला, लोहरदगा, रामगढ़, साहिबगंज) में दो दवाईया डीईसी, और अल्बेंडाजोल एवं 3 जिलों (कोडरमा, पाकुड़, सिमडेगा) में 3 दवाईया यानि डीईसी, अल्बेंडाजोल और आइवरमेक्टिन के साथ यह कार्यक्रय चलाया जायेगा। इस हेतु जिलों में लाभूको को बुथ के माध्यम से और उसके बाद घर- घर जाकर दवा खिलाने का लक्ष्य रखा गया है तथा किसी भी विषम परिस्थितियों से निपटने हेतु चिकित्सक के नेतृत्व में रैपिड रेस्पान्स टीमों का भी गठन किया गया है। 17 जनवरी को स्टेट टास्क फोर्स मिटींग के दौरान अभियान निर्देशक ने मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम में खिलाई जाने वाली फाइलेरिया रोधी दवाइयों को पूरी तरह से सुरक्षित बताया था और कहा था कि इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि 2 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और गंभीर रूप से बिमार लोगों को छोड़कर सभी को फाइलेरिया रोधी दवाओं का सेवन स्वास्थ कर्मचारियों के सामने करना है। 

ये दवाइया खाली पेट नहीं खानी है, कभीदृकभी इन दवाइयों को खाने के बाद कुछ लोगों ने मितली आना, चक्कर आना जैसे लक्षण पैदा होते है, लेकिन इसका यह मतलब होता है कि उनके शरीर में फाइलेरिया के परजीवी है और दवा खाने के बाद शरीर में मौजूद फाइलेरिया के परजीवी मर रहे है, इसलिए ऐसे किसी भी प्रकार के लक्षण होने पर हमें घबराना नहीं चाहिए और हम सब को फाइलेरिया रोधी दवाइया अलग से खानी चाहिए। उन्होनें यह भी कहा था कि हम सब फाइलेरिया मुक्त झारखण्ड के लिए प्रत्येक स्तर पर प्रयास कर रहे है।
कार्यशाला में राज्य कीटविज्ञानशास्री (एंटोमोलोजिसट) साग्या सिंह ने कहा कि फाइलेरिया का उन्मूलन जन आंदोलन से संभव है। उन्होंने कहा कि मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम में देखा गया है कि रेजिडेंशियल अपार्टमेंट या

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संभ्रांत क्षेत्र में लोग दवा प्रशासक को प्रवेश करने नहीं देते हैं। दवा प्रशासक की मौजूदगी में दवा खाना इसलिए आवश्यक है क्योंकि विभिन्न आयु वर्ग के लिए अलगदृअलग डोज निर्धारित है। यह दवा सभी के लिए अति आवश्यक है। 5 दृ 6 साल तक वर्मा में एक बार दवा लेने से पूरा समुदाय फाइलेरिया मुन हो सकता है।

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राज्य आई0ई0सी0 सलाहकार निलम कुमार ने मिडीया सहयोगियों से कहा कि सरकार द्वारा स्वास्थ की दिशा में चलाए जा रहे समस्त कार्यक्रमों के बारे में आपके माध्यम से लोगों को जागरूक करने में और उन्हें प्रेरित करने में हमेशा सहयोग मिलता है, उन्होनें उपस्थित मिडिया सहयोेगियों से अनुरोध किया कि वह अपने समाचार पत्रों, चैनल आदि के माध्यम से फाइलेरिया जैसी गंभीर बिमारी के प्रति लोगों को जागरूक करे, ताकि लोग मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम के दौरान फाइलेरिया रोधी दवाएं स्वास्थ कर्मी के सामने ही खाये।
राज्य सलाहकार बिनय कुमार ने कहा की फाइलेरिया उन्नमूलन के लिए राज्य सरकार द्वारा सभी जिलो से समन्वय बनाकर कार्य किया जा रहा है, ताकि इस बीमारी को राज्य से समाप्त करने का लक्ष्य शी’ा्र प्राप्त किया जा सकें। विश्व स्वास्थ संगठन के राज्य एनटीडी कोआॅर्डिनेटर डाॅ अभिषेक पाॅल ने बताया कि किसी भी आयु वर्ग में होने वाले फाइलेरिया संक्रमण लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुँचाता है और अगर इससे बचाव न किया जाए तो इससे शारीरिक अंगो में असमान्य सुजन होती है।

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उन्होंने कहा कि फाइलेरिया को आमतौर पर हाथी पांव के नाम से जाना जाता है। यह क्युलेक्स मच्छर के काटने से होता है। यह दूसरी सबसे ज्यादा दिव्यांग एवं कुरूपता करने वाली बीमारी है। इसका संक्रमण अधिकतर बचपन में ही हो जाता है। बीमारी का पता चलने में 5 से 10 साल लग जाते हैं। यह

बीमारी हाथ, पैर, स्तन और हाइड्रोसिल को प्रभावित करती है। उन्होंने बताया कि हाइड्रोसील का इलाज समय पर संभव है लेकिन हाथ, पैर या स्तन में हुआ सूजन लाइलाज है। उन्होंने बताया कि इसके इलाज के लिए दी जाने वाली डीईसी एवं एल्बेंडाजोल की दवा वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन द्वारा जांची और परखी हुई है।

यह पूरी तरह से लाभकारी है। दवा खाने के बाद कभीदृकभी सर दर्द, उल्टी या बुखार हो जाने पर घबराने की बिलकुल जरुरत नहीं है। वास्तव में जिस व्यनि में पूर्व से फाइलेरिया का संक्रमण रहता है उनमें यह लक्षण हो सकते हैं।

कार्यशाला में वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के राज्य समन्वयक डॉक्टर अभिमोक पॉल, कीटविज्ञानशास्री साग्या सिंह, राज्य आइईसी कंसलटेंट नीलम कुमार, स्टेट ट्रेनिंग कंसलटेंट विनय कुमार, मो शाहबाज, पिरामल स्वास्थ के अभिनाष, जी0एच0एस0 के अंकित चैहान, सिविल सर्जन डॉ चंद्रभानु प्रतापन, डēल्यूएचओ के एसएमओ डॉ अमित तिवारी, वीबीडी डॉ सुनिल कुमार, वीबीडी सलाहकार रमेश कुमार सिंह के अलावा रामगढ़, बोकारो, गिरीडीह एंव देवघर के वीबीडी पदाधिकारी तथा प्रिंट एवं इलेक्टाॅनिक मीडिया के प्रतिनिधि मौजूद थे।

Edited By: Sujit Sinha
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सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।

'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

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