एयर इंडिया फ्लाइट 182 ब्लास्ट: इंदरजीत सिंह रेयात की खालिस्तानी साजिश कैसे बनी भारत की सबसे दर्दनाक विमान दुर्घटना?
पाकिस्तान का षड्यंत्र और ISI की भूमिका
समृद्ध डेस्क: 23 जून 1985 को घटित हुई एयर इंडिया फ्लाइट 182 "सम्राट कनिष्क" की त्रासदी भारतीय इतिहास के सबसे दर्दनाक और विनाशकारी आतंकवादी हमलों में से एक है। इस घटना में 329 निर्दोष लोगों की जान चली गई, जिनमें अधिकांश भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे। इस हमले के मुख्य अपराधी इंदरजीत सिंह रेयात की भूमिका और इस पूरे मामले की जटिलताओं को समझना आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना चार दशक पहले था। यह घटना न केवल अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का एक भयावह उदाहरण थी बल्कि भारत-कनाडा संबंधों में गहरी दरार का कारण भी बनी।
आतंकी हमले की पृष्ठभूमि और संदर्भ
ऑपरेशन ब्लू स्टार की भूमिका

खालिस्तान समर्थक चरमपंथियों ने इस सैन्य कार्रवाई को अपने धर्म पर आक्रमण माना और बदले की भावना से प्रेरित होकर भारत विरोधी गतिविधियों को तेज़ कर दिया। इसी बदले की भावना ने 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या का रूप लिया जब उनके ही सिख अंगरक्षक सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी।
बाबर खालसा और खालिस्तानी आतंकवाद
बाबर खालसा इंटरनेशनल (BKI) एक चरमपंथी सिख संगठन था जिसकी स्थापना 1978 में सुखदेव सिंह बबर और तलविंदर सिंह परमार ने की थी। यह संगठन पंजाब में खालिस्तान नामक एक अलग सिख राष्ट्र की स्थापना के लिए सशस्त्र संघर्ष में लगा हुआ था। 1981 में तलविंदर सिंह परमार के नेतृत्व में कनाडा में इसकी पहली इकाई स्थापित की गई थी।
इंदरजीत सिंह रेयात: मुख्य अपराधी की प्रोफाइल
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
इंदरजीत सिंह रेयात का जन्म 1952 में हुआ था और वह पंजाब से कनाडा में आकर बसा था। वह एक मैकेनिक का काम करता था और ब्रिटिश कोलंबिया के डंकन शहर में रहता था। रेयात खालिस्तान समर्थक चरमपंथी विचारधारा से प्रभावित था और बाबर खालसा के कार्यकर्ताओं के संपर्क में आया।
बम निर्माण में भूमिका
रेयात ने मई और जून 1985 में विस्फोटक सामग्री खरीदी थी जिसका उपयोग बम बनाने में किया गया। उसने डायनामाइट, डेटोनेटर और बैटरियां खरीदीं थीं जो दोनों विमानों में विस्फोट का कारण बनीं। 22 जून 1985 को रेयात को बर्नाबी के ऑटो मरीन इलेक्ट्रिक स्टोर से दो 12-वोल्ट बैटरियां खरीदते हुए देखा गया था।
महत्वपूर्ण बात यह है कि रेयात ने बाद में स्वीकार किया कि उसने बम बनाने की सामग्री खरीदी थी, लेकिन उसने दावा किया कि वह नहीं जानता था कि इसका उपयोग विमानों को उड़ाने के लिए किया जाएगा। उसने कहा कि उसे लगता था कि यह बम भारत में किसी संपत्ति को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल होगा।
न्यायिक कार्यवाही और सजा
रेयात का मुकदमा तीन चरणों में चला:
पहला दोषसिद्धि (1991): सबसे पहले उसे टोक्यो के नारिता हवाई अड्डे पर हुए विस्फोट के लिए दोषी ठहराया गया जिसमें दो जापानी सामान संभालने वालों की मृत्यु हुई थी। उसे 10 साल की सजा हुई और उसने ब्रिटेन की जेल में समय बिताया।
दूसरा दोषसिद्धि (2003): 10 फरवरी 2003 को रेयात ने एयर इंडिया फ्लाइट 182 विस्फोट के संबंध में मानव हत्या के 329 मामलों में दोषी होना स्वीकार किया। उसे अतिरिक्त 5 साल की सजा हुई।
तीसरा दोषसिद्धि (2010): रेयात पर झूठी गवाही (perjury) का आरोप लगाया गया क्योंकि उसने रिपुदमन सिंह मलिक और अजैब सिंह बागड़ी के मुकदमे में झूठ बोला था। उसे 9 साल की कनाडाई इतिहास की सबसे लंबी झूठी गवाही की सजा हुई।
एयर इंडिया फ्लाइट 182 विस्फोट: घटना का विवरण
विमान और मार्ग
एयर इंडिया फ्लाइट 182, जिसका नाम "सम्राट कनिष्क" था, एक बोइंग 747-237B विमान था। यह मॉन्ट्रियल से लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे होते हुए दिल्ली और मुंबई जाने वाली नियमित उड़ान थी।
विस्फोट की घटना
22 जून 1985 को वैंकूवर हवाई अड्डे से "मंजीत सिंह" नाम के व्यक्ति ने एक सूटकेस चेक-इन करवाया जिसमें बम छुपाया गया था। यह व्यक्ति कभी विमान में नहीं चढ़ा, लेकिन उसका सामान कनाडियन पैसिफिक एयर लाइंस की फ्लाइट 60 से टोरंटो गया और वहां से एयर इंडिया फ्लाइट 182 में स्थानांतरित हुआ।
23 जून 1985 को सुबह 8:14 GMT पर, जब विमान 31,000 फीट की ऊंचाई पर आयरलैंड के तट के पास उड़ रहा था, तो विस्फोट हुआ। विमान तुरंत रडार से गायब हो गया और अटलांटिक महासागर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
नारिता हवाई अड्डे पर दूसरा विस्फोट
उसी दिन, लगभग एक घंटे पहले टोक्यो के नारिता हवाई अड्डे पर भी एक विस्फोट हुआ। "एल. सिंह" नाम के व्यक्ति द्वारा चेक-इन किया गया एक सूटकेस एयर इंडिया फ्लाइट 301 में स्थानांतरित करते समय फट गया, जिससे दो जापानी सामान संभालने वाले मारे गए। यह बम समय से पहले विस्फोटित हो गया था, अन्यथा दूसरे विमान में भी जनहानि होती।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया
भारत सरकार ने इस हमले को तुरंत आतंकवादी हमला घोषित किया और कनाडा सरकार से अपेक्षा की थी कि वह खालिस्तानी चरमपंथियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। भारत का मानना था कि कनाडा सरकार सिख चरमपंथ के खतरे की गंभीरता को नहीं समझ रही थी और पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं कर रही थी।
विदेश मंत्रालय के अनुसार, कनाडाई सरकारी एजेंसियों के पास पर्याप्त जानकारी थी जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता था कि एयर इंडिया पर खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों द्वारा हमले का खतरा था, फिर भी वे इसे रोकने में विफल रहे।
भारत-कनाडा संबंधों पर प्रभाव
इस घटना ने भारत-कनाडा संबंधों में गहरी दरार डाली जो आज तक बनी हुई है। भारत का मानना है कि कनाडा खालिस्तानी चरमपंथियों के प्रति उदार रवैया अपनाता है और भारत की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा पैदा करने वाली गतिविधियों को अनुमति देता है।
हाल के वर्षों में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भी यही पैटर्न देखने को मिला है, जहां कनाडा ने भारत पर आरोप लगाए हैं जबकि भारत का कहना है कि कनाडा आतंकवादी तत्वों को शरण दे रहा है।
पाकिस्तान का षड्यंत्र और ISI की भूमिका
भारतीय खुफिया एजेंसियों के अनुसार, पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने खालिस्तानी आतंकवादी समूहों को प्रशिक्षण, हथियार और वित्तीय सहायता प्रदान की है। बाबर खालसा के मुख्यालय को लाहौर, पाकिस्तान में स्थित बताया गया है और यह संगठन ISI के मार्गदर्शन में कार्य करता रहा है।
पाकिस्तान में स्थित खालिस्तानी आतंकवादी भारत में विस्फोट, हत्याएं और अन्य आतंकवादी गतिविधियों की योजना बनाते रहे हैं। यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक निरंतर चुनौती बनी हुई है।
वर्तमान स्थिति और चुनौतियां
रेयात की रिहाई
2016 में रेयात को कनाडाई जेल से रिहा कर दिया गया। पैरोल बोर्ड ने माना कि वह अभी भी अपनी चरमपंथी सोच रखता है और पीड़ितों के प्रति वास्तविक पछतावा नहीं दिखाता है। बोर्ड ने यह भी कहा कि "उसकी संबद्धता समाप्त नहीं हुई है"।
आतंकवाद का निरंतर खतरा
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने 2025 में कनिष्क विस्फोट की 40वीं वर्षगांठ पर कहा कि आतंकवाद अभी भी एक वर्तमान खतरा है और 2024 में वैश्विक आतंकवादी हमलों में 22% की वृद्धि हुई है। उन्होंने आतंकवादियों और अलगाववादियों के फंडिंग चैनल बंद करने का आह्वान किया।
एयर इंडिया फ्लाइट 182 विस्फोट और इंदरजीत सिंह रेयात का मामला अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खतरे का एक स्थायी अनुस्मारक है। यह घटना दिखाती है कि कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के बीच सहयोग की कमी और चरमपंथ के खतरे की गलत आकलन के कारण भयानक परिणाम हो सकते हैं।
यह मामला कई महत्वपूर्ण सबक देता है:
- अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए देशों के बीच बेहतर सहयोग की आवश्यकता है। कनाडा जैसे देशों को समझना होगा कि खालिस्तानी चरमपंथ केवल भारत की समस्या नहीं है बल्कि एक वैश्विक सुरक्षा चुनौती है।
- न्याय व्यवस्था को मजबूत बनाना आवश्यक है ताकि आतंकवादी बच न सकें। रेयात के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को दोषी न ठहराया जाना न्याय व्यवस्था की विफलता को दर्शाता है।
- पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी समूहों को दिए जाने वाले समर्थन को रोकना आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस मामले में और सख्त रुख अपनाना चाहिए।
आज, 40 साल बाद भी, कनिष्क विस्फोट की स्मृति हमें याद दिलाती है कि आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई अभी भी जारी है। जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है, "यह एक गंभीर अनुस्मारक है कि दुनिया को आतंकवाद और हिंसक चरमपंथ के खिलाफ शून्य सहनशीलता की नीति अपनानी चाहिए"।
329 निर्दोष लोगों की स्मृति में, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह की त्रासदी फिर कभी न हो। इसके लिए सभी देशों को मिलकर आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना होगा और किसी भी प्रकार के चरमपंथी विचारधारा को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों को रोकना होगा।
नोटः इस खबर में दी गई जानकारी विभिन्न सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित है।)
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