झारखंड में राजनीतिक संकट नहीं: हेमंत सोरेन सरकार के दो फैसलों से समझिए सरकार का गणित
हेमंत सोरेन की सरकार मजबूत, भाजपा से दूरी बनाए रखेगी
. कैबिनेट की बैठक से राजनीतिक फैसलों का कोई मतलब नहीं होता है. कैबिनेट की बैठक में तो सरकार अपने कामकाज और योजनाओं से संबंधित फैसला लेती है
झारखंड की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से अटकलों का बाजार गर्म है. कुछ लोग सरकार बनाने व गिराने में जुटे हैं. इसको हवा देने में सोशल मीडिया के साथ-साथ कुछ स्वघोषित अतिज्ञानी और अपने को बड़े राजनीतिक विशेषज्ञ मानने वाले पत्रकार भी शामिल हैं. ऐसे लोग मिलकर पिछले कई दिनों से हेमंत सोरेन की सरकार गिराने में लगे हैं. कह रहे हैं कि हेमंत सोरेन कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा के साथ जा रहे हैं.

राजनीति और क्रिकेट के खेल में कब क्या हो जाए कहना मुश्किल है. राजनीति भी बड़ी अजीब चीज है. हेमंत सोरेन भाजपा के साथ जाएंगे या नहीं जाएंगे यह तो मैं दावे के साथ नहीं कह सकता. लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि फिलहाल अभी ऐसी कोई स्थिति नहीं है.
हालांकि भाजपा जरूर अपने स्तर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है. लेकिन बात नहीं बन पा रही है. हेमंत सोरेन राजनीति में अब काफी परिपक्व हो चुके हैं. इसलिए वह अपना नफा-नुकसान देखकर ही कोई फैसला लेंगे. मेरा यह मानना है कि भाजपा के साथ जाना हेमंत सोरेन के लिए "आगे कुआं पीछे खाई" वाली स्थिति है.
यदि वह भाजपा के साथ जाते हैं तो राज्य को जरूर इसका लाभ मिलेगा. डबल इंजन की सरकार जब होगी तो विकास कार्य को गति मिलेगी. केंद्र से पूर्ण सहयोग मिलने के बाद राज्य का विकास होगा. भरपूर आर्थिक मदद भी मिलेगी. लेकिन हेमंत सोरेन का राजनीतिक कद ऐसा नहीं रहेगा जैसा अभी है. हेमंत सोरेन अभी मजबूती से सरकार चला रहे हैं. सारे फैसले खुद लेते हैं. न तो कांग्रेस के दबाव में हैं और न ही राजद के. दो तिहाई बहुमत की सरकार है. हेमंत सोरेन राजनीतिक रूप से खुद बहुत मजबूत स्थिति में हैं, तो फिर भाजपा के साथ क्यों जाएंगे.
भाजपा के साथ जाने से कई खतरे भी हैं. भाजपा के साथ यदि जाते हैं तो हेमंत सोरेन जिस अंदाज से अभी सरकार चला रहे हैं वैसी सरकार नहीं चला पाएंगे. भाजपा उन्हें कदम-कदम पर फैसले लेने में रोक-टोक करेगी. एक बार जब वह भाजपा के साथ जाएंगे तो फिर पीछे कदम रखना मुश्किल होगा. फिर उनका अपना जो वोट बैंक है वह भी बिखर जाएगा. ऐसी स्थिति में मुझे नहीं लगता कि हेमंत सोरेन भाजपा के साथ जाकर कोई राजनीतिक जोखिम उठाना चाहेंगे.
24 जुलाई को कैबिनेट की बैठक में जो दो महत्वपूर्ण फैसले लिए गए उस फैसले से भी यह साफ हो गया है कि हेमंत सोरेन भाजपा के साथ नहीं जा रहे हैं. क्योंकि दोनों फैसले भाजपा के खिलाफ ही गए हैं. झारखंड बनाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर संचालित अटल क्लीनिक का नाम बदलकर मदर टेरेसा क्लीनिक करना और विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति से संबंधित राज्यपाल के अधिकारों में कटौती का फैसला यह साबित करने के लिए काफी है कि हेमंत सोरेन की भाजपा से फिलहाल कोई बातचीत नहीं चल रही है.
यदि राजनीतिक बातचीत चलती तो कम से कम अटल जी का नाम तो नहीं हटाने का फैसला लिया जाता. इन तमाम परिस्थितियों को देखते हुए फिलहाल ऐसा नहीं लगता है कि हेमंत सोरेन भाजपा के साथ जा रहे हैं.
मैं फिर यहां स्पष्ट कर दूं कि राजनीति में कभी भी कुछ हो सकता है. आगे क्या होगा यह कहना मुश्किल है. लेकिन फिलहाल हेमंत सोरेन कहीं नहीं जा रहे हैं.
