दिल्ली की दौड़: कौन होगा मोदी का राजनीतिक वारिस, नए समीकरणों की विस्तृत पड़ताल

NDA-3 का एक साल: उत्तराधिकार का बदला समीकरण

दिल्ली की दौड़: कौन होगा मोदी का राजनीतिक वारिस, नए समीकरणों की विस्तृत पड़ताल
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के तीसरे कार्यकाल को अब एक साल से अधिक हो चुका है। जून 2024 में जब गठबंधन सरकार ने शपथ ली थी, तब यह प्रश्न "मोदी के बाद कौन?" भारतीय राजनीति के केंद्र में था। आज, 31 जुलाई 2025 को, यह सवाल और भी गहरा और आयामी हो गया है। पिछले एक साल के दौरान "गठबंधन धर्म" की राजनीति ने न केवल सरकार के कामकाज को प्रभावित किया है, बल्कि उत्तराधिकार के समीकरणों को भी नए सिरे से परिभाषित किया है।

2024 के चुनावों में भाजपा का अपने दम पर बहुमत से चूकना एक ऐतिहासिक मोड़ था। इस एक साल में, हमने देखा है कि कैसे नीतिगत फैसलों में सहयोगियों (विशेषकर TDP और JDU) की सहमति एक अनिवार्य शर्त बन गई है। इसने नेतृत्व के लिए आवश्यक गुणों की परिभाषा बदल दी है। अब केवल वैचारिक दृढ़ता या संगठनात्मक कौशल ही काफी नहीं है; सहयोगियों को साधने की कला, राजनीतिक लचीलापन और सर्वसम्मति बनाने की क्षमता पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। यह विश्लेषण इस एक साल के अनुभव के आधार पर उत्तराधिकार की दौड़ के प्रमुख चेहरों और बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य की गहन पड़ताल करता है।

भाजपा का आंतरिक वृत्त - एक साल बाद दावेदारों की स्थिति

अमित शाह: गठबंधन की सीमाओं में रणनीतिकार

पिछले एक साल में गृह मंत्री अमित शाह ने गठबंधन सरकार की मजबूरियों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश की है। जहाँ उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा और आंतरिक मामलों पर अपना दृढ़ नियंत्रण बनाए रखा है, वहीं कई मौकों पर उन्हें सहयोगियों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए अपने कठोर रुख में नरमी लानी पड़ी है। इस एक साल ने उनकी छवि को एक कुशल प्रशासक के रूप में और मजबूत किया है, लेकिन साथ ही यह भी उजागर किया है कि उनकी निर्णायक शैली गठबंधन के लिए एक चुनौती बन सकती है। उनकी ताकत आज भी संगठन पर उनकी पकड़ और मोदी के प्रति उनकी निष्ठा है, लेकिन प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी अब इस बात पर अधिक निर्भर करेगी कि वे विभिन्न विचारधारा वाले सहयोगियों को एक साथ लेकर चल पाते हैं या नहीं।

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योगी आदित्यनाथ: हिंदुत्व के प्रतीक और राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ ने पिछले एक साल में अपने शासन के "योगी मॉडल" को और मजबूती दी है। हालांकि, राष्ट्रीय पटल पर उनकी भूमिका पहले से अधिक सधी हुई दिखी है। वे भाजपा के स्टार प्रचारक बने हुए हैं, लेकिन दिल्ली के साथ उनके संबंध संतुलन साधने वाले रहे हैं। 2024 के बाद की गठबंधन राजनीति ने उनके जैसे स्पष्ट वैचारिक चेहरे के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व की राह को और जटिल बना दिया है। उनकी अपार लोकप्रियता उनके लिए सबसे बड़ी पूंजी है, लेकिन पिछले एक साल ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली का रास्ता केवल लोकप्रियता से नहीं, बल्कि राजनीतिक स्वीकार्यता से होकर गुजरता है, जिसमें वे अभी भी शाह, गडकरी और राजनाथ से पीछे दिखते हैं।

नितिन गडकरी: गठबंधन युग के सबसे प्रासंगिक नेता?

पिछले एक साल में नितिन गडकरी की अहमियत और बढ़ी है। "विकास-पुरुष" की उनकी छवि गठबंधन सरकार के लिए एक संपत्ति साबित हुई है। उनके मंत्रालय का प्रदर्शन लगातार उत्कृष्ट रहा है और राजनीतिक दलों के बीच उनकी स्वीकार्यता उन्हें NDA का सबसे भरोसेमंद चेहरा बनाती है। गठबंधन के कई सहयोगी निजी तौर पर उनके नेतृत्व को अधिक सहज मानते हैं। इस एक साल में, जब भी सरकार और सहयोगियों के बीच किसी मुद्दे पर गतिरोध की स्थिति बनी, गडकरी एक संभावित संकटमोचक के रूप में उभरे। उनकी दावेदारी अब पहले से कहीं ज़्यादा मजबूत दिखती है, क्योंकि वे विकास और सर्वसम्मति की राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो इस गठबंधन युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

राजनाथ सिंह: स्थिरता के प्रतीक और गठबंधन के संकटमोचक

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की भूमिका इस एक साल में सरकार के एक वरिष्ठ अभिभावक के तौर पर और भी महत्वपूर्ण हो गई है। उनका अनुभव और शांत स्वभाव गठबंधन के भीतर मतभेदों को सुलझाने में कई बार काम आया है। उन्हें एक ऐसे "सुरक्षित बंदरगाह" के रूप में देखा जाता है, जो किसी भी राजनीतिक संकट में NDA की नाव को पार लगा सकते हैं। लोकसभा में सदन के उपनेता के रूप में, उन्होंने पिछले एक साल में सरकार और विपक्ष के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में भी काम किया है। उनकी दावेदारी एक "संक्रमणकालीन" या "सर्वसम्मत" उम्मीदवार के रूप में और भी पुख्ता हुई है, खासकर यदि पार्टी को स्थिरता को प्राथमिकता देनी हो।

यह तालिका दर्शाती है कि गठबंधन युग की नई वास्तविकताओं के आधार पर विभिन्न मापदंडों पर कौन सा नेता कहाँ खड़ा है।

विशेषता (Attribute) अमित शाह योगी आदित्यनाथ नितिन गडकरी राजनाथ सिंह
संगठनात्मक शक्ति ⭐⭐⭐⭐⭐ (अत्यधिक मजबूत) ⭐⭐⭐⭐ (स्वतंत्र शक्ति केंद्र) ⭐⭐⭐⭐ (पार्टी और RSS में गहरी पकड़) ⭐⭐⭐⭐ (वरिष्ठ और सम्मानित)
वैचारिक कठोरता ⭐⭐⭐⭐⭐ (अडिग) ⭐⭐⭐⭐⭐ (अडिग) ⭐⭐⭐ (व्यावहारिक) ⭐⭐⭐ (उदारवादी)
गठबंधन प्रबंधन कौशल ⭐⭐⭐ (सुधार की आवश्यकता) ⭐⭐ (सबसे बड़ी चुनौती) ⭐⭐⭐⭐⭐ (उत्कृष्ट और सर्वमान्य) ⭐⭐⭐⭐ (अनुभवी मध्यस्थ)
व्यापक जन अपील ⭐⭐⭐ (सीमित) ⭐⭐⭐⭐ (कट्टर आधार में) ⭐⭐⭐⭐ (विकास के नाम पर) ⭐⭐⭐ (सीमित)

अन्य चेहरे और उनकी बदलती भूमिका

शिवराज सिंह चौहान:

केंद्रीय कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में अपने एक साल के कार्यकाल में, शिवराज सिंह चौहान ने किसानों और ग्रामीण भारत पर ध्यान केंद्रित करके अपनी "मामा" की कल्याणकारी छवि को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया है। उनकी नीतियां और ज़मीनी जुड़ाव उन्हें भाजपा के ओबीसी और कल्याण-केंद्रित चेहरे के रूप में और मजबूत करता है।

एस. जयशंकर:

वैश्विक मंच पर भारत की मुखर आवाज़ बने हुए हैं। पिछले एक साल में बदले भू-राजनीतिक समीकरणों में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है, जो उन्हें एक टेक्नोक्रेट-राजनेता के रूप में शीर्ष पद के लिए एक अप्रत्याशित लेकिन तार्किक विकल्प बनाए रखती है।

विपक्ष की चुनौती - एक साल का रिपोर्ट कार्ड

पिछले एक साल में राहुल गांधी ने लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में सरकार को कई मुद्दों पर घेरा है। उन्होंने 'इंडिया' गठबंधन को एकजुट रखने का प्रयास किया है, लेकिन विभिन्न राज्यों में सहयोगियों के बीच मतभेद भी सामने आए हैं। अखिलेश यादव और ममता बनर्जी जैसे क्षेत्रीय क्षत्रप अपने-अपने राज्यों में मजबूत बने हुए हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का एक सर्वसम्मत चेहरा अभी भी एक दूर की कौड़ी लगता है। एक साल के बाद, विपक्ष एकजुट दिखने के बावजूद नेतृत्व के सवाल पर बंटा हुआ है, जो 2024 के बाद भी उनकी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।

प्रमुख विपक्षी नेताओं की प्रोफाइल:

विशेषता

राहुल गांधी

अखिलेश यादव

ममता बनर्जी

राजनीतिक आधार और पार्टी

अखिल भारतीय कांग्रेस; केरल और रायबरेली से सांसद; गांधी-नेहरू परिवार की विरासत 

समाजवादी पार्टी; उत्तर प्रदेश में मजबूत आधार; कन्नौज से सांसद 

तृणमूल कांग्रेस; पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री; जमीनी स्तर की नेता 

राष्ट्रीय अपील और छवि

''भारत जोड़ो यात्रा' के बाद छवि में सुधार; विपक्ष का राष्ट्रीय चेहरा, लेकिन अभी भी बहस का विषय

उत्तर प्रदेश में सफलता के बाद राष्ट्रीय कद बढ़ा; युवा और आधुनिक नेता के रूप में उभर रहे हैं

मजबूत, जुझारू और निर्णायक नेता; "दीदी" की छवि; राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं स्पष्ट हैं

गठबंधन प्रबंधन कौशल

क्षेत्रीय दलों के साथ संबंध बनाने का प्रयास, लेकिन स्वीकार्यता अभी भी एक चुनौती है

गठबंधन में सफल (कांग्रेस के साथ यूपी में); लचीलापन दिखाया है

गठबंधन बनाने में अनुभव, लेकिन अक्सर अपनी शर्तों पर काम करने के लिए जानी जाती हैं

प्रमुख नीतिगत मुद्दे/कथा

सामाजिक न्याय, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, "लोकतंत्र बचाओ" का नारा

'PDA' (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) का सामाजिक न्याय का एजेंडा; जातिगत जनगणना पर जोर 

संघवाद, क्षेत्रीय स्वायत्तता, महिला सशक्तीकरण, बंगाली पहचान की रक्षा

क्या हो सकती है आने वाले समय की संभावनाएं?

NDA-3 सरकार का एक साल यह स्पष्ट करता है कि भविष्य का नेतृत्व केवल वैचारिक या संगठनात्मक ताकत से तय नहीं होगा। इस एक साल ने नितिन गडकरी जैसे सर्वमान्य और विकास-केंद्रित चेहरे की दावेदारी को बेहद मजबूत किया है, क्योंकि वे गठबंधन की राजनीति के लिए सबसे उपयुक्त दिखते हैं। वहीं, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ को अपनी शैली को गठबंधन के अनुकूल ढालने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। राजनाथ सिंह एक सदाबहार और स्थिर विकल्प बने हुए हैं।

अंततः, उत्तराधिकारी का चयन प्रधानमंत्री मोदी के निर्णय और उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों पर निर्भर करेगा, लेकिन पिछले एक साल ने यह दिखा दिया है कि "दिल्ली की दौड़" अब सीधी नहीं, बल्कि कई मोड़ों और बाधाओं से भरी एक मैराथन है।

Edited By: Samridh Desk
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