भोले शंकर को प्रसन्न करने का मास है श्रावण: आचार्य प्रणव मिश्रा
सावन माह और रुद्राभिषेक का महत्व
अभिषेक शब्द का अर्थ ही स्नान करना या करवाना है. रुद्राभिषेक का अर्थ भगवान शिव पर रुद्र मंत्रो के द्वारा अभिषेक करना है. शुक्ल ययुर्वेदीय रुद्रष्ठध्यायी के द्वारा रूद्र की उपासना से सम्बसदाशिव रुद्राभिषेक से शीघ्र प्रसन्न होते है. रुद्राभिषेक का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में मिलता है
शिव का पूजन और मनाने का पवित्र मास सावन है. 11 जुलाई से आरंभ होने वाला यह पवित्र महीना कई मायनों में श्रेष्ठ है. श्रावण मास में प्रकृति का मनमोहन दृश्य देखने को मिलता है. यह मास भौतिक ही नही आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. इस माह को देवादिदेव महादेव का सबसे प्रिय माह माना गया है. यह महीना महादेव और माता पार्वती की आराधना के लिए सबसे उत्तम माह है. इस माह से व्रतों और त्यौहारों की शुरुआत हो जाती है. श्रवण माह भोलेनाथ को क्यों अत्यंत प्रिय है इसकी पौराणिक कथा है एक बार संतन कुमार ने महादेव से श्रावण माह का प्रिय होने का कारन पूछामहादेव ने कहा की जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में अपने योग शक्ति से प्राण का त्याग किया था तब देवी सती ने हर जन्म में पति के रूप में मुझे पाने का प्रण किया तब अपने दूसरे जन्म में देवी पार्वती माता मैना और पिता हिमालय के घर में जन्म लिया. पार्वती ने श्रावण माह में पति के रूप में महादेव को पाने के लिए निराहार रह कर कठोर तप कर मेरी जीवन संगिनी बनी जिसके कारन यह मनोरम श्रावण माह मुझे अत्यंत प्रिय है..
श्रावण में रुद्राभिषेक

इस मास में भगवान को जलाभिषेक का बहुत ही महत्व है. खाश कर किसी सिद्ध मंदिर या ज्योतिर्लिंग हो तो इसका फल हज़ारो गुणा अधिक हो जाता है. इससे रुद्राभिषेक करने से मनुष्य सुख- शांति, सद्बुद्धि, सत्यकर्म, सदविचार की ओर प्रवृत होता है.
रुत्तम: दुःखम, द्रवयंति नाशय्याति रुद्र: अर्थात भोले सभी दुःखो को नष्ट करने वाले देवता हैं. यजुर्वेद में लिखा है कि शुक्ल यजुर्वेदी विधि ही सरवोत्तम विधि है परंतु यदि कोई इसे नही जानता हो तो वह ॐ नमः शिवाय का जाप करते हुवे भी अभिषेक कर सकता है.
सावन सोमवार व्रत: श्रावण मास में सोमवार के दिन जो व्रत रखा जाता है उसे सावन सोमवार व्रत कहा जाता है. सोमवार का दिन भी भगवान शिव को समर्पित है.
सोलह सोमवार व्रत: सावन को पवित्र माह माना जाता है. इसलिए सोलह सोमवार के व्रत प्रारंभ करने के लिए यह बेहद ही शुभ समय माना जाता है.
प्रदोष व्रत: सावन में भगवान शिव एवं माँ पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए प्रदोष व्रत प्रदोष काल तक रखा जाता है.
सबसे पहले किसने किया अभिषेक
रावण शिव का अनन्य भक्त था. इन्होंने अपने दसों सिरों को काट उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था. वही सर के हवन किया तब भगवान प्रसन्न हुवे और त्रिलोक का स्वामी बना दिया. भस्मासुर अपने आँशु से अभिषेक किया तब जा कर भस्म करने का वर मिला था.
कब किया जाय घर मे रुद्रभिषेक
यदि घर में करना हो तो कृष्णपक्ष के प्रतिपदा, चतुर्थी, अष्ठमी, एकादशी, द्वादशी वही शुक्ल पक्ष के द्वतीया, पंचमी, षष्टि, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों को अभिषेक करना चाहिए. रुद्रभिषेक करने से सुख समृद्धि, संतान प्राप्ति, कालसर्प दोष, गृहक्लेश में शांति, पितृदोष शांति, रोग शोक का समन होता है. रूद्र का अभिषेक करने से मनुष्य की ज्ञान शक्ति और मन्त्र शक्ति जागृत होती है. अभिषेक से मनुष्य का जीवन सात्विक और मंगलमय बनता है तथा अमंगल का नाश होता है. रुद्राभिषेक से मनुष्य आरोग्य, विद्या, कृति,पराक्रम, मान- सम्मान और ऐश्वर्य को सहज ही प्राप्त कर लेता है..
रुद्री पाठ का महत्व
रूद्रभिषेक में रुद्रीपाठ का बिशेष महत्व है. इनमे आठ आध्यय होता है. एक पाठ किया जाय तो ग्रहों की शांति होती है. तीन पाठ से कामना की पूर्ति, पांच पाठ से अनिष्ठ ग्रहों की शांति, सात पाठ से सिद्धि , नव पाथ से सत्रु नाश, अकालमृत्यु का भय समाप्त, धन और सम्मान मिलता है. नव पाठ पूर्ण होता है.
कैसा हो शिवलिंग
यदि शिवलिंग का निर्माण करना हो तो यह अंगूठा के बराबर होना चाहिए. इससे दुगुना बेदी एवं इनसे आधा योनि होना चाहिए.
शिवलिंग पर क्या करे अर्पण
कमलपत्र बेलपत्र, संखपुष्प से पूजन किया जाय तो धन्य धान्य की बृद्धि होती है. सफेद आक शिव का सबसे प्रिय है. इससे सम्मान बढ़ता है और ब्यपार में बृद्धि होती है. भांग धतूरे से बिष दोष का समन होता है.गंगाजल या किसी तीर्थ का जल से पितृ दोष शांति और पितृ प्रसन्न होते हैं.धन की ठहराव के लिए पंचामृत का प्रयाग करें.उत्तम स्वास्थ्य के लिये जौ का प्रयोग करें.केशर अर्पण से सुंदरता प्रदान होता है.
सावन माह के तिथियों के देवी देवता
प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा के अनुसार श्रावण प्रतिपदा तिथि के देवता अग्नि, द्वितीया के ब्रह्मा, तृतीया के गौरी, चतुर्थी के गणनायक, पंचमी के नाग, षष्ठी के नाग, सप्तमी के सूर्य, अष्टमी के शिव, नवमी के दुर्गा, दशमी के यम, एकादशी के स्वामी विश्वदेव, द्वादशी के भगवान श्रीहरि, त्रयोदशी के कामदेव, चतुर्दशी के भगवान शिव, अमावास्या के पितर और पूर्णिमा के स्वामी चंद्रमा हैं.
शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है
जल से: रुद्राभिषेक करने पर वृष्टि होती है.
कुशा जल से: रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है.
दही से: पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है.
गन्ने के रस से: लक्ष्मी प्राप्ति एवं व्यपार में उन्नति.
मधु युक्त जल से: धन वृद्धि, ऋण से मुक्ति मिलती है.
तीर्थ जल से: मोक्ष की प्राप्ति.
इत्र मिले जल: से बीमारी नष्ट होती है .
दूध् से: पुत्र प्राप्ति, प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण होता है.
गंगाजल से: ज्वर ठीक हो जाता है.
दूध् शर्करा से: सद्बुद्धि प्राप्ति होती है..
घी से: वंश विस्तार होती है.
सरसों के तेल से: रोग तथा शत्रु का नाश होता है.
शुद्ध शहद से: मंगल दोष का नाश होता है.
इस प्रकार विधिवत द्रव्यों से अभिषेक करने से समस्त कार्य सिद्ध होते है.
प्रसिद्ध ज्योतिष
आचार्य प्रणव मिश्रा
आचार्यकुलम अरगोड़ा राँची
8210075897
सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।
'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
