Opinion व्यंग्य: फिर गये सुपारी के दिन 

पान सुपारी पहले शुभ का प्रतीक

Opinion व्यंग्य: फिर गये सुपारी के दिन 
नवेंदु उन्मेष

पान सुपारी पहले शुभ का प्रतीक माना जाता था. स्वागत का भी प्रतीक माना जाता था. शादी हो या श्राद्ध सभी जगह पान और सुपारी का बोल बाला रहता था.

समय के साथ-साथ जिस चीज के दिन बदले वह है सुपारी. सुपारी ने समय के साथ-साथ खुद को भी बदला. पहले मगही पान,  बनारसी पान में घुल मिलकर लोगों के मुंह को लाल किया और अब वह उसी मुंह को बंद कराने के लिए समाज की रगो में दौड रहा है. पान सुपारी पहले शुभ का प्रतीक माना जाता था. स्वागत का भी प्रतीक माना जाता था. शादी हो या श्राद्ध सभी जगह पान और सुपारी का बोल बाला रहता था. गांव देहात में उस व्यक्ति की बहुत इज्जत होती थी जिसके मुंह पान से रंगे होते थे. कई लोग तो यह कहते थे पान सिर्फ विवाहित लोगों को खाना चाहिए. कुंवारे लोगों के लिए पान और सुपारी वर्जित है. 
 
आगे चलकर सुपारी के दिन बदले तो उसने सबसे पहले पान की दुकानों को बंद कराया. शहरी क्षेत्र में अब पान की दुकान लगभग बंदी के कगार पर हैं. सुपारी ने रंग बदला और गुटके की शक्ल में बाजार में आ गया. यही सुपारी आगे चलकर मुंह के कैंसर का भी कारण बना. कैंसर ने डाक्टरों को सुपर स्पेशलिस्ट अस्पताल खोलने के लिए मजबूर किया. 
 

शादी की शुरुआत भी तिलक में चांदी की सुपारी देकर की जाती है. इससे जाहिर होता है कि सुपारी शुभ का प्रतीक माना जाता है. बारात चलते वक्त दूल्हे की बहने दूल्हे को यह समझा देती थी कि दरवाजा लगने के वक्त अगर तुम्हें पान और सुपारी दी जाए तो उसे मत खाना क्योंकि यह दुल्हन का झूठा होता है. 
 

लेकिन अब सुपारी मौत का सामान बन चुका है. पति-पत्नी की हत्या के लिए सुपारी दे रहा है. पत्नी पति की हत्या के लिए सुपारी दे रही है. ससुराल वाले दामाद की हत्या के लिए सुपारी दे रहे हैं. अडोसी पड़ोसी एक दूसरे की हत्या के लिए सुपारी दे रहे हैं. जाहिर है सुपारी के रूप में मौत का सामान अब बाजार में आ गया है. अब सुपारी देने वाले भी तैनात है और सुपारी लेने वाले भी. अब जिसकी किसी से नहीं बनती तो वह दूसरे की मौत के लिए सुपारी दे रहा है. 
 
अब सुपारी दो रूपों में समाज में उभकर सामने आया है. एक कैंसर के रूप में और दूसरा अपराधियों के लिए अपराध उद्योग के रूप में. सरकार दोनों से ही परेशान है. कैंसर ना फैले इसके लिए सरकार गुटके पर प्रतिबंध लगाती है दूसरी और सुपारी पर आधारित अपराध न पनपे इसके लिए अपराधियों पर लगाम लगती है. लेकिन सुपारी है कि अपनी चाल बदल देता है. भविष्य में सुपारी समाज को किस दिशा में ले जाएगा यह कहना मुश्किल है. 
 

नवेंदु उन्मेष

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लेखक वर्तमान में रांची एक्सप्रेस में संपादक हैं

Edited By: Sujit Sinha
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सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।

'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

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