सावन
साहित्य 

सावन, सेज, साजन तब सावन बने मनभावन

सावन, सेज, साजन तब सावन बने मनभावन सावन, सेज, साजन तब सावन बने मनभावन। अब जब इनका संयोग ना बने तो फिर उत्पन्न होता है विरह। और जब विरह उत्पन्न होता है तो कंठ से फूटता है “हरि- हरि प्रीतम गए परदेश जिया नाही लागे रे ननदि”।...
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