पश्चिम बंगाल व उत्तर प्रदेश के कोयला आधारित जीवन जीने वाले 902 लोगों का नजरिया क्या कहता है?
हाल ही में किये गये एक अध्ययन में इस बात को रेखांकित किया गया है कि कोयले के कारोबार से जुड़े समुदाय न्यायसंगत रूपांतरण के बारे में क्या सोचते हैं और कोयले की खदानों और कोयले से चलने वाले बिजलीघरों के बंद होने के बाद वे क्या अपेक्षा रखते हैं। इस अध्ययन के लिए उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के 900 लोगों से बात की गयी। उनमें से 46 प्रतिशत लोग कोयला खदानों और बिजलीघरों के नजदीक रहते हैं और वे प्रत्यक्ष रूप से इन्हीं पर निर्भर करते हैं। अप्रत्यक्ष आश्रितों में दिहाड़ी मजदूर, कृषि कामगार, स्थानीय दुकानदार और रोजगार की तलाश कर रहे लोग शामिल हैं, जिनसे बात की गयी।
उनका कहना है कि जब कोयला आधारित इकाइयां बंद हो जाएंगी तब श्रमिकों को सरकार से तुरंत राहत की दरकार होगी। इस राहत में वैकल्पिक रोजगार रूपी सहयोग पर्याप्त मुआवजा, सभी देयों का भुगतान और सेवा प्रमाण पत्र का जारी करना भी शामिल है। अगर यह मांगे पूरी नहीं की गई तो इन कामगारों को मजबूरन कम मजदूरी वाला कोई और काम करना पड़ेगा। क्योंकि कोयला खदान और कोयले से चलने वाली बिजली घरों मे रोजगार की असुरक्षा और रोजगार खोने की घटनाएं बहुत आम हैं।
ऐसे हालात में भविष्य में कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने की किसी भी पहल से पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी होगा कि कोयला क्षेत्र से जुड़े कामगारों और उनके समुदायों के लिए यह रूपांतरण पूरी तरह न्याय संगत हो। हालांकि जिला स्तर पर कोयले की निर्भरता के पैमाने और इसके इर्द-गिर्द घूमने वाली राजनीति के पैमाने को देखते हुए यह कोई आसान काम नहीं होगा। अनुसंधान के नजरिए से देखें तो कोयले पर निर्भरता और स्थानीय सरोकारों के पैमाने को समझने के साथ.साथ संभावित न्याय संगत रूपांतरण के उपाय अभी पूरी तरह से तलाशे नहीं जा सके हैं।
We are delighted to announce that our latest report, titled ‘What is Just Transition? Perception of Grassroots Stakeholders’ is now available for downloads
https://t.co/ivrOxnTkNPThe report sets the context for a #JustTransition in India and the ways of stakeholder engagement. pic.twitter.com/9zz3P99zXQ
— Just Transition Research Centre (IIT Kanpur) (@Jtrc_iitkanpur) December 2, 2022
भारत के मामले में यह एक वास्तविकता है क्योंकि यह देश शून्य उत्सर्जन नेट जीरो के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आखिरकार स्वच्छ ऊर्जा में रूपांतरण करेगा। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी कानपुर – जेटीआरसी के ने जस्ट ट्रांजिशन क्या है, शीर्षक से एक नयी रिपोर्ट जारी की है।
दुनिया पहले ही एक डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म हो चुकी है। जलवायु परिवर्तन के प्रति कार्रवाई के लिए जीवाश्म ईंधन, खासकर कोयले के इस्तेमाल को धीरे-धीरे बंद करना होगा, ताकि ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे रखा जा सके। जहां ओईसीडी में शामिल अनेक देशों के पास कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने के लिए विशिष्ट नीतियां हैं और न्याय संगत रूपांतरण (Just Transition) को लागू करने के विचार भी हैं। वहीं भारत जैसे कोयले पर निर्भर बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मामले में ऐसा बिल्कुल नहीं है। भारत की ऊर्जा प्रणाली का मूल आधार और इस देश के विभिन्न राज्यों के करोड़ों लोग आर्थिक रूप से कोयले पर ही निर्भर करते हैं।
न्याय संगत रूपांतरण से संबंधित प्रभावी नीतियां तैयार करने की दिशा में हित धारक का नजरिया भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें वह दृष्टिकोण भी शामिल है जिसकी अभी तक नुमाइंदगी नहीं हो सकी है।
न्यायसंगत रूपांतरण की किसी भी नीति को कामयाब बनाने के लिए नीति निर्धारकों को कोयले पर निर्भर राज्यों के नजरियों को भी शामिल करने की जरूरत होगी। यह ऐसा पहला अध्ययन है जिसमें कोयले पर निर्भर हित धारकों के दृष्टिकोण को भी शामिल किया गया है। इससे इस विषय पर भविष्य में होने वाले अध्ययनों की सुर-ताल तय होगी। इस अध्ययन के नतीजे और इससे बनने वाला परिप्रेक्ष्य भविष्य के ऐसे अध्ययनों में बहुत उपयोगी साबित होगा जो तर्कसंगत रूपांतरण के जमीनी नजरियों को समझने पर केंद्रित होगा।
इसके अलावा, कोयले के नकारात्मक पक्ष की तुलना में कोयला खदान श्रमिकों की धारणा आजीविका आयाम के लिए अधिक थी। दूसरी ओर बिजली घरों के लोगों ने कोयले के नकारात्मक पक्षों को लेकर ज्यादा मुखर नजरिया दिखाया और इस तरह वे कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने पर सहमत दिखे। इस मामले में टॉप डाउन समाधान निष्प्रभावी होगा, क्योंकि हम न्याय संगत रूपांतरण की बात कर रहे हैं ना कि ऊर्जा रूपांतरण की। लोगों की धारणा उनकी अपेक्षाओं से प्रभावित होती हैं। अगर हम इसका ख्याल नहीं करते हैं तो हमें बहुत बड़ी संख्या में लोगों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है और उस वक्त नीति में बदलाव करना मुश्किल होगा।
लोगों की धारणा को समझने के लिए एक वैज्ञानिक पैमाना बेहद महत्वपूर्ण है। इस अध्ययन में नीचे से ऊपर काम करने के दृष्टिकोण को अपनाया गया है और यह अध्ययन भारत में न्याय संगत रूपांतरण को लागू करते वक्त इससे जुड़े लोगों और समुदायों को केंद्र में रखने की जरूरत टीम मजबूत दलील पेश करता है।
सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडी के एनर्जी सिक्योरिटी एंड क्लाइमेट चेंज प्रोग्राम में सीनियर रिसर्च लीड और जाने-माने न्याय संगत रूपांतरण विशेषज्ञ डॉक्टर संदीप पई ने इस रिपोर्ट की विशेषता का जिक्र करते हुए कहा नीति निर्माता जस्ट ट्रांज़िशन की अवधारणा से जूझ रहे हैं और ठोस नीति निर्माण के लिए अधिक बुनियादी साक्ष्यों की जरूरत है। वे ऐसे शोध की तलाश में हैं जो कोयला खदानों और बिजली संयंत्रों के आसपास रहने वाले लोगों की आवाज़ों को उठा सके। जेटीआरसी की नई रिपोर्ट ने कोयले पर निर्भर क्षेत्रों में कम प्रतिनिधित्व वाले लोगों और समुदायों की आवाज़ों और धारणाओं को सामने लाने के लिहाज से अच्छा काम किया है। यह विचारों की विषमता और प्रमुख हितधारकों के उन मूल्यों को दर्शाता है जिन पर भारत का न्याय संगत रूपांतरण केंद्रित होना चाहिए।