Honor Killing: जब परंपरा और पितृसत्ता निगल लेती है मासूम जिंदगियां
जाति, खाप पंचायत और परंपरा – इस अपराध के असली गुनहगार ?
समृद्ध डेस्क: ऑनर किलिंग, या "सम्मान के लिए हत्या," भारत में एक गहरी और जटिल सामाजिक-आपराधिक समस्या बनी हुई है। यह एक ऐसी विडंबना है जहाँ एक ओर देश तकनीकी और आर्थिक रूप से प्रगति कर रहा है, वहीं दूसरी ओर सदियों पुरानी, प्रतिगामी परंपराएं "सम्मान" और "इज़्ज़त" की आड़ में निर्दोषों की जान ले रही हैं । ऑनर किलिंग को आमतौर पर परिवार के सदस्यों द्वारा, विशेषकर महिलाओं के विरुद्ध की गई हिंसा के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिन्हें यह माना जाता है कि उन्होंने परिवार की प्रतिष्ठा पर "कलंक" लगाया है । यह रिपोर्ट केवल इस अपराध से जुड़े आँकड़ों को प्रस्तुत नहीं करती, बल्कि इसके पीछे के जटिल सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और कानूनी कारणों का एक गहन विश्लेषण भी प्रदान करती है, ताकि इस समस्या की बहुआयामी प्रकृति को पूरी तरह से समझा जा सके।

ऑनर किलिंग को परिभाषित करना: विडंबना और जटिलता
ऑनर किलिंग एक प्रकार का सांस्कृतिक अपराध है जो पारिवारिक या सामाजिक मानदंडों के उल्लंघन पर आधारित है । ह्यूमन राइट्स वॉच (Human Rights Watch) जैसे मानवाधिकार संगठनों ने इसे उन हिंसक कृत्यों के रूप में परिभाषित किया है, जो आमतौर पर पुरुष परिवार के सदस्यों द्वारा महिला रिश्तेदारों के खिलाफ किए जाते हैं, जिन्हें परिवार पर बदनामी लाने वाला माना जाता है । "सम्मान" की यह धारणा अक्सर पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंडों, नैतिकता और सख्त सामाजिक व्यवहार में गहराई से निहित होती है । यह सम्मान "इज़्ज़त," "गौरव" और "प्रतिष्ठा" जैसे शब्दों से जुड़ा होता है, और इसे अक्सर महिलाओं के आचरण से जोड़कर देखा जाता है ।
महिलाओं को अक्सर परिवार के सम्मान का "रक्षक" माना जाता है, और उनकी स्वायत्तता पर किसी भी तरह का उल्लंघन, जैसे कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करना, परिवार के सम्मान पर सीधा हमला माना जाता है । यह एक पितृसत्तात्मक प्रणाली का चरम रूप है, जहाँ पुरुषों को महिलाओं के जीवन पर पूर्ण नियंत्रण रखने का अधिकार मिलता है, और इस अधिकार के कथित उल्लंघन पर हिंसा को वैध ठहराया जाता है । यह एक ऐसा तंत्र है जो ऑनर किलिंग को केवल एक हिंसक कार्य नहीं, बल्कि महिलाओं को उनकी पसंद से वंचित करने और उनके जीवन को नियंत्रित करने के एक व्यापक सामाजिक तंत्र का सबसे क्रूर रूप बनाता है। यह अपराध दिखाता है कि सम्मान की धारणा एक सार्वभौमिक मूल्य नहीं, बल्कि एक सामाजिक उपकरण है जिसका उपयोग नियंत्रण बनाए रखने के लिए किया जाता है ।
मूल कारण: जाति, पितृसत्ता और परंपरा का जटिल जाल
ऑनर किलिंग कोई एकल-कारण अपराध नहीं है, बल्कि यह कई प्रतिगामी सामाजिक संरचनाओं का परिणाम है। इन अपराधों के मूल में जाति व्यवस्था, पितृसत्तात्मक मानसिकता और खाप पंचायतों जैसे अवैध निकायों का हस्तक्षेप है।
जाति और विवाह का नियंत्रण
ऑनर किलिंग का सबसे प्रमुख कारण अंतर्जातीय विवाह और गोत्र-बहिर्विवाह (exogamy) जैसे नियमों का उल्लंघन है । हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के बावजूद, जो अंतर्जातीय और सगोत्र विवाहों को कानूनी मान्यता देते हैं, ये विवाह अभी भी समाज के कुछ हिस्सों में गंभीर विरोध का सामना करते हैं । यह देखा गया है कि दलित पुरुषों और प्रभुत्वशाली जातियों की महिलाओं के बीच संबंध स्थापित जातिगत पदानुक्रम को सीधी चुनौती देते हैं, जिससे अक्सर हिंसा होती है ।
खाप पंचायतों की भूमिका
खाप पंचायतें "अतिरिक्त-संवैधानिक" निकाय हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में समानांतर शासन चलाते हैं । ये निकाय मुख्य रूप से प्रभुत्वशाली जातियों के पुरुषों से बने होते हैं । ये निकाय परंपरा और समुदाय के सम्मान के नाम पर अंतर्जातीय और सगोत्र विवाहों को प्रतिबंधित करने वाले फतवे जारी करते हैं । मनोज-बबली जैसे मामले, जहाँ एक ही गोत्र में शादी करने पर एक नवविवाहित जोड़े की हत्या कर दी गई थी, इन निकायों की क्रूरता को दर्शाते हैं ।
पितृसत्तात्मक संरचनाएँ
ऑनर किलिंग की जड़ें गहरी पितृसत्तात्मक संरचनाओं में हैं, जो महिलाओं की पसंद और निर्णय लेने की स्वायत्तता को नियंत्रित करती हैं । महिलाओं को विभिन्न कारणों से निशाना बनाया जाता है, जैसे:
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पसंद के साथी से शादी करना या अरेंज्ड मैरिज से इनकार करना।
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तलाक की मांग करना, खासकर अगर शादी अरेंज्ड थी।
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यौन उत्पीड़न या बलात्कार का शिकार होना।
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किसी पर अनैतिकता के आरोप या अफवाहें ।
पवित्रता का बहाना और सत्ता का संरक्षण
ऑनर किलिंग के कारणों का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि ये अपराध केवल "जाति की पवित्रता" या "अनुष्ठानिक शुद्धता" को बनाए रखने के बारे में नहीं हैं। यह एक आर्थिक और राजनीतिक हथियार भी है, जिसका उपयोग प्रभुत्वशाली समूह अपनी शक्ति और संसाधनों को बनाए रखने के लिए करते हैं ।
विशेष रूप से, ये हत्याएं तब अधिक होती हैं जब एक उच्च जाति की महिला एक निम्न जाति के पुरुष से शादी करती है (जिसे हाइपोगैमी कहा जाता है) । यह विवाह केवल जाति की शुद्धता को ही नहीं, बल्कि उस परिवार की संपत्ति, दहेज और सामाजिक पूंजी को भी "निम्न" जाति में जाने का खतरा पैदा करता है। इस प्रकार, ऑनर किलिंग एक ऐसा अपराध है जो जाति, लिंग और सत्ता के जटिल जाल में बुना हुआ है, जहाँ परंपरा का उपयोग सामाजिक और आर्थिक पदानुक्रम को बनाए रखने के लिए किया जाता है।
दयनीय वास्तविकता: आँकड़े और उनके पीछे की सच्चाई
ऑनर किलिंग के मामलों की आधिकारिक रिपोर्टिंग इस अपराध की वास्तविक सीमा को पूरी तरह से दर्शाने में विफल रहती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़े इस समस्या की भयावहता को कम करके आंकते हैं।
एनसीआरबी के आधिकारिक आँकड़े
एनसीआरबी ऑनर किलिंग के मामलों को एक अलग अपराध के रूप में वर्गीकृत नहीं करता है, बल्कि उन्हें "हत्या" की श्रेणी के तहत दर्ज किया जाता है । उपलब्ध आधिकारिक आँकड़े इस प्रकार हैं:
भारत में ऑनर किलिंग के आधिकारिक आँकड़े (2014-2022)
| वर्ष | कुल मामले | |
| 2014 | 28 | |
| 2015 | 251 | |
| 2016 | 77 | |
| 2019 | 25 | |
| 2020 | 25 | |
| 2021 | 33 |
हालाँकि, एनसीआरबी के 2020-2022 के राज्य-वार आँकड़े बहुत कम संख्या दिखाते हैं, जैसा कि लोकसभा में पेश किए गए एक प्रश्न के उत्तर से पता चलता है । उदाहरण के लिए, 2022 में, आंध्र प्रदेश में 0, बिहार में 1, झारखंड में 4 और पंजाब में 4 मामले दर्ज किए गए ।
मामलों की कम रिपोर्टिंग
आधिकारिक आँकड़े अक्सर जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाते हैं। पूर्व पुलिस अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार, ऑनर किलिंग की कम रिपोर्टिंग के कई प्रमुख कारण हैं:
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कानूनी वर्गीकरण का अभाव: चूंकि ऑनर किलिंग का कोई अलग से कानूनी वर्गीकरण नहीं है, इसलिए इसे 'हत्या' के रूप में दर्ज किया जाता है, जिससे इसकी पहचान और वर्गीकरण मुश्किल हो जाता है ।
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सामाजिक स्वीकार्यता: अपराधी अक्सर परिवार के सदस्य होते हैं, और वे अपराध को छिपाने की कोशिश करते हैं। चूंकि समुदाय के अन्य सदस्य अक्सर अपराध को "सम्मान" की बहाली के रूप में देखते हैं, इसलिए वे भी इस कार्य को छिपाने में मदद करते हैं ।
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अपराधियों का गर्व: अपराधियों को अक्सर अपने कार्य पर पछतावा नहीं होता, बल्कि वे इसे परिवार, जाति या धर्म की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए किया गया एक सम्मानजनक कार्य मानते हैं ।
यह कानूनी अस्पष्टता और सामाजिक स्वीकृति एक दुष्चक्र का निर्माण करती है। क्योंकि कोई विशिष्ट कानूनी परिभाषा नहीं है, इसलिए सही आँकड़े संकलित नहीं होते। और क्योंकि आधिकारिक आँकड़े कम हैं, यह समस्या की गंभीरता को कम करके आंकने का कारण बनता है, जिससे एक विशेष कानून की मांग कमजोर होती है । यह दिखाता है कि ऑनर किलिंग को एक अलग अपराध के रूप में वर्गीकृत करने में विफलता केवल एक कानूनी कमी नहीं है, बल्कि यह एक संस्थागत अवरोध है जो समस्या की वास्तविक सीमा को छिपाता है।
हाल के मामलों का अध्ययन
हाल ही के कुछ मामले इस भयावह वास्तविकता को दर्शाते हैं। हरदोई (उत्तर प्रदेश) में एक महिला की उसके विकलांग भाई ने इसलिए गोली मारकर हत्या कर दी, क्योंकि उसने अंतर्जातीय विवाह किया था। अपराधी ने इसे आत्महत्या दिखाने की कोशिश की, लेकिन फोरेंसिक रिपोर्ट ने सच्चाई उजागर कर दी । इसी तरह, गुजरात के बनासकांठा में 18 वर्षीय चंद्रिका चौधरी को उसके पिता और चाचा ने इसलिए मार डाला क्योंकि वह एक ऐसे व्यक्ति के साथ रिश्ते में थी, जिसे वे पसंद नहीं करते थे । उन्होंने पहले उसे बेहोश किया, फिर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी और इसे आत्महत्या दिखाने के लिए उसका शव लटका दिया । ये मामले दर्शाते हैं कि कैसे परिवार के सदस्य जानबूझकर अपराधों को छिपाने की कोशिश करते हैं।
कानूनी ढाँचा और चुनौतियाँ
भारत में ऑनर किलिंग को रोकने के लिए कोई विशिष्ट राष्ट्रीय कानून नहीं है । यह एक बड़ी कानूनी कमी है जो इस अपराध से निपटने में बाधा डालती है।
विशेष कानून का अभाव
यद्यपि 2012 में भारतीय विधि आयोग की 242वीं रिपोर्ट ने ऑनर किलिंग विरोधी कानूनों की आवश्यकता पर बल दिया था, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया । हालांकि, राजस्थान में 2019 का एक विशिष्ट कानून है जो इस अपराध को सीधे संबोधित करता है । 2024 में 'The National Commission for Protection from Honour Crime Bill' जैसे प्रस्तावित बिलों ने एक बार फिर इस मुद्दे को सामने लाया है ।
मौजूदा कानूनों की सीमाएँ
वर्तमान में, ऑनर किलिंग के मामलों को भारतीय दंड संहिता (IPC) (अब भारतीय न्याय संहिता) के तहत निपटाया जाता है। इसमें हत्या (धारा 302), हत्या का प्रयास (धारा 307), आपराधिक साजिश (धारा 120A/B), और हत्या का दुष्प्रेरण (धारा 107-111) जैसे प्रावधान शामिल हैं । हालाँकि, ये कानून अपर्याप्त हैं क्योंकि:
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वे हत्या के पीछे के "सम्मान" के मकसद को संबोधित नहीं करते हैं।
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वे ऑनर किलिंग और एक सामान्य हत्या के बीच कोई अंतर नहीं करते हैं।
ऑनर किलिंग के लिए एक विशेष कानून की अनुपस्थिति का सबसे बड़ा निहितार्थ यह है कि यह समाज में इस अपराध को एक विशिष्ट और गंभीर श्रेणी के रूप में स्थापित करने में विफल रहता है। जब कानून "सम्मान के लिए" हत्या को सिर्फ "हत्या" के रूप में देखता है, तो यह अनजाने में समाज को यह संकेत भेजता है कि इसके पीछे का मकसद कानूनी रूप से अप्रासंगिक है । यह अपराधियों को एक गुप्त सामाजिक लाइसेंस प्रदान करता है, क्योंकि वे जानते हैं कि उनका अपराध कानून की नजर में एक सामान्य अपराध है, जबकि उनके समुदाय की नजर में एक "गौरवपूर्ण" कार्य।
न्यायपालिका का रुख: मील के पत्थर वाले निर्णय और दिशा-निर्देश
विधायिका की निष्क्रियता के बावजूद, न्यायपालिका ने ऑनर किलिंग की लगातार निंदा की है और इस पर निर्णायक रुख अपनाया है।
ऑनर किलिंग पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख निर्णय
| निर्णय | वर्ष | मुख्य बिंदु |
| लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | 2006 | न्यायालय ने वयस्क व्यक्तियों को अपनी पसंद के साथी से शादी करने के अधिकार की पुष्टि की और ऑनर किलिंग को "मानवता पर एक आक्रोश" बताया। पुलिस को ऐसे जोड़ों की सुरक्षा का निर्देश दिया गया।
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| शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ | 2018 | न्यायालय ने स्पष्ट किया कि खाप पंचायतों जैसे अवैध निकायों के पास विवाह में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। राज्यों को ऐसे अपराधों को रोकने के लिए विशेष प्रकोष्ठ (Special Cells) और सुरक्षित आश्रय गृह (safe houses) स्थापित करने का निर्देश दिया गया।
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| शफीन जहान बनाम अशोकन के. एम. | 2018 | अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति के अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार को बरकरार रखा गया, इसे संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई।
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सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार ऑनर किलिंग को "बर्बर" और "सामंतवादी मानसिकता" से प्रेरित कृत्य बताया है । हालाँकि, ये निर्णय केवल दिशा-निर्देश प्रदान कर सकते हैं, वे एक व्यापक कानून की जगह नहीं ले सकते हैं । जब तक विधायिका एक विशेष कानून नहीं बनाती, तब तक अदालती आदेशों को प्रभावी ढंग से लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर होती है, जिनके पास अक्सर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी होती है । यह दिखाता है कि केवल न्यायिक सक्रियता पर्याप्त नहीं है; कानून के राज को प्रभावी बनाने के लिए कार्यपालिका और विधायिका की समान रूप से मजबूत भागीदारी आवश्यक है।
सामाजिक प्रभाव और आगे की राह
ऑनर किलिंग के सामाजिक प्रभाव दूरगामी हैं। यह न केवल पीड़ित के जीवन को समाप्त करता है, बल्कि जीवित बचे परिवार के सदस्यों और पूरे समुदाय पर भी गहरा मनोवैज्ञानिक आघात छोड़ता है । यह महिलाओं के लिए शिक्षा और रोजगार जैसे प्रगतिशील विचारों को बाधित करता है और प्रतिगामी परंपराओं को मजबूत करता है । सामाजिक स्वीकृति और राजनीतिक समर्थन के कारण, अपराधी अक्सर दंड से बच जाते हैं, जिससे कानून के शासन पर सवालिया निशान लगता है।
इस समस्या का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें कानूनी, सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार शामिल हों।
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कानूनी सुधार: ऑनर किलिंग को एक विशिष्ट अपराध के रूप में परिभाषित करने और अभियोजन के लिए स्पष्ट दिशानिर्देशों वाला एक विशेष कानून बनाया जाए।
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संस्थागत उपाय: मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक अदालतों की स्थापना की जाए । पुलिस अधिकारियों और न्यायाधीशों को जातिगत हिंसा और लैंगिक संवेदनशीलता पर प्रशिक्षित किया जाए।
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सामाजिक सुधार: शिक्षा और जागरूकता अभियानों के माध्यम से प्रतिगामी सामाजिक मूल्यों को चुनौती दी जाए।
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नागरिक समाज की भूमिका: हिम्मत महिला समूह (Himmat Mahila Samooh) जैसे गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों को बढ़ावा दिया जाए, जो अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़ों को सहायता और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
ऑनर किलिंग को भारत में आधुनिकता और परंपरा के बीच के एक बुनियादी संघर्ष के रूप में देखा जा सकता है । जहाँ संवैधानिक मूल्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंद के अधिकार की गारंटी देते हैं , वहीं समाज के कुछ हिस्से इन अधिकारों को चुनौती देने और पुराने पदानुक्रम को बनाए रखने के लिए हिंसक साधनों का उपयोग करते हैं । यह संघर्ष इस बात को स्पष्ट करता है कि ऑनर किलिंग को केवल कानूनी दंडात्मक उपायों से नहीं रोका जा सकता; इसके लिए समाज की मूल संरचनाओं और मूल्यों में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है।
एक जटिल समस्या के लिए बहु-आयामी समाधान की आवश्यकता
निष्कर्ष में, ऑनर किलिंग की जटिलता को संक्षेप में दोहराया जाएगा और बताया जाएगा कि यह केवल कानूनी समस्या नहीं है, बल्कि एक सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक समस्या है। यह जोर दिया जाएगा कि इस चुनौती का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए, कानून, न्यायपालिका, सरकार और नागरिक समाज सहित सभी हितधारकों को एक साथ काम करने की आवश्यकता है। यह संदेश दिया जाएगा कि ऑनर किलिंग को समाप्त करना केवल न्याय के बारे में नहीं है, बल्कि एक ऐसे समाज के निर्माण के बारे में है जहाँ हर व्यक्ति को डर के बिना गरिमा, स्वायत्तता और पसंद के साथ जीने का अधिकार हो।
सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।
'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
