संघर्ष की उड़ान: डिलीवरी बॉय से अफसर बने राजेश रजक, झारखंड प्रशासनिक सेवा में रच डाली नई कहानी
पिता की मृत्यु के बाद पढ़ाई छोड़ने की नौबत आने पर नहीं मानी हार
राजेश ने JSSC-CGL परीक्षा में भी सफलता प्राप्त की थी, हालांकि वह मामला फिलहाल न्यायालय में लंबित है.
हजारीबाग: झारखंड प्रशासनिक सेवा परीक्षा में इस बार कई ऐसे उम्मीदवारों ने सफलता हासिल की है, जिनका जीवन अभावों और संघर्षों से भरा रहा. उन्हीं में से एक हैं हजारीबाग जिले के बरकट्ठा प्रखंड के सुदूरवर्ती केंदुआ गांव निवासी राजेश रजक, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी और झारखंड जेल सेवा में चयनित होकर 271वीं रैंक हासिल की है. उनकी कहानी आज हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई है.

राजेश ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से पूरी की और फिर हजारीबाग से 12वीं तथा स्नातक की पढ़ाई की. पिता की मृत्यु के बाद जब पढ़ाई छोड़ने की नौबत आ गई, उसी समय उन्हें एक निजी स्कूल में ₹6000 प्रति माह की नौकरी मिल गई. इस आमदनी से उन्होंने न केवल अपनी पढ़ाई जारी रखी, बल्कि घर भी संभाला.
स्नातक के बाद राजेश ने रांची जाकर उच्च अध्ययन शुरू किया. वहां वे दिन में डिलीवरी बॉय की नौकरी करते थे और रात में पढ़ाई करते. यह दौर उनके जीवन का सबसे कठिन समय था — एक ओर आर्थिक जिम्मेदारियाँ, दूसरी ओर प्रशासनिक सेवा की कठिन तैयारी. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. जब झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) द्वारा छठी से दसवीं तक की संयुक्त परीक्षा का विज्ञापन निकला, तो राजेश ने डिलीवरी का काम छोड़ दिया और पूरी तरह परीक्षा की तैयारी में जुट गए.
राजेश बताते हैं कि उन्होंने छठी जेपीएससी में प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन मुख्य परीक्षा में सफल नहीं हो पाए. फिर भी उन्होंने आत्मविश्वास नहीं खोया. पहली बार प्रीलिम्स पास करने से उन्हें यह भरोसा मिला कि यह परीक्षा उनके लिए असंभव नहीं है. उन्होंने दोबारा फॉर्म भरा और आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई.
आज जब उनका चयन प्रशासनिक सेवा में हुआ है, तो गांव से लेकर शहर तक लोग उनकी सफलता की मिसाल दे रहे हैं. उनकी मां जानकी देवी के लिए यह पल भावुक कर देने वाला है. उनकी आंखों से बहते आंसू उस खुशी को बयां कर रहे हैं, जिसे शब्दों में बयान करना उनके लिए मुश्किल हो रहा है.
राजेश का कहना है, "मेरे जैसे साधारण परिवार से आने वाले युवाओं को कभी हार नहीं माननी चाहिए. परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, अगर मेहनत और धैर्य के साथ निरंतर प्रयास किया जाए, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं रहती."
उनकी यह सफलता न सिर्फ उनके व्यक्तिगत संघर्ष की जीत है, बल्कि यह हजारों युवाओं के लिए यह संदेश है कि संसाधन की कमी कभी सपनों की उड़ान नहीं रोक सकती — जरूरत है तो बस दृढ़ निश्चय और लगातार मेहनत की.
सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।
'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
