पुरुषों के पेशे में बनाई पहचान, एक मां ने किया मां की मूर्ति का निर्माण

पुरुषों के पेशे में बनाई पहचान, एक मां ने किया मां की मूर्ति का निर्माण

रांची: आज नये भारत की निर्माण (Construction of india) में महिला भी पुरुष के समान कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है. अपनी योग्यता, परिश्रम बुद्धि के बल पर समाज में उनको नई पहचान मिल रही है. इस तथ्य को सही साबित करने में माधवी पाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी. वर्ष 2012 की दुर्गापूजा (Durga puja) आने में कुछ ही वक़्त शेष था और विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) के दिन माधवी पाल के पति मूर्तिकार बाबू पाल का देहांत हो गया.

अचानक परिवार पर गिरी इस संकट ने माधवी की जीवन में उथल-पुथल मचा दिया. माधवी पाल के सिर पर मूर्ति स्टूडियो के साथ परिवार का बोझ भी आ गया. संकट के समय में काम करने वाले कारीगर भी काम छोड़कर चले गए. आकस्मिक संकट (Sudden crisis) ने अपने साथ माधवी के लिए एक चुनौती भी लेकर आया. मगर उन्होंने हार ना मानते हुए इसे जीवन का एक कठिन पहलू समझकर स्वीकार किया और मूर्ति बनाने का काम करने लगीं.

माधवी पाल कहती हैं कि छोटे से स्टूडियो में मूर्तियों (Statues in the studio) को रखना और चेहरे की हर रेखा, हर भाव को इंसानों की तरह बनाने की कारीगरी आसान नहीं. मां दुर्गा के साथ लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिकेय और गणेश के चेहरे पर क्रोध के साथ पीड़ा भी दिखानी होती है. उनका मानना है कि वह एक महिला होने के कारण मां की मूर्ति को ज़्यादा बेहतरी से साकार कर पाती हैं.

आगे उन्होंने बताया कि मां दुर्गा की मूर्तियां 4 महीने पहले से ही बनाना शुरू कर दिया जाता है. इस वर्ष भी मूर्ति बनानी शुरू हो गई थी.दुर्गा मूर्ति में 5 मूर्तियों के साथ उनके वाहन और बहुत डिटेलिंग की जरूरत पड़ती है. मूर्तियों को तुरंत नहीं बनाया जा सकता. मगर अब राज्य सरकार गाइडलाइंस (State Government Guidelines) के अनुसार मूर्तियों को 4 फीट से अधिक ऊंचा बनाने की अनुमति नहीं है. अब इतने कम समय में मूर्तियों को छोटा करना मुश्किल है. माधवी पाल ने कहा कि अब वें 8-10 मूर्तियां 4 फीट की बना रहे हैं. वहीं उनका कहना है कि छोटी मूर्तियां बनाना अधिक चुनौतीपूर्ण कार्य है. इसमें हर कार्य बारीकी से करना पड़ता है.

आपको बता दें कि इस वर्ष छोटी मूर्तियां 12 से 14 हजार में बिक रही हैं. लॉकडाउन का असर हर क्षेत्र में पड़ा है. इसका अछूता मूर्तिकार भी नहीं रहे हैं. मूर्तिकार माधवी (Sculptor madhavi) बताती हैं कि हर साल 25-26 दुर्गा की मूर्ति आराम से बिक जाया करती थी. मगर इस साल 10 की बुकिंग हुई है. पुराने लोग जो हमेशा मूर्तियों की बुकिंग करते थे वह इस साल मूर्तियों का आर्डर देने नहीं आए. आगे उन्होंने बताया कि उनकी बनाई मूर्तियां रांची के अलावा रामगढ़, खूंटी भी जाती है.

बता दें माधवी पाल कोलकाता (Kolkata) की रहने वाली हैं. जो दुर्गा उत्सव के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. शादी के बाद वह जमशेदपुर (Jamshedpur) आई और फिर वहां से रांची. उनका बेटा रांची में ही प्राइवेट नौकरी (Private job)करता है और बेटी बेंगलुरु में है. अकेले ही घर, कारखाना और अपने कामगारों को देखती हैं. फिलहाल उनके साथ 5-6 कारीगर काम कर रहे हैं.

Edited By: Samridh Jharkhand

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