भारत में जल संकट: क्यों 21 शहरों का भूजल 2030 तक हो जाएगा खत्म?
भूजल का बढ़ता अतिदोहन: क्या भविष्य में रेगिस्तान बन जाएँगे शहर?
समृद्ध डेस्क: भारत आज एक गंभीर जल संकट के दौर से गुजर रहा है, जो न केवल देश की 60 करोड़ से अधिक आबादी को प्रभावित कर रहा है, बल्कि शहरी नियोजन की व्यापक विफलताओं का भी परिचायक है। नीति आयोग की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता मात्र 1,100 क्यूबिक मीटर है, जो 1,700 क्यूबिक मीटर की जल तनाव सीमा से काफी कम है। यह स्थिति इस तथ्य के बावजूद है कि भारत के पास विश्व की 18% आबादी निवास करती है, लेकिन विश्व के मीठे पानी के संसाधनों का केवल 4% हिस्सा ही उपलब्ध है।
हाइलाइट्स
- 2030 का खतरा: 21 शहरों में पानी पूरी तरह गायब हो सकता है।
- अदृश्य हत्यारा: भूजल चोरी और जल निकायों का गायब होना।
- बचने का रास्ता: समय रहते उठाए जाएं क्रांतिकारी कदम।

भारत में जल संकट की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में भारत का जल संकट कई आयामों में व्यापक है। अमेरिका स्थित विश्व संसाधन संस्थान के आंकड़ों के अनुसार, विश्व के सत्रह सर्वाधिक जल संकट झेल रहे देशों में भारत तेरहवें स्थान पर है। इस संकट की गंभीरता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर वर्ष लगभग 2 लाख लोग असुरक्षित जल पीने से मर जाते हैं। देश की 75% आबादी को पीने के पानी के लिए दूर तक जाना पड़ता है, जो ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में जल पहुंच की असमानता को दर्शाता है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड के 2024 के आकलन के अनुसार, देश में वार्षिक भूजल पुनर्भरण 446.9 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जबकि निष्कर्षण योग्य संसाधन 406.19 बिलियन क्यूबिक मीटर है। चिंताजनक बात यह है कि 11.1% मूल्यांकन इकाइयां अतिशोषित श्रेणी में हैं, जबकि 3.05% गंभीर श्रेणी में हैं। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर-पश्चिमी राज्य सबसे अधिक प्रभावित हैं।
शहरी नियोजन की विफलताएं और जल संकट
शहरी नियोजन की विफलताएं भारत के जल संकट को और भी गंभीर बना रही हैं। अनियोजित शहरीकरण के कारण प्राकृतिक जल चक्र बाधित हो रहा है, जिससे भूजल पुनर्भरण की क्षमता घट रही है। बेंगलुरु का उदाहरण इस संदर्भ में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां 1961 में 262 झीलें थीं, जो घटकर वर्तमान में केवल 81 रह गई हैं। यह शहरी विस्तार के दौरान जल निकायों के संरक्षण में हुई लापरवाही का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में हर मानसून के दौरान जलभराव की समस्या इस बात का प्रमाण है कि शहरी नियोजन में जल प्रबंधन को उचित प्राथमिकता नहीं दी गई है। पुराने ड्रेनेज सिस्टम, अपर्याप्त बुनियादी ढांचा और प्राकृतिक जल निकासी मार्गों का अवरोध इन समस्याओं के मुख्य कारण हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शहरी नियोजन क्षमता में व्यापक कमी है, जिससे जल संसाधनों का अकुशल उपयोग हो रहा है।
भूजल संकट और इसके कारण
भारत विश्व में सबसे अधिक भूजल निकालने वाला देश है, जो चीन और अमेरिका के संयुक्त भूजल निकासी से भी अधिक है। देश में लगभग 253 अरब क्यूबिक मीटर जल निकाला जा रहा है, जो विश्व का 25% है। भूजल का 80% हिस्सा सिंचाई में उपयोग किया जाता है, जबकि 12% उद्योगों में और केवल 8% पेयजल के रूप में उपयोग होता है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, 700 जिलों में से 256 जिले गंभीर या अतिशोषित भूजल स्तर का सामना कर रहे हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है, जहां दो दशकों में 64.6 बिलियन क्यूबिक मीटर भूजल की हानि हुई है। रसायनों और प्लास्टिक के बढ़ते स्तर के कारण भूजल प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या बन गई
प्रमुख शहरों में जल संकट
2030 तक दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद सहित 21 भारतीय शहरों के भूजल समाप्त हो जाने का खतरा है। बेंगलुरु में 2024 की शुरुआत में "असामान्य रूप से उच्च तापमान" का सामना करना पड़ा, जिससे शहरी ऊष्मा द्वीप बने और जल संकट और भी गहरा गया। शहर की दैनिक 2,100 MLD की मांग के मुकाबले केवल 1,850 MLD आपूर्ति हो पा रही है।
चेन्नई में 2019 में 'Day Zero' की स्थिति आई थी, जब शहर के जलाशय सूख गए थे। 2023 में, चेन्नई ने अपनी भूजल क्षमता का 127.5% निकाला, जो राष्ट्रीय औसत 59.3% से काफी अधिक है। दिल्ली में गर्मियों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने पर पानी के लिए हाहाकार मच जाता है, और यमुना नदी के प्रदूषण ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है।
मुंबई में घनी आबादी और तेज शहरीकरण के कारण विशेषकर गर्मियों में पानी की कमी होती है। शहर की मानसूनी बारिश पर निर्भरता जोखिमभरी है, क्योंकि जलवायु में कोई भी बदलाव जल संकट का कारण बन सकता है।
शहरी जल प्रबंधन में संरचनागत समस्याएं
भारतीय शहरों में जल वितरण प्रणाली में व्यापक कमियां हैं। अपर्याप्त कवरेज, रुक-रुककर आपूर्ति, कम दबाव और निम्न गुणवत्ता भारतीय शहरों में जल आपूर्ति की प्रमुख समस्याएं हैं। नागपुर में वितरित पानी का लगभग 39% हिस्सा गैर-राजस्व जल के रूप में चला जाता है, जिसमें रिसाव, चोरी और अनधिकृत उपयोग शामिल है।
अकुशल शासन और प्रबंधन प्रथाएं जल क्षेत्र में अपर्याप्त योजना, निगरानी और संसाधन आवंटन का कारण बनती हैं। कई भारतीय शहरों में नियोजित आवासीय कॉलोनियों के लोगों को भी नगरपालिका एजेंसियों से दैनिक उपभोग के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल रहा है। यह समस्या पानी की कमी के कारण उतनी नहीं है जितनी प्रशासनिक कुप्रबंधन और नागरिक दुरुपयोग के कारण है।
पारंपरिक जल संरक्षण प्रणालियों की उपेक्षा
भारत में सदियों से जल संरक्षण के लिए पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता रहा है, जो आज भी प्रासंगिक और कारगर हैं। तालाब, बावड़ियां और कुंड जैसी जल संरचनाएं वर्षा जल को संचित करने में हमेशा मददगार रही हैं। हालांकि, हाल के दशकों में इन पारंपरिक जल संरक्षण प्रणालियों की उपेक्षा की गई है। देश में जल संचय के प्रभावी साधनों के तौर पर स्वीकृत कुओं, बावड़ियों, तालाबों, जोहड़ों और झीलों की देखभाल बंद हो गई है।
सरकारी नीतियां और उनकी चुनौतियां
सरकार ने जल संकट के समाधान के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। जल जीवन मिशन के तहत हर घर में नल से जल उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। 2021 तक जल जीवन मिशन के तहत 45.2% लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया था, जिसमें गोा, तेलंगाना और हरियाणा जैसे राज्यों ने 100% नल कनेक्शन सुनिश्चित किया है।
अटल भूजल योजना के तहत गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 80 जिलों में भूजल प्रबंधन का काम किया जा रहा है। नमामि गंगे योजना के तहत गंगा नदी के पुनर्जीवन के लिए काम हो रहा है। जल शक्ति अभियान 2019 में शुरू किया गया था, जो वर्षा जल संचयन, जल संरक्षण और पारंपरिक जल निकायों के नवीकरण पर केंद्रित है।
हालांकि, इन नीतियों के क्रियान्वयन में कई चुनौतियां हैं। अपर्याप्त फंड, सीमित सामुदायिक भागीदारी, और संस्थागत समन्वय की कमी मुख्य बाधाएं हैं। कई राज्यों में AMRUT 2.0 के तहत 90% से अधिक फंड के लिए अभी भी अनुमोदन बाकी है।
जल संकट के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
भारत के जल संकट के व्यापक आर्थिक और सामाजिक प्रभाव हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक अनुमानित जल मांग आपूर्ति से 70% अधिक हो सकती है, जिससे कृषि सबसे अधिक प्रभावित होगी। इससे 2050 तक GDP में 6% की हानि हो सकती है। नीति आयोग के अनुसार, लगभग 2,00,000 लोग प्रदूषित पानी के कारण हर साल मर जाते हैं।
जल संकट से पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान होता है। कई वन्यजीव पानी की तलाश में मानव बस्तियों में प्रवेश करने को मजबूर हैं, जिससे संघर्ष की स्थितियां बनती हैं। जल संकट जैविक विविधता को बाधित करता है और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को प्रभावित करता है।
समाधान और सिफारिशें
भारत के जल संकट के समाधान के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सबसे पहले, जल की अधिक खपत को कम करना आवश्यक है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), और रिमोट सेंसिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का एकीकरण जल खपत की माप और प्रबंधन में काफी सुधार ला सकता है।
जल दक्षता में सुधार करना महत्वपूर्ण है। वितरण नेटवर्क, ट्रीटमेंट प्लांट और भंडारण सुविधाओं जैसे जल सिस्टम और बुनियादी ढांचे के प्रदर्शन में सुधार करके जल की बर्बादी को कम किया जा सकता है। रिसाव की मरम्मत, हानि को कम करना और उपकरणों को अपग्रेड करना आवश्यक है।
वैकल्पिक जल स्रोतों का विस्तार करना चाहिए। वर्षा जल संचयन, जल पुन: उपयोग, और भूजल निष्कर्षण जैसे विकल्पों की खोज करके विविध उपयोगों के लिए पानी की उपलब्धता और पहुंच बढ़ाई जा सकती है। तटीय क्षेत्रों में विशेष रूप से समुद्री पानी के विलवणीकरण की तकनीक का उपयोग किया जा सकता है।
क्या हो सकता है निष्कर्ष ?
भारत में पानी का संकट और शहरी नियोजन की नाकामी एक-दूसरे से गहरे रूप से जुड़े हुए हैं। अनियोजित शहरीकरण, पारंपरिक जल संरक्षण प्रणालियों की उपेक्षा, और अकुशल जल प्रबंधन ने इस संकट को गंभीर बना दिया है। हालांकि सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन उनके प्रभावी क्रियान्वयन, समन्वय और दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है।
समाधान केवल नीतिगत सुधार, तकनीकी नवाचार और सामुदायिक सहयोग के संयोजन से ही संभव है। स्थानीय समुदायों और संस्थानों को जल संसाधन प्रबंधन के लिए सशक्त बनाना, जल-कुशल फसलों को प्रोत्साहन देना, और जलवायु-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे का निर्माण करना आवश्यक है। जल संकट का समाधान तभी संभव है जब सरकार, समाज और प्रत्येक नागरिक मिलकर ठोस कदम उठाएं और जल संरक्षण को जन आंदोलन बनाया जाए।
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जल बचाना, जीवन बचाना।
सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।
'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
