Jangalraj in Bihar: वो समय जब कानून भी था कांपता, जंगलराज का वो सच जिसे इतिहास भी शर्माता है!

Jangalraj in Bihar: वो समय जब कानून भी था कांपता, जंगलराज का वो सच जिसे इतिहास भी शर्माता है!
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पटना: एक दौर था जब बिहार का नाम आते ही लोगों के मन में डर और निराशा की तस्वीर उभरती थी। बिहार की राजनीति में 'जंगलराज' शब्द यूं ही नहीं जन्मा था। 1990 से 2005 के बीच लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल में राज्य अपराध, अपहरण और भ्रष्टाचार की गिरफ्त में था। सड़कों से लेकर सचिवालय तक अराजकता का माहौल था। सड़कों पर लूट, अपहरण और हत्या की वारदातें आम थीं। उद्योग चौपट,नौजवान पलायन को मजबूर और सरकारी दफ्तरों में रिश्वतखोरी चरम पर थी। इसी काल को लोगों ने 'जंगलराज' कहा, जहां कानून की जगह खौफ का शासन था।

इतिहास का वो दौर जिसे बिहार कभी नहीं भुलेगा। 90 के दशक के उत्तरार्ध में बिहार में अपहरण उद्योग फल-फूल रहा था। डॉक्टरों, इंजीनियरों, व्यापारियों और छात्रों का अपहरण आम बात बन गई थी। पटना, गया, आरा, सीवान, भागलपुर, कोई जिला इससे अछूता नहीं रहा। 1999 में हुई शिल्पी-गौतम हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर दिया था। यह मामला सत्ता से जुड़े लोगों के संरक्षण में अपराध होने के आरोपों से घिरा रहा।

उस दौर का कड़वा सच था पढ़ो और भागो

रोजगार और सुरक्षा के अभाव में हजारों युवा राज्य छोड़कर दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात और मुंबई की ओर निकल गए। सीतामढ़ी के रहने वाले जयकिशोर तिवारी कहते हैं कि पढ़े-लिखे युवकों को यह विश्वास नहीं था कि बिहार में मेहनत से कुछ हासिल किया जा सकता है। पढ़ो और भागो यह उस दौर का कड़वा सच बन गया था।

डर का माहौल और सामाजिक विखंडन

आरा जिले के राजेंद्र तिवारी बताते हैं कि लोग रात में घर से निकलने से कतराते थे। हर परिवार के किसी न किसी सदस्य के साथ अपराध का अनुभव जुड़ा हुआ था। जातीय गोलबंदी इतनी मजबूत थी कि चुनाव से लेकर सरकारी नियुक्ति तक सब कुछ उसी आधार पर तय होता था। सड़कें टूटीं, बिजली गुल रहती, शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई। सरकारी स्कूलों में अध्यापक महीनों तक नहीं आते, अस्पतालों में दवाइयां गायब रहतीं। ग्रामीण इलाकों में विकास योजनाएं कागजों पर सीमित थीं और शहरी क्षेत्र में अराजक ट्रैफिक व गंदगी का बोलबाला था।

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बिहार की छवि पर काला धब्बा

देश के बाकी हिस्सों में 'बिहार' शब्द मजाक का पर्याय बन गया था। अपराध और भ्रष्टाचार के कारण निवेशक राज्य में आने से डरते थे। बिहार की विकास दर देश में सबसे नीचे थी। 2004-2005 के आसपास परिवर्तन की लहर उठी, जब अपराध, भय और बदहाली से त्रस्त लोगों ने 'नया बिहार' चाहा। इसी पृष्ठभूमि में राजनीतिक परिवर्तन हुआ और धीरे-धीरे वह दौर इतिहास बन गया। मगर उसकी गूंज आज भी बिहार की राजनीति में सुनाई देती है।

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चारा घोटाले ने किया शासन की सच्चाई उजागर

1996 में उजागर हुआ चारा घोटाला जंगलराज की सबसे बड़ी कहानी बन गया। सरकारी कोष से पशुओं के चारे के नाम पर करोड़ों रुपये की लूट का खुलासा हुआ। भाजपा ने संसद और विधानसभा दोनों में इस पर तीखी बहस की और केंद्र सरकार से सीबीआई जांच की मांग की। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि बिहार की जनता का धन चारा बनकर नेताओं के बंगलों में पहुंच गया।

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भाजपा थी जंगलराज की सबसे मुखर विरोधी

बिहार से भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे कहते हैं कि अंधकार के दौर में भाजपा ने सबसे मुखर होकर आवाज उठाई कि अब बिहार को सुशासन चाहिए। भाजपा उस दौर में न तो सत्ता में थी, न ही किसी गठबंधन का बड़ा चेहरा। भाजपा के खिलाफ राजद, कांग्रेस और वाम दल एकजुट थे। लेकिन- विपक्ष की सबसे मुखर आवाज थी। सुशील कुमार मोदी, नंदकिशोर यादव, गिरिराज सिंह, प्रेम कुमार, गंगा प्रसाद और रामनाथ ठाकुर जैसे नेताओं ने विधानसभा से लेकर गांव-गांव तक लालू-राबड़ी राज को चुनौती दी। उस समय बिहार में कानून-व्यवस्था नहीं, केवल सत्ता की मनमानी थी। भाजपा ने 1997 में भ्रष्टाचार हटाओ, अपराध मिटाओ यात्रा निकाली। पटना, गया, मोतिहारी, बेतिया और दरभंगा में बड़े-बड़े विरोध प्रदर्शन हुए।

नीतीश कुमार से बनी नई राजनीतिक धुरी

जब लालू यादव के शासन से असंतुष्ट होकर नीतीश कुमार ने अलग होकर समता पार्टी बनाई, तब भाजपा ने उन्हें पूरा समर्थन दिया। भाजपा-समता गठबंधन ने 2000 के चुनाव में जंगलराज खत्म करो-बिहार बचाओ का नारा दिया। यही गठबंधन आगे चलकर एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) का बिहार मॉडल बना और 2005 में बिहार को नई दिशा दी।

2005 में मिला जंगलराज से मुक्ति का जनादेश

लालू यादव के शासनकाल के अंतिम वर्षों में भाजपा ने ग्रामीण और मध्यमवर्गीय मतदाताओं के बीच 'परिवर्तन' की आवाज बुलंद की। 2005 में जब बिहार विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा-जदयू गठबंधन को जनता का समर्थन मिला और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने व सुशील मोदी उप मुख्यमंत्री। वहीं जंगलराज से सुशासन का परिवर्तन युग शुरू हुआ।

छवि परिवर्तन की कहानी

राजनीतिक विश्लेषक चन्द्रमा तिवारी कहते हैं कि आज जब लोग पीछे मुड़कर 1990–2005 के जंगलराज को याद करते हैं तो नीतीश का दौर उन्हें राहत की सांस देता है। अपराध की जगह अब कानून की बात होती है और विकास की योजनाएं सुर्खियों में हैं। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार ने दिखाया कि जनता अगर स्थिर नेतृत्व को मौका दे तो अंधकार से उजाले की ओर सफर मुमकिन है। 

Edited By: Samridh Desk
Sujit Sinha Picture

सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।

'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

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