नशे की गिरफ्त में झारखण्ड के युवा, रिनपास सहित निजी अस्पतालों में बढ़ी मरीजों की संख्या
नशेड़ियों की तेजी से बढ़ रही है तादाद: डॉ सिद्धार्थ
मौजूदा दौर में गार्जियन अपने ऑफिस या फिर अन्य व्यस्तता के कारण बिजी रहते हैं. इससे बच्चों में अकेलापन और असुरक्षा के भाव पैदा हो जाते हैं. अभिभावक और बच्चों के बीच संवाद की कमी के कारण बच्चों में नशे की लत पकड़ रही है.
रांची: कांके स्थित रांची इंस्टीच्यूट ऑफ न्यूरो साइकैट्री में नशा मुक्ति के लिए मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि देखी जा रही है. इसमें खासकर झारखण्ड के युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में जा रहा है. दरअसल नशे की गिरफ्त में फंसे युवाओं के परिजनों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

12 से लेकर 25 साल की उम्र के युवक बड़ी संख्या गांजा (गेटवे ऑफ ड्रग्स) से लेकर ब्राउन शुगर-हेरोइन सेवन कर रहे हैं जिससे लगातार मरीजों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है. युवा वर्ग अपनी आर्थिक हैसियत के हिसाब से नशे का सेवन कर रहा है. इसमें डेएंडरायट, इरेजर, कोरेक्स कफ सिरफ, ब्राउन शुगर, हेरोइन आदि का आसानी से इस्तेमाल किया जा रहा है.
नशे के मरीजों में एंग्जायटी, चिड़चिड़ापन, बात-बात में गुस्साना जैसे सिम्टम सामान्य हैं. आंकड़ों के मुताबिक इनमें नाबालिक स्कूली बच्चे भी शामिल हैं.
डॉ सिद्धार्थ के अनुसार नशे के हैं अलग- अलग स्टेज
रांची इंस्टीच्यूट ऑफ न्यूरो साइकैट्री (रिनपास) के सीनियर रेजिडेंट सिद्धार्थ सिन्हा बताते हैं कि लड़के डेन्डराईट, एरेज एक्स जैसे आसानी से उपलब्ध नशे की चीजों से शुरूआत करते हैं. ये आसानी और सस्ते में उपलब्ध होने वाली नशे का समान है.
स्टेज 1: स्कूल या कॉलेज के विद्यार्थी गलत शोहबत में आकर मजा के लिए नशा शुरू करते हैं. धीरे- धीरे नशे की लत पकड़ लेती है. इस तरह के नशे को वोलेटाइल कंपाउंड सब्सटेंस कहते हैं.
स्टेज 2: गांजा के सेवन का है. गांजा को गेटवे ऑफ ड्रग्स भी कहते हैं. यह भी आसानी से बाज़ार में मिल जाता है. इसके सेवन के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है.
स्टेज 3: नशे के आदी नींद की गोलियों और सिरप का सहारा लेते हैं. इनका सेवन भी नशेड़ियों को 18 से 24 घंटे तक नशे में रखने के लिए काफी होता है.
स्टेज 4: ब्राउन शुगर हीरोइन का है. डॉ सिन्हा के अनुसार पहले दोनों चीजें रांची के बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं थी. लेकिन, अब हिंदपीढ़ी, डिबडीह, बरियातू, एचबी रोड और सर्कुलर रोड में यह आसानी से मिल जाता है.
इधर, मनोवैज्ञानिक मोनिका कहती है कि मौजूदा दौर में बड़े अपने ऑफिस या फिर अन्य व्यस्तता के कारण बिजी रहते हैं. इससे बच्चों में अकेलापन और असुरक्षा के भाव पैदा हो जाते हैं. अभिभावक और बच्चों के बीच संवाद की कमी के कारण बच्चों में नशे की लत पकड़ रही है
सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।
'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
