सांसदों को नर्मदा पुनर्वास पर झूठी जानकारी दी गई : नर्मदा बचाओ आंदोलन
संसद के साथ मध्यप्रदेश विधानसभा में नर्मदा मामले पर दी गई जानकारी पर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सवाल उठाया है
भोपाल : नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA) ने एक बयान जारी कर कहा है कि नर्मदा विस्थापितों को लेकर सांसदों को गलत जानकारी दी गई है। आंदोलन ने अपने बयान में कहा है कि लोकसभा में रामजी लाल सुमन द्वारा पूछे गये सवाल का दिये गये जवाब में न सिर्फ प्रश्न का अधूरा व गलत अर्थ लगाया गया बल्कि आंकड़ों की भी गलत जानकारी दी गई है।
बयान में कहा गया है कि तीन राज्यों में 244 गांव व एक नगर के बदल तीन राज्यों में 230 गांव में ही डूब आयी ऐसी जानकारी दी गई है। वास्तविकता यह है कि सरदार सरोवर के 214 किलोमीटर तक फैले डूबक्षेत्र में 244 गांव व एक नगर आते हैं और सभी ने 2023 की डूब का सामना किया। धरमपुरी के नगर होते हुए भी स्वतंत्र रूप से चिह्नित नहीं किया जाना गलत है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात में विस्थापितों की कुल संख्या 32552 बतायी गयी है कि जबकि 2008 में यह संख्या 46357 थी, यह बात नर्मदा कंट्रोल ऑथोरिटी की रिपोर्ट में भी कही गयी है। बैक वाटर लेवल में बदलाव से ही संख्या को कम करने का खेल हुआ।
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने कहा है कि एनसीए की वार्षिक रिपोर्टाें में राज्य के नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण से प्राप्त जानकारी के आधार पर ही संख्याएं सच्चाई सामने लाती हैं। 2008 में मध्यप्रदेश में सरदार सरोवर परियोजना के पूर्ण जलाशय स्तर पर पुनर्वासित बताये गये 32142 परिवारों की संख्या 2010 में 19039 इतनी कम कैसे हो गयी। क्या 13103 परिवारों को पुनर्वासित करने के बाद फिर से विस्थापित किया गया। आंदोलन ने कहा है कि 2007 में एनसीए द्वारा गठित समिति ने 1984 में सीडब्ल्यूसी द्वारा तय किये गये बैक वाटर लेवल को बदलने का खेल खेला।
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने कहा है कि सुरेंद्र सिंह बघेल, डॉ हीरालाल व राजेंद्र मंडलोई ने विधानसभा सत्रों के दौरान बिना पुनर्वास के डूब के अवैध होने पर सवाल खड़े किये लेकिन उसके उचित जवाब नहीं मिले। बैक वाटर लेवल में संशोधन रद्द करके डूब से बाहर किये गये परिवारों को 2023 में हुए नुकसान की आज तक पूरी भरपाई नहीं की गई है। उनका पुनर्वास भी पूरा नहीं हुआ है। आंदोलन ने सवाल उठाया है कि क्या इस साल फिर आपदा को दोहराया जाएगा।
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री से अपील की है कि वे जवाब दें और न्याय करें। राज्यहित में एनसीए के हर मुद्दे पर कानूनी निर्णय लें और जरूरी वित्तीय मदद राज्य स्तर पर फिलहाल आवंटित करें।