World Brain Day: मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए एक वैश्विक पहल

इस वर्ष की थीम "हर उम्र के लिए मस्तिष्क स्वास्थ्य"

World Brain Day: मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए एक वैश्विक पहल
ग्राफिक इमेज (सोर्से-google) एवं डॉ. सुशांत शांगरी

स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क को जानेवाली रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है या मस्तिष्क की किसी रक्त वाहिका में  रक्तस्राव हो जाता है. ऑक्सीजन युक्त रक्त न मिलने पर, कुछ ही मिनटों में मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं

विश्व मस्तिष्क दिवस हर वर्ष 22 जुलाई को वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ न्यूरोलॉजी द्वारा मनाया जाता है. इस दिन का उद्देश्य है– दुनियाभर में मस्तिष्क स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना, लोगों को तंत्रिका संबंधी रोगों की गंभीरता समझाना और इनके रोकथाम के उपायों को प्रोत्साहित करना.

इस वर्ष की थीम है "हर उम्र के लिए मस्तिष्क स्वास्थ्य", जो यह संदेश देती है कि मस्तिष्क की देखभाल किसी एक उम्र तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर पड़ाव पर जरूरी है. स्ट्रोक दुनिया भर में सबसे आम तंत्रिका संबंधी विकारों में से एक है. हर साल विश्वभर में लगभग 1.37 करोड़ नए स्ट्रोक के मामले सामने आते हैं. वैश्विक आंकड़ों के अनुसार, 25 वर्ष से अधिक आयु के हर चौथे व्यक्ति को अपने जीवनकाल में स्ट्रोक होने की आशंका रहती है.

स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क को जानेवाली रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है या मस्तिष्क की किसी रक्त वाहिका में  रक्तस्राव हो जाता है. ऑक्सीजन युक्त रक्त न मिलने पर, कुछ ही मिनटों में मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं. स्ट्रोक के दो मुख्य प्रकार होते हैं: 
1. इस्केमिक स्ट्रोक: यह तब होता है जब मस्तिष्क तक रक्त पहुंचाने वाली किसी धमनी में थक्का बन जाता है या रुकावट आ जाती है. 
2. हेमरेजिक स्ट्रोक: यह तब होता है जब मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली कोई रक्त वाहिका फट जाती है, जिससे मस्तिष्क में रक्तस्राव हो जाता है.

स्ट्रोक के जोखिम कारकों में शामिल हैं: बढ़ती उम्र, मधुमेह (डायबिटीज़), उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन), रक्त में अधिक कोलेस्ट्रॉल (हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया), तंबाकू का सेवन, शराब का सेवन, हृदय संबंधी समस्याएं आदि.हालांकि स्ट्रोक आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ होने की संभावना रहती है, लेकिन यह युवाओं को भी प्रभावित कर सकता है. ऐसे मामलों में इसके पीछे छिपे कारणों का पता लगाने के लिए अधिक उन्नत जांच की आवश्यकता पड़ सकती है.

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अधिकांश स्ट्रोक को आसानी से पहचाना जा सकता है यदि हम इस सरल शॉर्ट फॉर्म FAST को याद रखें:

F – फेस ड्रूपिंग (चेहरे का झुकना): क्या चेहरे का एक हिस्सा सुन्न या झुका हुआ लग रहा है? व्यक्ति से मुस्कुराने को कहें.

A – आर्म वीकनेस (बांह में कमजोरी): क्या एक हाथ कमजोर या सुन्न लग रहा है? उनसे दोनों हाथ उठाने को कहें.

S – स्पीच डिफिकल्टी (बोलने में कठिनाई): क्या बोलने में दिक्कत या आवाज अस्पष्ट लग रही है? उनसे कोई आसान वाक्य दोहराने को कहें.

T – टाइम टू कॉल इमरजेंसी (आपातकालीन मदद का समय): अगर ऊपर दिए गए लक्षणों में से कोई भी दिखे, तो तुरंत आपातकालीन चिकित्सा सेवा को कॉल करें.

स्ट्रोक हमेशा एक गंभीर चिकित्सकीय आपात स्थिति होती है. जितनी जल्दी उपचार शुरू होता है, उतनी ही अधिक रोगी के बचने की संभावना बढ़ जाती है, रिकवरी तेज होती है और लंबे समय तक रहने वाली परेशानियों की आशंका कम हो जाती है. स्ट्रोक से प्रभावित हर व्यक्ति को त्वरित चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है और उसे बिना देर किए अस्पताल पहुंचाया जाना चाहिए. अस्पताल में सबसे पहले मस्तिष्क का त्वरित सीटी स्कैन किया जाता है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि स्ट्रोक किस प्रकार का है.

इस्केमिक स्ट्रोक के मामलों में यदि मरीज समय रहते अस्पताल पहुंच जाए और चिकित्सकीय रूप से योग्य हो, तो स्ट्रोक की शुरुआत के 4.5 घंटे के भीतर "क्लॉट बस्टर" इंजेक्शन (Alteplase) दिया जा सकता है. इससे मृत्यु दर और अपंगता के खतरे में उल्लेखनीय कमी आती है. ऐसे मामलों में एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए — "टाइम इज ब्रेन" यानी हर बीतता हुआ मिनट मस्तिष्क की लाखों कोशिकाएं खत्म कर सकता है. अनुमान है कि बिना इलाज के हर एक मिनट में मस्तिष्क लगभग 19 लाख न्यूरॉन्स खो देता है.

क्लॉट बस्टर दवा (Alteplase) देने में हर 10 मिनट की देरी से, मरीज करीब 2 महीने की स्वस्थ जीवन अवधि खो सकता है. इसलिए स्ट्रोक का इलाज जितनी जल्दी शुरू किया जाए, उतनी ही बेहतर होती है मरीज की रिकवरी की संभावना. 

टाटा मेन अस्पताल, जमशेदपुर में हमने स्ट्रोक के मरीजों के लिए त्वरित और विशेषज्ञ उपचार प्रदान करने हेतु एक समर्पित स्ट्रोक यूनिट की स्थापना की है. यह यूनिट चौबीसों घंटे सक्रिय रहती है और इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की एक अनुभवी टीम कार्यरत है, जिसमें न्यूरोलॉजिस्ट, आपातकालीन चिकित्सा विशेषज्ञ, नर्सें, रेडियोलॉजिस्ट, फिजियोथेरपिस्ट और स्पीच थेरपिस्ट शामिल हैं.

यह अनुभवी टीम स्ट्रोक के लक्षणों को तेजी से पहचानने, तुरंत मस्तिष्क की जांच करने और आवश्यक चिकित्सा हस्तक्षेप शुरू करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित है. यह त्वरित प्रतिक्रिया विशेष रूप से स्ट्रोक की शुरुआत के पहले “गोल्डन ऑवर” में बेहद महत्वपूर्ण होती है. स्ट्रोक यूनिट में उन्नत ब्रेन इमेजिंग तकनीक जैसे सीटी स्कैन और एमआरआई की सुविधा मौजूद है, जो हमें इस्केमिक और हेमरेजिक स्ट्रोक का तुरंत और सटीक पता लगाने में मदद करती है. जो मरीज चिकित्सा रूप से पात्र होते हैं, उन्हें क्लॉट बस्टर दवा (Alteplase) दी जाती है.

हमारे अस्पताल में वार्ड के भीतर एक अलग स्ट्रोक यूनिट भी स्थापित की गई है, जिसमें अत्याधुनिक उपकरणों की व्यवस्था है और मरीजों की चौबीसों घंटे निगरानी के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की समर्पित टीम तैनात रहती है. इस यूनिट में हर मरीज की देखभाल उनकी न्यूरोलॉजिकल स्थिति और जरूरतों के आधार पर व्यक्तिगत रूप से की जाती है. 

आपातकालीन देखभाल से आगे, हमारी स्ट्रोक यूनिट व्यापक पुनर्वास और रिकवरी की योजना प्रदान करती है. प्रत्येक मरीज को व्यक्तिगत थेरेपी दी जाती है, जिसमें फिजिकल रिहैबिलिटेशन और स्पीच लैंग्वेज थेरेपी शामिल होती है. हम आपको भरोसा दिलाते हैं कि स्ट्रोक से उबरने की आपकी इस यात्रा में हमारी स्ट्रोक टीम हर कदम पर आपके साथ रहेगी.

डॉ. सुशांत शांगरी
लेखक- विशेषज्ञ, मेडिकल इंडोर सर्विसेज, टाटा मेन हॉस्पिटल में कार्यरत हैं.

 

Edited By: Sujit Sinha
Sujit Sinha Picture

सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।

'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

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