Opinion: ददई दुबे का निधन, निडर और दबंग राजनेता का अंत
बाहुबली विनोद सिंह से टकराव को लेकर होती थी चर्चा
चंद्रशेखर दुबे विश्रामपुर से कई बार विधायक व धनबाद से सांसद रहे. झारखंड सरकार में मंत्री भी रहे. मजदूर संगठन इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष सहित कई पदों पर रहे. उनके नाम ढेर सारे रिकॉर्ड हैं. वैसे तो झारखंड बिहार की राजनीति में उनकी एक अलग पहचान थी
पलामू प्रमंडल के साथ झारखंड की राजनीति में अपनी बेबाक आवाज और निडर नेता की छवि रखने वाले चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे अब इस दुनिया में नहीं रहे. उन्होंने राजनीति में एक लंबी लकीर खींच दी है, जो लंबे समय तक याद रखा जाएगा.

ददई दुबे ने गांव की राजनीति से अपना करियर शुरू किया. वह पहले मुखिया चुने गए. फिर सीधे विश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए. ददई दुबे ने जब विश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र से राजनीति शुरू की तो उनदिनों बाहुबली विनोद सिंह भी इसी क्षेत्र से राजनीति में सक्रिय थे. ददई दुबे की छवि भी एक दबंग और जुझारू नेता की थी. तब दोनों नेताओं में खूब टकराव होता था. बिश्रामपुर की राजनीति की गूंज संयुक्त बिहार में सुनाई पड़ती थी. विनोद सिंह बनाम ददई दुबे की चर्चा हर तरफ सुनने को मिलती थी. उनदिनों मैं छोटा था और राजनीति की बहुत समझ नहीं थी. फिर भी इन दोनों का नाम आज भी मेरे जेहन में है. कई घटनाएं याद हैं. दोनों नेता हरवे हथियार और समर्थकों के काफिले के साथ चलते थे. जिधर जाते उधर चर्चा होती. विधानसभा चुनाव में तो पूरे राज्य की नजर विश्रामपुर सीट पर ही होती थी. ददई दुबे और विनोद सिंह को लेकर पूरे बिहार में विश्रामपुर की चर्चा होती थी. हालांकि बाद के दिनों में विनोद सिंह की हत्या हो गई और इसके साथ ही ददई दुबे की चुनौती भी खत्म हो गई. बाहुबली विनोद सिंह जब तक जिंदा रहे सुर्खियों में बने रहे.
विनोद सिंह की हत्या के बाद ददई दुबे की राजनीति ने भी नई करवट ली और उन्होंने राजनीति की दिशा अलग मोड़ दी. वह मजदूरों और जनता की राजनीति पर अधिक फोकस करने लगे. जनता और मजदूरों के सवाल से उन्होंने कभी मुंह नहीं मोड़ा. वह एक मजबूत और जुझारू नेता थे. अधिकारियों से कभी डरते नहीं थे. चाहे वह कितने बड़े अधिकारी क्यों न हो. उनके दबंग और ईमानदार छवि को लेकर अधिकारी भी डरते थे. मान सम्मान से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया. कभी घुटने नहीं टेके. राजनीति में ऐसे नेता कम ही मिलते हैं.
ददई दुबे को जानने वाले ऐसे कई लोग हैं जो बताते हैं कि उन्होंने कब किस परिस्थिति में लोगों की मदद की. राजनीति में जब उनकी तूती बोलती थी तो मदद के लिए अधिकांश लोग उन्हीं के पास जाते थे. अक्सर वह लोगों की मदद करते थे.
ददई दुबे कई बड़े पदों पर रहे. विधायक, सांसद मंत्री वह इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. इंटक की राजनीति की वजह उनको राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. कोयलांचल इलाके में भी वह लोकप्रिय थे.
ददई दुबे को जानने वाले बताते हैं कि राजनीति को उन्होंने धन कमाने का जरिया नहीं बनाया. वह ईमानदारी से राजनीति करते रहे. भ्रष्टाचार के कभी गंभीर आरोप उन पर नहीं लगा. वह ईमानदार थे इसलिए किसी से डरते नहीं थे. हेमंत सोरेन सरकार में एक बार जब वह मंत्री थे तो वह अपने बयानों और कार्यशैली को लेकर विवादों में फंसे. उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया था. उन्होंने मंत्री पद छोड़ना स्वीकार किया लेकिन झुके नहीं.
आज की राजनीति में ऐसे नेता कहां हैं. ददई दुबे ने राजनीति में अपने कार्यों से लंबी लकीर खींची है. इसलिए वह हमेशा याद किए जाएंगे. उनके निधन के बाद पलामू की राजनीति में एक बड़ी रिक्तता आ गई है. उनसे जुड़े कई प्रसंग हैं जिसकी चर्चा करने पर यह श्रद्धांजलि टिप्पणी लंबी हो जाएगी. इसलिए इसे यहीं खत्म करता हूं.
