IVF– इच्छुक माता-पिता के लिए एक उम्मीद की किरण: डॉ. अनिशा चौधरी

बांझपन की राह भावनात्मक और शारीरिक रूप से बेहद निराशाजनक

IVF– इच्छुक माता-पिता के लिए एक उम्मीद की किरण: डॉ. अनिशा चौधरी
डॉ. अनिशा चौधरी(फाइल फोटो)

बांझपन आज वैश्विक स्तर पर हर छह में से एक दंपति को प्रभावित करता है. भारत में लगभग 2.75 करोड़ दंपतियां इस चुनौती का सामना कर रही हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ रही है.

हर साल 25 जुलाई को वर्ल्ड आईवीएफ डे के रूप में मनाया जाता है, जो 1978 में दुनिया के पहले आईवीएफ शिशु के जन्म की ऐतिहासिक उपलब्धि को समर्पित है. यह वैज्ञानिक सफलता न केवल चिकित्सा जगत की एक क्रांति थी, बल्कि उन असंख्य दंपतियों के लिए एक नई आशा बनकर उभरी जो संतान प्राप्ति के संघर्ष से जूझ रहे थे. 

बांझपन आज वैश्विक स्तर पर हर छह में से एक दंपति को प्रभावित करता है. भारत में लगभग 2.75 करोड़ दंपतियां इस चुनौती का सामना कर रही हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ रही है. इसके पीछे बदलती जीवनशैली, देर से मातृत्व की योजना, मोटापा, अत्यधिक तनाव, प्रदूषण, और पीसीओएस व एंडोमेट्रियोसिस जैसी जटिल प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य समस्याएं प्रमुख कारण हैं. इसके बावजूद, कई दंपति मदद लेने में देर कर देते हैं — अक्सर सामाजिक कलंक, जानकारी की कमी या असफलता के डर की वजह से. 

बांझपन की राह भावनात्मक और शारीरिक रूप से बेहद निराशाजनक हो सकती है. ऐसे में इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (IVF) एक महत्वपूर्ण सहारा बनकर उभरता है — एक ऐसी आधुनिक तकनीक जिसमें अंडाणु और शुक्राणु को शरीर के बाहर निषेचित किया जाता है, और फिर एक स्वस्थ भ्रूण को गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है.आईवीएफ कोई अंतिम विकल्प नहीं, बल्कि एक सशक्त और समयबद्ध समाधान है, खासकर तब जब अन्य उपचारों से सफलता नहीं मिलती. 

बांझपन पर चुप्पी तोड़ना 

बांझपन कोई असामान्य बात नहीं है, और यह केवल महिलाओं से जुड़ी समस्या भी नहीं है — वास्तव में करीब 40–50% मामलों में कारण पुरुषों से जुड़े होते हैं. लेकिन दुर्भाग्यवश, अधिकांश मामलों में भावनात्मक बोझ महिलाओं को ही उठाना पड़ता है. हमें एक समाज के रूप में इस सोच को बदलने की जरूरत है. दोषारोपण की जगह सहयोग और समझ का वातावरण बनाना ज़रूरी है, ताकि दंपतियों को खुलकर अपनी समस्याओं के बारे में बात करने और समय पर उपचार लेने में संकोच न हो. 

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समय पर मदद — उम्मीद की पहली सीढ़ी

अगर आप एक साल से गर्भधारण की कोशिश कर रहे हैं (या आपकी उम्र 35 वर्ष से अधिक है और छह महीने में भी सफलता नहीं मिली है), तो यह संकेत है कि आपको प्रजनन विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए. बहुत से मामलों में बिना आईवीएफ के भी उपचार संभव होता है, लेकिन समय पर जांच और सही दिशा में कदम उठाना सबसे ज़रूरी है. प्रजनन से जुड़ी हर स्थिति अलग होती है, और सफलता उम्र, जीवनशैली, स्वास्थ्य व अन्य कारकों पर निर्भर करती है. हम चिकित्सकों की भूमिका केवल इलाज करना नहीं, बल्कि इस संवेदनशील यात्रा में आपका मार्गदर्शन करना है — ईमानदारी, सहानुभूति और भरोसे के साथ. 

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आईवीएफ है सुरक्षित — मिथकों को तोड़े 

आईवीएफ को लेकर फैली भ्रांतियां इसकी राह में सबसे बड़ी रुकावट हैं. लोग इसे असुरक्षित या अप्राकृतिक मानते हैं, जबकि यह वैज्ञानिक अनुसंधान और सख्त सुरक्षा मानकों पर आधारित प्रक्रिया है, जिसे दुनिया भर में चार दशक से अधिक समय से सफलतापूर्वक अपनाया जा रहा है. आईवीएफ से जन्मे बच्चों में जन्म दोष की संभावना प्राकृतिक गर्भधारण जितनी ही होती है. साथ ही, यह भी एक मिथक है कि आईवीएफ से अंडाशय “खाली” हो जाते हैं या इससे कैंसर का खतरा बढ़ता है — इन दोनों बातों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.

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वर्ल्ड आईवीएफ डे उन अग्रदूतों को सम्मान देने का दिन है जिन्होंने प्रजनन चिकित्सा में क्रांतिकारी बदलाव लाए. यह उन सफलताओं का जश्न है जिन्होंने अनगिनत जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया, और उन संभावनाओं की याद दिलाता है जो कभी असंभव लगती थीं. टाटा मेन हॉस्पिटल में हमारा लक्ष्य है — प्रजनन उपचार को न केवल सुलभ और सुरक्षित बनाना, बल्कि उसे गरिमा, करुणा और विश्वास से जोड़ना. हमारा मानना है कि हर दंपति को अपना परिवार बसाने का पूरा अधिकार है — और हम इस सफर में उनके साथ हैं, हर कदम.

इस वर्ल्ड आईवीएफ डे पर आइए जागरूकता और समझदारी की रोशनी फैलाएं.
बांझपन कोई ठहराव नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत की ओर पहला कदम है — जो सही सलाह, वैज्ञानिक सहयोग और आत्मविश्वास के साथ एक नई जिंदगी का रास्ता बन सकता है.

डॉ. अनिशा चौधरी, विशेषज्ञ, मेडिकल इनडोर सर्विसेज, टाटा मेन हॉस्पिटल.

 

Edited By: Sujit Sinha
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सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।

'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

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