दिनकर ने सुनाई थी संसद में पंक्तियां, “बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है”

दिनकर ने सुनाई थी संसद में पंक्तियां, “बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है”

जन्मदिवस पर विषेश

रांची: राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के जन्मदिन पर देश के पीएम मोदी सहित देश कई नेताओं ने उन्हें याद किया. उन्होंने कहा कि रामधारी सिंह दिनकर को अपने देश से अटूट प्रेम था, इसकी झलक काव्य संरचना में देखने को मिलता है. बिहार राज्य ने अनेक महापुरुषों को जन्म दिया है. इसी में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर थे.

रामधारी सिंह दिनकर हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि और निबन्धकार थे. वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं. उनका जन्म बिहार राज्य के बेगुसराय सिमरियां ग्राम में हुआ था. उन्होंने  पटना विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीतिक विज्ञान में बीए किया. बी.ए की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक विद्यालय में अध्यापक हो गये. बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर कार्य किया.

संसद में आया था भूचाल पंक्तियों से

रामधारी सिंह दिनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे, लेकिन जब बात देश के हित-अहित की आती थी तो वह बेबाक टिप्पणी करने से कतराते नहीं थे. रामधारी सिंह दिनकर ने ये तीन पंक्तियां पंडित जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ संसद में सुनाई थी, जिससे देश में भूचाल मच गया था. दिलचस्प बात यह है कि राज्यसभा सदस्य के तौर पर दिनकर का चुनाव पंडित नेहरु ने ही किया था, इसके बावजूद नेहरू की नीतियों की मुखालफत करने से वे नहीं चूके.

देखने में देवता सदृश्य लगता है

बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है।

जिस पापी को गुण नहीं गोत्र प्यारा हो

समझो उसी ने हमें मारा है॥

 

चीनी आक्रमण से आहत

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को अपने देश से अटूट प्रेम था. राष्ट्रकवि की रचनाओं में यह साफ झलकता था. देश पर चीनी आक्रमण से आहत होकर दिनकर ने सन् 1962 में ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ लिखी थी. राष्ट्रकवि ने पटना विवि के सीनेट हॉल में ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ का काव्य पाठ किया. वीर रस की कविता को सुनकर छात्रों और शिक्षकों ने खूब तालियां बजाई थीं. तब यह किताब छपकर नहीं आई थी.

गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ?
शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ?
उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था,
तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था;
सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गये थे,
निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गये थे;

Edited By: Samridh Jharkhand

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