51 मुकदमों से उठते सवाल, क्या सांसद निशिकांत दुबे झारखंड के सबसे बड़े गैंगस्टर और आतंकवादी हैं?
राज्य सरकार 5 वर्षों में करीब 10 से 12 करोड रुपए कर चुकी है खर्च
आरटीआई से प्राप्त सूचना के आधार पर दुबे ने ही लोकसभा में राशि के बारे में कहा था। आखिर एक सांसद के खिलाफ इतने रुपए कोर्ट कचहरी में खर्च करने की क्या जरूरत है।
गोड्डा लोकसभा क्षेत्र से लगातार चार बार से सांसद चुने जा रहे निशिकांत दुबे के खिलाफ फिर एक मुकदमा दर्ज कर दिया है। पिछले करीब 5 वर्षों में निशिकांत दुबे के खिलाफ 51 मुकदमे विभिन्न स्थानों में दर्ज किए जा चुके हैं। एक सांसद के खिलाफ 51 मुकदमे दर्ज किए जाने की खबर से ऐसा लगता है कि निशिकांत दुबे झारखंड के सबसे बड़े गैंगस्टर हैं, अपराधी और माफिया हैं। इसलिए उनके खिलाफ इतनी मुकदमें दर्ज किए गए हैं।

मेरी जानकारी में झारखंड में ऐसा कोई बड़ा गैंगस्टर, अपराधी, नक्सली, आतंकवादी या राजनीतिज्ञ नहीं होगा जिसके खिलाफ 5 वर्षों 51 मुकदमे दर्ज किए गए होंगे।
यह बहुत गंभीर मामला है। निशिकांत दुबे ने अपनी प्रतिभा, ज्ञान और काम से पूरे देश में अपनी पहचान बनाई है। लोकसभा में जब वह बोलते हैं तो फिर सारे लोग उन्हें सुनते हैं। पूरी तैयारी के साथ लोकसभा में आते हैं व बोलते हैं। कई किताबें, अखबारों में छपी खबर तथा विभिन्न सूचनाओं और तथ्यों से लैस होकर तर्कपूर्ण भाषण वह देते हैं तो पूरा देश सुनता है। झारखंड का एक सांसद जब लोकसभा में प्रखर वक्ता के रूप में बोलता है तो इससे झारखंड का नाम पूरे देश में होता है। सबको गर्व होता है।
निशिकांत दुबे ने विकास के मामले में भी पूरे देश में एक उदाहरण पेश किया है। गोड्डा लोकसभा क्षेत्र का जितना विकास हुआ है उतना विकास शायद ही किसी क्षेत्र में हुआ हो। रेल नेटवर्क के मामले में तो संभवत देश में पहला स्थान हो सकता है। पिछड़े इलाके की तस्वीर ही बदल गई है। अब ऐसे सांसद के खिलाफ यदि कोई सरकार बदले की भावना से लगातार कार्रवाई करें तो सवाल उठना लाजमी है।
आखिर निशिकांत दुबे के पीछे झारखंड सरकार क्यों पड़ी है। झारखंड में भाजपा विपक्ष में है तो विपक्ष के संसद के रूप में वह सरकार के गलत कार्यों का विरोध करते हैं। विपक्ष का यह कर्तव्य है। वह तो अपनी भूमिका निभा रहे हैं। ऐसा लगता है कि सरकार जानबूझकर निशिकांत दुबे के पीछे पड़ी है । यह ठीक नहीं है।
निशिकांत दुबे के खिलाफ मुकदमों पर राज्य सरकार 5 वर्षों में करीब 10 से 12 करोड रुपए खर्च कर चुकी है। आरटीआई से प्राप्त सूचना के आधार पर दुबे ने ही लोकसभा में राशि के बारे में कहा था। आखिर एक सांसद के खिलाफ इतने रुपए कोर्ट कचहरी में खर्च करने की क्या जरूरत है। इतना भारी रकम खर्च करने के बाद सरकार लगभग हर मुकदमे में हार जा रही है। मुकदमे फर्जी हैं इसलिए निशिकांत दुबे को कोर्ट से राहत मिल जाती है। फिर भी सरकार मुकदमों से बाज नहीं आ रही है। 10-12 करोड रुपए यदि विकास कार्य पर खर्च होते हैं तो न जाने कितने काम हो जाते।
सांसद निशिकांत दुबे व मनोज तिवारी सहित कई लोगों के खिलाफ जो मुकदमा देवघर में किया गया है वह भी अदालत में शायद ही टिके। निशिकांत दुबे इस मुकदमे को चुनौती देते हुए गिरफ्तारी के लिए खुद थाने पहुंच गए। लेकिन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया। आखिर गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई। घटना के चार-पांच दिन बाद मुकदमा दर्ज क्यों किया गया। निशिकांत दुबे और मनोज तिवारी ने यदि हंगामा किया। कानून तोड़ा तो तत्काल मुकदमा दर्ज कार्रवाई होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यही तो संदेश पैदा करता है।
सरकार में बड़े-बड़े लोग बैठे हैं। उन्हें यह सोचना चाहिए कि वह क्या कर रहे हैं। राज्य की किरकिरी क्यों करा रहे हैं। बेहतर तो यही होगा की सरकार निशिकांत दुबे के खिलाफ बदले की कार्रवाई न करें। निशिकांत दुबे अगर गलत हैं तो जरूर मुकदमा दर्ज हो। कार्रवाई हो। लेकिन सिर्फ बदले की भावना से नहीं।
