Indira Gandhi vs America: 1971 में USS Enterprise को रोकने की सच्ची कहानी

1971 में भारत ने अमेरिका जैसी महाशक्ति के दबाव को दरकिनार कर अपने आत्मसम्मान को सर्वोपरि रखा।

Indira Gandhi vs America: 1971 में USS Enterprise को रोकने की सच्ची कहानी
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नई दिल्ली: आज जब भारत एक वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी जगह बना चुका है, इतिहास का एक पन्ना हमें याद दिलाता है कि भारत की यह ताकत नई नहीं है। यह कहानी 1971 के उस दौर की है, जब भारत ने न केवल युद्ध के मैदान में पाकिस्तान को हराया, बल्कि कूटनीतिक बिसात पर अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी करारा जवाब दिया था।

अमेरिकी धमकी और भारत का आत्मसम्मान

1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारत का सत्य के लिए खड़ा होना अमेरिका को रास नहीं आ रहा था। अमेरिका तब पाकिस्तान को अपना सहयोगी मानता था और भारत को कमजोर करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार था। इसी इरादे से, अमेरिका ने अपने सबसे शक्तिशाली परमाणु-संचालित युद्धपोत, USS एंटरप्राइज के नेतृत्व में अपने 7वें बेड़े को बंगाल की खाड़ी की ओर भेजकर भारत पर सीधा दबाव बनाने की कोशिश की। यह एक महाशक्ति द्वारा भारत के आत्मसम्मान को दी गई सीधी चुनौती थी।

मुख्य बिंदु:

भारत का साहसिक दांव और कूटनीतिक विजय

ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने घुटने टेकने के बजाय एक ऐसा कदम उठाया जिसने दुनिया को हैरान कर दिया। भारत ने अपने पुराने और विश्वसनीय मित्र सोवियत संघ के साथ 'शांति, मैत्री और सहयोग' की संधि को सक्रिय किया। यह सिर्फ एक संधि नहीं, बल्कि अमेरिकी दबाव का मुंहतोड़ जवाब था।

जैसे ही अमेरिकी बेड़ा भारतीय समुद्री सीमा की ओर बढ़ा, भारत के कहने पर सोवियत संघ ने अपनी परमाणु पनडुब्बियों और युद्धपोतों को हिंद महासागर में उतार दिया। सोवियत नौसेना ने अमेरिकी बेड़े की ऐसी घेराबंदी की कि उनके पास पीछे हटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। यह भारत की एक बड़ी कूटनीतिक और रणनीतिक जीत थी, जिसने साबित कर दिया कि भारत अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र और सक्षम है।

1971 का सबक और आज का भारत

1971 की यह घटना भारतीय इतिहास में सिर्फ एक सैन्य विजय के रूप में नहीं, बल्कि भारत की 'रणनीतिक स्वायत्तता' की नीति की पुष्टि के रूप में भी दर्ज है। भारत ने दुनिया को यह संदेश दिया कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकेगा, चाहे सामने कोई भी महाशक्ति क्यों न हो।

यही आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की भावना आज भी भारत की विदेश नीति को दिशा देती है। आज भले ही अमेरिका भारत का एक अहम साझेदार है, लेकिन भारत अपने फैसले हमेशा 'इंडिया फर्स्ट' की नीति के आधार पर ही लेता है। 1971 की वो जीत आज भी हर भारतीय को यह याद दिलाती है कि जब एक राष्ट्र एकजुट होकर अपने स्वाभिमान के लिए खड़ा होता है, तो दुनिया की कोई भी ताकत उसे झुका नहीं सकती।

Edited By: Samridh Desk
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