2D सामग्री पर राष्ट्रीय कार्यक्रम: NITI आयोग का बड़ा सुझाव, भारत की अगली टेक छलांग
10 साल का राष्ट्रीय रोडमैप, रिसर्च फंडिंग, इंडस्ट्री पार्टनरशिप और वैश्विक सहयोग पर ज़ोर; लक्ष्य—सिलिकॉन से आगे अगली पीढ़ी की इलेक्ट्रॉनिक्स में भारत को अग्रणी बनाना
नई दिल्ली: भारत की हाई-टेक अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने के लिए NITI आयोग ने 2D सामग्री पर एक समर्पित राष्ट्रीय कार्यक्रम की सिफारिश की है। इस पहल का उद्देश्य सिलिकॉन-आधारित पारंपरिक इलेक्ट्रॉनिक्स से आगे बढ़कर परमाणु-स्तर मोटाई वाली सामग्री पर शोध, उत्पादन और वाणिज्यिकरण को गति देना है। आयोग का मानना है कि संगठित निवेश, स्पष्ट नीति और उद्योग साझेदारी के साथ भारत इस उभरते क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा कर सकता है।
2D सामग्री क्या होती है?

उच्च विद्युत चालकता और गतिशील इलेक्ट्रॉनिक गुण,
अत्यधिक लचीलापन और मजबूती,
क्वांटम-स्केल प्रभाव देखने को मिलते हैं।
इन्हें फ्लेक्सिबल डिस्प्ले, वेयरेबल्स, अत्यधिक संवेदनशील सेंसर, ऊर्जा भंडारण (बैटरियाँ/सुपरकैपेसिटर्स), क्वांटम कंप्यूटिंग और स्पेस/डिफेंस-ग्रेड इलेक्ट्रॉनिक्स में उपयोग किया जा सकता है।
आयोग ने क्या सुझाव दिए?
10-वर्षीय राष्ट्रीय रोडमैप: स्पष्ट लक्ष्यों, टाइमलाइन और निगरानी ढांचे के साथ।
R&D फंडिंग: मिशन-मोड ग्रांट, प्रोटोटाइप-टू-प्रोडक्ट सपोर्ट, स्टार्ट-अप्स के लिए बीजทุน।
इंडस्ट्री–अकादमिक गठजोड़: सेंटर-ऑफ-एक्सीलेंस, संयुक्त प्रयोगशालाएँ, टेक-ट्रांसफर फास्ट-ट्रैक।
इंफ्रास्ट्रक्चर: पायलट-लाइन, क्लीनरूम, मेट्रोलॉजी और टेस्टिंग सुविधाएँ भारत में।
मानव संसाधन: विशेषीकृत MTech/PhD ट्रैक, रिस्किलिंग और विदेशी फेलोशिप।
मानक और नीति: IP फ्रेमवर्क, गुणवत्ता मानक, सार्वजनिक खरीद में “इनोवेशन-फ्रेंडली” प्रावधान।
अंतरराष्ट्रीय साझेदारी: संयुक्त प्रोजेक्ट, डेटा-शेयरिंग और सप्लाई-चेन विविधीकरण।
भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण?
सेमीकंडक्टर आत्मनिर्भरता: अगली पीढ़ी की चिप-सामग्री में शुरुआती बढ़त।
रोजगार व स्टार्ट-अप इकोसिस्टम: डीप-टेक उद्यमिता को गति।
निर्यात क्षमता: उच्च मूल्य वाले मैटेरियल्स, डिवाइसेज़ और IP का वैश्विक बाजार।
रणनीतिक लाभ: स्पेस, डिफेंस, ऊर्जा सुरक्षा और महत्वपूर्ण अवसंरचनाओं के लिए स्वदेशी टेक।
विशेषज्ञ दृष्टि
नीति विश्लेषकों के अनुसार, 2D सामग्री पर मिशन-मोड कार्यक्रम भारत को सिलिकॉन-बियॉन्ड युग के लिए तैयार करेगा। सबसे बड़ी चुनौतियाँ स्केल-अप, स्थिरता, लागत और मानकीकरण हैं। यदि पायलट-लाइन से उत्पादन तक की कड़ी जोड़ी गई तो भारत डिज़ाइन-टू-मैन्युफैक्चरिंग वैल्यू-चेन में हिस्सेदारी बढ़ा सकता है।
तथ्य-पेटी
उपयोग क्षेत्र: फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स, सेंसर, ऊर्जा भंडारण, क्वांटम, स्पेस/डिफेंस
जरूरी निवेश: पायलट-लाइन, टेस्ट-मेट्रोलॉजी, क्लीनरूम, IP और टैलेंट
समय-सीमा प्रस्तावित: 10 वर्ष का चरणबद्ध रोडमैप
लाभ: आयात निर्भरता में कमी, उच्च-मूल्य निर्यात, रणनीतिक स्वावलंबन
यदि सुझाए गए रोडमैप, फंडिंग और इंडस्ट्री-अकादमिक साझेदारी को मिशन-मोड में लागू किया जाता है, तो 2D सामग्री भारत के लिए अगली तकनीकी छलांग साबित हो सकती है। यह पहल आत्मनिर्भरता, रोजगार और वैश्विक तकनीकी नेतृत्व तीनों मोर्चों पर असर डाल सकती है।
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