दिनकर ने सुनाई थी संसद में पंक्तियां, “बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है”

जन्मदिवस पर विषेश

रामधारी सिंह दिनकर हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि और निबन्धकार थे. वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं. उनका जन्म बिहार राज्य के बेगुसराय सिमरियां ग्राम में हुआ था. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीतिक विज्ञान में बीए किया. बी.ए की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक विद्यालय में अध्यापक हो गये. बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर कार्य किया.
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि। उनकी कालजयी कविताएं साहित्यप्रेमियों को ही नहीं, बल्कि समस्त देशवासियों को निरंतर प्रेरित करती रहेंगी।
— Narendra Modi (@narendramodi) September 23, 2020
संसद में आया था भूचाल पंक्तियों से
रामधारी सिंह दिनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे, लेकिन जब बात देश के हित-अहित की आती थी तो वह बेबाक टिप्पणी करने से कतराते नहीं थे. रामधारी सिंह दिनकर ने ये तीन पंक्तियां पंडित जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ संसद में सुनाई थी, जिससे देश में भूचाल मच गया था. दिलचस्प बात यह है कि राज्यसभा सदस्य के तौर पर दिनकर का चुनाव पंडित नेहरु ने ही किया था, इसके बावजूद नेहरू की नीतियों की मुखालफत करने से वे नहीं चूके.
देखने में देवता सदृश्य लगता है
बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है।
जिस पापी को गुण नहीं गोत्र प्यारा हो
समझो उसी ने हमें मारा है॥
चीनी आक्रमण से आहत
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को अपने देश से अटूट प्रेम था. राष्ट्रकवि की रचनाओं में यह साफ झलकता था. देश पर चीनी आक्रमण से आहत होकर दिनकर ने सन् 1962 में ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ लिखी थी. राष्ट्रकवि ने पटना विवि के सीनेट हॉल में ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ का काव्य पाठ किया. वीर रस की कविता को सुनकर छात्रों और शिक्षकों ने खूब तालियां बजाई थीं. तब यह किताब छपकर नहीं आई थी.
गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ?
शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ?
उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था,
तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था;
सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गये थे,
निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गये थे;