आदित्य साहू: ज़मीन से उठकर शिखर तक का नेतृत्व
संघर्ष, संगठन और संवेदनशील राजनीति का सशक्त चेहरा
झारखंड भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष आदित्य साहू के संघर्ष, सादगी और जन-नेतृत्व की प्रेरक कहानी। मंडल से राज्यसभा तक के सफर पर विशेष लेख।
- अरविंद शर्मा

2003 में पहली मुलाकात और पहली छाप
मेरी उनसे पहली मुलाकात वर्ष 2003 में हुई थी, जब मैं दैनिक जागरण, रांची के स्टेट ब्यूरो में कार्यरत था और वे रांची ग्रामीण भाजपा के जनरल सेक्रेटरी थे। उस समय वे तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कड़िया मुंडा के साथ अक्सर दिखाई देते थे। शुरुआती मुलाकातों में ही उनकी सहजता, सरलता और परिपक्व विनम्रता ने मुझे गहराई से प्रभावित किया था।
रांची ग्रामीण भाजपा से सक्रिय राजनीति की शुरुआत
आदित्य साहू का राजनीतिक सफर किसी ऊंचे पद से नहीं, बल्कि जमीनी संगठन से शुरू हुआ। उन्होंने मंडल स्तर से राजनीति की शुरुआत की और संगठन में धीरे-धीरे अपनी मजबूत पहचान बनाई। यही कारण है कि उनका नेतृत्व पूरी तरह व्यवहारिक और जमीनी माना जाता है।
दो दशक बाद संसद परिसर में वही आत्मीयता
करीब दो दशक के लंबे अंतराल के बाद जब संसद परिसर में उनसे दोबारा मुलाकात हुई, तो वही अपनापन, वही सादगी और वही आत्मीयता देखने को मिली। न कोई औपचारिकता, न कोई दूरी—मानो समय केवल रिश्तों को और मजबूत कर गया हो।मं
मडल से राज्यसभा तक का संघर्षपूर्ण राजनीतिक सफर
वर्ष 1988 में वे वैचारिक रूप से भाजपा से जुड़े। मंडल इकाई से शुरुआत करते हुए 2002–03 में उन्हें रांची ग्रामीण इकाई का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया। 2012–13 में राज्य कार्यकारिणी, 2014 में प्रदेश उपाध्यक्ष और 2022 में राज्यसभा सांसद बनने तक का सफर उनके संघर्ष और संगठन के भरोसे का प्रमाण है।
संगठन के निचले पायदान से शीर्ष नेतृत्व तक
आज आदित्य साहू झारखंड भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। यह पद उन्हें अचानक नहीं मिला, बल्कि संगठन के हर स्तर पर निष्ठा, अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा के कारण मिला है।
हाशिए के समाज से मुख्यधारा तक का प्रतिनिधित्व
आदित्य साहू उस सामाजिक वर्ग से आते हैं जिसे पारंपरिक राजनीति में अक्सर हाशिए पर रखा गया। उस वर्ग से निकलकर मुख्यधारा के नेतृत्व तक पहुंचना न केवल उनकी व्यक्तिगत सफलता है, बल्कि सामाजिक प्रतिनिधित्व का भी सशक्त उदाहरण है।
भाजपा ने उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर यह स्पष्ट किया है कि संगठन अब जमीनी नेताओं को आगे बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहा है। उनकी सामाजिक पकड़ और संगठनात्मक समझ पार्टी को नई दिशा देने में सहायक बन रही है।
जन-नेता की पहचान और ज़मीन से जुड़ा नेतृत्व
आदित्य साहू की सबसे बड़ी पहचान यही है कि वे पद-नेता नहीं, बल्कि जन-नेता हैं। आम कार्यकर्ता से लेकर आम जनता तक, सभी से उनका सीधा संवाद उन्हें अलग बनाता है।
संवेदनशीलता, सादगी और संवाद की राजनीति
उनकी राजनीति में न आडंबर है, न दिखावा—बल्कि संवेदनशीलता, संवाद और सादगी की स्पष्ट झलक मिलती है। यही वजह है कि वे हर वर्ग में स्वीकार्य हैं।
व्यक्तिगत रिश्तों में भी वही अपनापन और सहजता
मेरी भतीजी डॉ. निशा सिंह के विवाह समारोह में उपस्थित होकर वर-वधू को आशीर्वाद देना उनके मानवीय और सामाजिक स्वभाव का ही प्रमाण है। सार्वजनिक जीवन के साथ-साथ निजी रिश्तों में भी वे उतने ही संवेदनशील और आत्मीय हैं।
आदित्य साहू झारखंड की राजनीति में उस नेतृत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो ज़मीन से उठकर शिखर तक पहुंचा है। कर्म, संघर्ष, संगठन और संवेदनशीलता—इन चार स्तंभों पर टिका उनका व्यक्तित्व उन्हें एक भरोसेमंद और प्रभावी जन-नेता बनाता है।
