दृष्टिकोण: अपराध और समाज व्यवस्था, क्या अपराधी समाज की उपज है या उसकी विफलता?

अपराध रोकथाम के लिए सामूहिक प्रयास और समाधान

दृष्टिकोण: अपराध और समाज व्यवस्था, क्या अपराधी समाज की उपज है या उसकी विफलता?
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समृद्ध डेस्क: अपराध मानव समाज की सबसे पुरानी और पेचीदा समस्याओं में से एक है। समाज में अपराध के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं चोरी, हत्या, धोखाधड़ी, बलात्कार, और अन्य अपराध। प्रश्न उठता है कि क्या अपराधी वास्तव में समाज की उत्पत्ति हैं या ये समाज की कोई विफलता हैं? इस विषय पर विचार करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि अपराध और समाज के बीच का यह रिश्ता हमारे समाज की संरचना, न्याय प्रणाली और सुधारात्मक उपायों को समझने में मदद करता है।

अपराध: क्या है उसकी जड़?

अपराध को सामान्यतः वे क्रियाएं माना जाता है जो कानून द्वारा निषिद्ध हैं और जिनका समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अपराध सिर्फ एक व्यक्ति का कृत्य नहीं होता, बल्कि विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कारणों से उत्पन्न होता है। इसके पीछे कई सिद्धांत सामने आए हैं—जैसे कि सामाजिक संरचना की असमानताएं, गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा की कमी, और पारिवारिक टूट-फूट।

अपराधी समाज की उपज है?

इसे समझने के लिए हमें 'समाज की उपज' का अर्थ स्पष्ट करना होगा। समाज की उपज होने का आशय है कि अपराधी का निर्माण उसी समाज की परिस्थितियों और वातावरण से होता है। उदाहरण के लिए, गरीबी और बेरोजगारी उन कारकों में से हैं जो लोगों को अपराध करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे जिन्हें उनके मूलभूत अधिकार और आवश्यकताएं प्राप्त नहीं होतीं, वे अपने जीवन यापन के लिए अपराधी मार्ग अपना लेते हैं।

शिक्षा की कमी भी एक बड़ा कारण है। अनेक शोध बताते हैं कि शिक्षा से वंचित व्यक्ति अपराधिक प्रवृत्ति की ओर बढ़ सकते हैं। जब व्यक्ति को सही मार्गदर्शन और अवसर नहीं मिलते, तो वह आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाता है। परिवार और समाज की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। यदि परिवार में सही संस्कार और सहयोग न मिले, तो व्यक्ति अपराध की ओर झुकाव रख सकता है।

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इस संदर्भ में, कई समाजशास्त्री यह भी मानते हैं कि समाज का वह हिस्सा जिसमें लोगों के लिए समान अवसर नहीं होते, वह अपराधिक प्रवृत्तियों का गढ़ बनता है। यानी, समाज की आर्थिक और सामाजिक असमानताएं अपराधियों को जन्म देती हैं। यही कारण है कि अधिकतर अपराध कम विकसित या पिछड़े इलाकों से होते हैं।

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अपराध समाज की विफलता भी है

दूसरी ओर, अपराध को समाज की विफलता के रूप में भी देखा जाता है। जब समाज के विधान, न्याय व्यवस्था, और प्रशासनिक तंत्र अपराध को रोकने में असफल होते हैं, तब यह समाज की विफलता है। इसका मतलब है कि समाज के नियम और नैतिकता को स्थापित कर उसका पालन कराना ही समाज का काम है, जो यदि सही ढंग से न हो तो अपराध बढ़ता है।

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बहुतेरे अपराध यह दर्शाते हैं कि समाज अपने कमजोर वर्गों की संभाल ठीक से नहीं कर पा रहा है। न्याय पाने का असमान अवसर, पुलिस व्यवस्था में भ्रष्टाचार, एवं कानूनी प्रक्रिया में देरी जैसी समस्याएं भी अपराध बढ़ने का कारण हैं। यह स्थिति समाज की उस विफलता को उजागर करती है जो अपराध को जन्म देती है और उसे बढ़ावा देती है।

सामाजिक नियमन और सुधार के अभाव में अपराधी प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है। यदि समाज में समानता, न्याय, और सुरक्षा की भावना नहीं होगी तो अपराध के खिलाफ प्रभावी लड़ाई संभव नहीं है। इसके अलावा, समाज का मनोवैज्ञानिक और नैतिक पतन भी अपराध की एक बड़ी वजह है। जब समाज में अस्तव्यस्तता, असहिष्णुता, और नैतिक मूल्यों का पतन होता है तो इससे अपराध की जड़ें और गहरी होती हैं।

दोनों ही दृष्टिकोणों में सत्य

अपराध को सिर्फ समाज की उपज मानना या केवल समाज की विफलता ठहराना दोनों ही दृष्टिकोण आंशिक सत्य हैं। वास्तविकता में अपराध का कारण दोनों का संयोजन है। एक ओर, समाज की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से व्यक्ति अपराध की ओर प्रवृत्त होता है, और दूसरी ओर समाज की अपर्याप्त व्यवस्था उसे रोकने में असफल रहती है।

अपराध रोकने के लिए जरूरी है कि समाज के अंतर्निहित कारणों को समझा जाए। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा की कमी, और परिवारिक तनाव जैसे कारणों को दूर करते हुए समान अवसर प्रदान करना होगा। साथ ही न्याय व्यवस्था को प्रभावी, पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त बनाना होगा ताकि अपराध पर अंकुश लगाया जा सके।

निष्कर्ष

अपराध और समाज व्यवस्था के बीच गहरा जुड़ाव है। अपराधी समाज की उपज हैं, जो अपने सामाजिक-आर्थिक परिवेश के कारण अपराध की ओर बढ़ते हैं। इसके साथ ही, अपराध समाज की उस विफलता का भी परिणाम हैं जहां न्याय, सुरक्षा, और समानता की सही व्यवस्था नहीं होती। इसलिए, अपराध की समस्या को हल करने के लिए समाज की संरचना सुधारनी होगी, न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ करना होगा, और समान अवसर प्रदान करना होगा। तभी हम अपराध को कम कर एक स्वस्थ, सुरक्षित और न्यायसंगत समाज का निर्माण कर सकते हैं।

इस प्रकार, अपराध न सिर्फ व्यक्ति का दोष है, बल्कि वह समाज के उन तमाम असमंजसों का प्रतिबिंब भी है जो समय रहते नियंत्रित एवं सुधारित नहीं किए गए। समाज और कानून की सामूहिक जिम्मेदारी है कि वे अपराध और उसके कारणों की जड़ तक पहुंच कर एक समृद्ध और सुरक्षित समाज के लिए ठोस कदम उठाएं।

नोट: परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि अपराधियों को दंड न मिले। कानून का सिद्धांत है कि अपराध पर दंड अनिवार्य है ताकि न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

Edited By: Sujit Sinha
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सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।

'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

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